Book Title: Namaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Author(s): Dhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vardhak Sabha
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________________ 159 विभाग] नमस्कार स्वाध्याय / अरिहंतुवएसेणं सिद्धा नजंति तेण अरिहाई / नवि कोई परिसाए पणमित्ता पणमई रण्णो / / 135 // 1021 // इत्थ य पओअणमिणं कम्मक्खओ मंगलागमो चेव / इहलोअ-पारलोइअ दुविहफलं तत्थ दिटुंता // 136 // 1022 // एज प्रमाणे आ पश्चानुपूर्वी क्रम पण नथी। जो एम होत तो साधुने प्रथम कह्या होत पण / साधुने तो अप्रधानपणे बधानी अंते कह्या छ / साधुने प्रथम कहीने छेवटे सिद्धोनुं नाम होत तो ते क्रम पश्चानुपूर्वी बनत / 134, (1020) (उपर्युक्त शंकाना समाधानरूपे पूर्वानुपूर्वी क्रमनुं प्रतिपादन करतां कहे छे-) श०-अरिहंतना उपदेशथी सिद्धोनुं ज्ञान थाय छे, तेथी अरिहंतने आदिमां कह्या छ / कोई पण मनुष्य प्रथम पर्षदाने नमस्कार करीने राजाने नमस्कार करतो नथी / (135) 10 वि०-अरिहंतना उपदेशथी-आगमथी सिद्धोनुं ज्ञान थाय छे, कारण के सिद्धो प्रत्यक्ष आदि विषयथी पर छे तेथी अरिहंतपूर्वकनो क्रम पूर्वानुपूर्वी छ / आथी अरिहंतो ज वधु नजीक छ / अल्प समयनु ज अंतर होवाथी कृतकृत्यपणुं ए तो प्रायः सरखं ज गणाय / प्र-अरिहंत वडे सिद्धो जणाय छे एम मानवामां आवे तो अरिहंतो प्रधान थवाथी तेओ सिद्धोने पण नमस्कार्य छे एवो अर्थ थाय / 15 ... उ०—जो एम मानवामां आवे तो अरिहंतो पण आचार्यना उपदेशथी जणाय छे, तेथी आचार्यो प्रधान बनी जशे / वस्तुतः अरिहंत अने सिद्ध ए सरखा बळवाळा छे तेथी एमनो विचार करवो श्रेयस्कर छ / तेओ बनो परमनायकरूपे छे / आचार्यो तो तेमनी सभाना सदस्यो जेवा छे / कोई पण मनुष्य सभाने नमस्कार कर्या पछी राजाने नमस्कार करतो नथी / आथी ज आ क्रम बराबर छ। 135, (1021) 20 10-11. प्रयोजन द्वार अने फळ द्वार / जे कारणने लईने प्रयोग कराय ते नमस्कारमंत्रनुं मोक्ष प्रयोजन छे / तेनो विचार आ प्रयोजन द्वारमा कराय छे अने क्रिया कर्या पछी जे स्वर्ग वगेरे मळे ते नमस्कारनुं फळ छे / तेनो आ फळ द्वारमा विचार करायो छ / श-नमस्कार करवामां कर्मनो क्षय अने मंगळवें आगमन ए प्रयोजन छ / तेमज लोक 33 संबंधी अने परलोकसंबंधी एम बे प्रकारचें फळ छे / तेनां दृष्टान्तो नीचे प्रमाणे छे। ( 136) वि०-नमस्कार करवाना समये जलदीथी ज्ञानावरणीय आदि कर्मोनो क्षय थाय छे ए नमस्कारनुं प्रयोजन छ / भावथी नमस्कार कर्या विना अनंत कर्मपुद्गलोनो नाश थतो नथी। वळी, नमस्कार करवाना समये मंगळनी प्राप्ति थाय छे / काळांतरे जे मळे ते आलोक अने परलोक संबंधी फळो कहेवाय छे / 136, (1022) 30