Book Title: Namaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Author(s): Dhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vardhak Sabha
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________________ णमोकारणिजत्ती। [प्राकृत नाणाऽऽवरणिजस्स य दंसणमोहस्स तह खओवसमो। जीवमजीवे अट्ठसु भंगेसु उ होइ सव्वत्थ // 7 // 893 // शब्द, समभिरूढ अने एवंभूत-ए त्रण नयोना मते ज्ञान ज नमस्कार छ, उपयोगवान् कर्ता ज स्वामी छे; कारण के, नमस्कार ज्ञान स्वरूप ज छे, पण शब्द तथा क्रिया नमस्कार नथी / केमके 6 उपयोगथी ज फळनी प्राप्ति थाय छे / उपयोग न होय तो शब्द तथा क्रिया फळ आपतां नथी / तेथी तेवा प्रकारना उपयोगवाळा पूजकनो नमस्कार छ एम माने छे / 5-6, (891-892) // (3. साधन-कारण-'नमस्कार शा वडे थाय छे ?') श०-ज्ञानावरणीय अने दर्शनमोहनीयना क्षयोपशमथी नमस्कार प्राप्त थाय छे अने जीव तथा अजीव वगेरे आठे भांगा-प्रकारोमां नमस्कार होय छे / (7) 10 वि०-नमस्कार मंत्रनी उपलब्धि कयी रीते थाय छे तेनी प्ररूपणामां ज्यां सुधी अंतरंगा कर्मोने क्षयोपशम' न थाय त्यां सुधी आ नमस्कारमंत्र उपर श्रद्धा उत्पन्न थती नथी, तेथी ज्ञानावरणीय अने दर्शनमोहनीय कर्मोना क्षयोपशमथी नमस्कारनी प्राप्ति थई शके छे। नमस्कारनो उपघात करनारां मति-श्रुतज्ञानावरण अने दर्शन-मोहनीय कर्मनां स्पर्धको बे प्रकारनां छे। 1 सर्वघाती अने 2 देशघाती। तेमां सर्वघाती स्पर्धको सर्व नाश पाम्या पछी 15 देशघाती स्पर्धकोना अनंतमा भागोथी समये समये मुकाता जीवने प्रथम नकार अक्षर प्राप्त थाय अने ते पछी उत्तरोत्तर विशुद्ध थतां अनुक्रमे बीजा पण एकेक अक्षर प्राप्त थाय छे अने ए रीते समस्त नमस्कारमंत्र प्राप्त थाय छ / ___ नमस्कार स्वयं श्रुतरूप छे अने ते श्रुत मतिपूर्वक होय छे। ए बने सम्यग्दृष्टि जीवने होय छ / तेथी नमस्कारनो लाभ थतां एकीसाथे मतिज्ञान, श्रुतज्ञान अने सम्यक्त्वनो लाभ थाय छे, आ 20 कारणे ज मति-श्रुतज्ञानावरण अने दर्शनमोहनीयनो क्षयोपशम अहीं ग्रहण को छ / वास्तवमा आनुं तात्पर्य ए छे के, जीवने ज्ञानावरण आदि आठ कर्मोमांथी मतिज्ञानावरण कर्मना क्षयोपशमनी साथे ज मोहनीय कर्मनो क्षयोपशम थतां नमस्कारमंत्रनी प्राप्ति थाय छ / नमस्कारमंत्र श्रुतज्ञानरूप छे अने श्रुतज्ञान मतिज्ञानपूर्वक ज थाय छे, आथी मतिज्ञानावरण कर्मना क्षयोपशमनी साथे मोहनीय कर्मनो क्षयोपशम थवो आवश्यक छ / केमके मिथ्यात्वकर्मना अभावमा 25 ज आत्मस्वरूप प्रत्ये श्रद्धा उत्पन्न थाय छे / अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभनी साथे मिथ्यात्वनो क्षय, उपशम अथवा क्षयोपशम थाय ए नमस्कारमंत्रनी उपलब्धिने माटे आवश्यक छ / आ मंत्रनी प्राप्तिमा अंतरायकर्मनो क्षयोपशम पण एक कारण छे, जेथी आंतरिक योग्यता प्रगट' थतो ज आ नमस्कार महामंत्रनी प्राप्ति थई शके छे / 1. उदित कर्मोनो क्षय अने बाकीनां अनुदित कर्मोनो उपशम तेने 'क्षयोपशम' कहे छ। क्षय सहित उपशम ते 'क्षयोपशम' कहेवाय।