Book Title: Nirgrantha Pravachan Author(s): Chauthmal Maharaj Publisher: Jain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar View full book textPage 3
________________ इतना दीर्घ समय बीत जाने के बाद आज भी इसकी उपयोगिता अपनी जगह है । महावीर वाणी के अनेक नये संकलन प्रकाश में आ चुके हैं, फिर भी 'निर्ग्रन्थ-प्रवचन' की सकलन-संपादन शैली आज भो अनठो ही है और अपना अलग ही स्थान बनाये हुए है। अब जैनदिनाकर जन्म शताब्दी के पाघन प्रसंग पर हम निम्रन्य-प्रवचन का नया संस्करण पाठकों की सेवा में प्रस्तुत कर रहे है। इस प्रकाशन में गुरुदेवश्री के प्रमुख शिष्य कविरत्न श्री केवलमुनिजी एवं गुरुदेवश्री के शिष्यरस्न थी मंगलचंदजी महाराज साहब के शिष्य युवा साहित्यकार श्री भगवतीमुनिजी 'निर्मल' का मार्गदर्शन तथा प्रेरणा हमारा सम्बल रही है। हम उन गुरुवयं के प्रति आभार व्यक्त करते हैं। साथ ही प्रसिद्ध साहित्यकार श्रीचंदणी सुराना 'सरस' का सहयोग भी मुद्रण को अधिक नयनाभिराम बना सका है। हम आशा करते हैं यह संस्करण पाठकों की जिज्ञासा को शांत व तृप्त करेगा। मन्त्री -- जनवियाकर दिव्य ज्योति कार्यालय, यिावरPage Navigation
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