Book Title: Namaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Author(s): Dhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vardhak Sabha
View full book text ________________ शुद्धिपत्रक [प्राकृत छ पंक्ति अशुद्ध 1 त्रट्यति 1 स्वपिति 2 द्युते च देवा 7 नसीबना कारणे 19 (9-859) 27 करेंली 1 उप्पन्नाणुप्पन्नो 1 नयाऽऽइ निगमस्सऽणुप्पन्नो 12 कारणो छे, अने बीजा शुद्ध त्रुट्यति स्वपीति यते सदैवा सदैव (9-895) करेली उप्पन्नाऽणुप्पन्नो नयाऽऽइनिगमस्सऽणुप्पन्नो कारणो छे, ऋजुसूत्रनये पहेलं कारण (समुत्थान) छोडीने शेष बे (वाचना अने लब्धि) कारणो छे, अने शेष कई 18 कयी 26 श्रुतावरणनां कर्मोनो क्षय श्रुतावरणीय क्षयोपशम. (नमस्कारश्रुतावरणीय) कोनो / / x तेनुं श्रवण कवं, 8 अध्ययन ग्रहण करवू, 8 तेनुं श्रवण कर अथवा 28 सत् मात्रग्राही आदि नैगम नयनी . 1 भावोव उत्त 2 द्रव्यने माटे 10 रंगायेल 10 भावथी 13 भावपूर्वक 2 के अंतमा 17 आ रीते.........मळ्युं नहीं' / सत्मात्रग्राही आदि नैगमनयनी भावोवउत्तु द्रव्यने माटे (धनादि अर्थे) उपहत उपयोगसहित उपयोगपूर्वक ,, 18-20 पण बहारथी......पामे छ / ,, . 24-25 भावसंकोच एकांत...कारण छ / 117 2 कियच्चिर 3 अ जीवाणं 7-8 कर्मथी बंधायेला......करे छ। पालके' आवो नमस्कार को हतो, तेनाथी ते इष्ट फळ पाम्यो नहीं। पण परिस्थितिविशेषना कारणे द्रव्यसंकोच करी शके नहीं; आवी रीते नमस्कार करनार अनुत्तर विमानवासी देवोनी पेठे फळ पामे छे।। भावसंकोच प्रधान छे अने द्रव्यसंकोच पण तेनी (भावनी) शुद्धि माटे ज छ / किच्चिरं उ जीवाणं विशुद्ध आत्माओने द्रव्य अने भावनी शुद्धि द्वारा करातो नमस्कार तेमना जेवा बनवाना आदर्शने सफळ करे छे। तेथी नमस्कारना ज्ञाननी लब्धिथी युक्त अथवा ते लब्धि माटे योग्य एवो जे जीव ते नमस्कार छ / द्रव्यास्तिक 24 तेथी जीव नमस्कार छ / 26 द्रव्यास्तिकाय 26 गुणाश्रित
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