Book Title: Namaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Author(s): Dhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vardhak Sabha

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Page 485
________________ [28] नवकारलहुकुलकं // ' अणेगजम्मंतरसंचिआणं, दुहाण सारीरय-माणसाणं / कत्तो हि भव्वाण हविज नासो, न जाव पत्तो नवकारमंतो // 1 // मंताण मंतो परमो इमुत्ति, धेयाण धेयं परमं इमुत्ति / तत्ताण तत्वं परमं पवित्तं, संसारसत्ताण दुहाहयाणं // 2 // नामाइ मंगलाणं पढमं चिय मंगलं नमुक्कारो। अवणेइ वाहि-तकर-जलणाइ भयाई सव्वाइं // 3 // हरइ दुहं कुणइ सुहं जणइ जसं सोसए भवसमुदं / इहलोअ-पारलोइअसुहाण मूलं नमुक्कारो // 4 // अटेव य अट्ठसया, अट्ठसहस्सं च अट्ट कोडीओ। जो गुणइ भत्तिजुत्तो, सो तईयभवे लहइ मुक्खं // 5 // भो अण्णसमए सयणे विघोहणपवेसणे अ भयवसणे / पंचनमुक्कारो खलु समरिजइ सव्वकजेसु // 6 // नवकारइक्कअक्खर पावं फेडेइ सत्तअयराणं / पण्णासं च पएणं, सागरपणसय समग्गेण // 7 // . .. अनुवाद भव्य मनुष्योए ज्यां सुधी नवकारमंत्रने प्राप्त कर्यो नथी त्यां सुधी अनेक जन्मोमा एकठां करेलां तेमनां शारीरिक अने मानसिक दुःखोनो नाश शी रीते थाय ? // 1 // 20 दुःखोथी आघात पामेला संसारी मनुष्योने माटे आ (नवकार मंत्र ) मंत्रोमां परममंत्र छे, ध्यान करवा योग्यमां आ परमध्येय छे अने तत्त्वोमां परमपवित्र तत्त्व छे // 2 // नाम, स्थापना, द्रव्य अने भाव मंगलोमां आ नमस्कार प्रथम मंगल छे; केमके ते रोग, चोर अने अग्नि वगेरे बधा भयोने दूर करे छे // 3 // ते मंत्र दुःख हरे छे, सुख आपे छे, यश उत्पन्न करे छे, संसाररूप समुद्रने शोषी ले छे / 25 एटले आलोक अने परलोकनां सर्व सुखोनुं मूळ आ नवकारमंत्र छ / // 4 // जे भक्तिवाळो मानवी आठ, आठसो, आठ हजार, अगर आठ करोडवार आ मत्रनो जाप करे छे ते त्रीजे भवे सिद्धि प्राप्त करे छे // 5 // ___जमतां, सूतां, ऊठतां, (नगर वगेरेमा ) प्रवेश करतां, भय आवी पडतां के दुःखमां यावत् बधां कार्योमां आ पंच नमस्कारनुं खरेखर स्मरण करवू जोईए // 6 // 30 नमस्कारनो एक अक्षर सात सागरोपमर्नु पाप नाश करे छे, एक पद वडे पचास सागरोपम अने समग्र नवकार बड़े पांचसो सागरोपमनुं पाप नाश थाय छे // 7 //

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