Book Title: Nemirangratnakar Chand
Author(s): Shivlal Jesalpura
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 7
________________ विद्वान् संपादके चार प्रतिओनो उपयोग करी मूळ पाठने शुद्ध करवानो प्रयत्न कयों छे. एकंदरे आ संपादन बधी रीते जूनी गुजराती साहित्यना अभ्यासीओ-विद्यार्थीओने उपयोगी थाय एवं छे. विद्वान संपादक आवां सुन्दर संपादनो वधु ने वधु आपता रहे एवी आशा अमे राखीए. अंबालाल प्रेमचंद शाह ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर अमदावाद-९ 4-11-1965

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