Book Title: Namaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Author(s): Dhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vardhak Sabha
View full book text ________________ विभाग नमस्कार स्वाध्याय 533 पृष्ठ 166 , पंक्ति 1 अणियोग 15-16 तेमा 'भू'... कहे छ। शुद्ध अणुयोग तेमां धातु 'भू सत्तायां' वगेरे छे। ते (धातु) सकल अर्थवाचक शब्दोनुं मूल कारण छ। शब्दोथी अज्ञानादर्शनादि उक्तमर्थमलम् द्रव्य करे, दहन करे, घात करे, घन अने कठिन रूपे अने करावे जेथी जेमां अणुयोग 8 जिनेंद्र होय त्यारे मिथ्यात्वाविरतिथतो घटी घटी लक्ष्यस्या . 28 शब्दनो 167 2 अज्ञानदर्शनादि , 3. उक्तमर्थलम् , 4 द्रव 13 करे, घात करे, 15-16 सांद्र अने कठण स्वरूपे 22 अथवा 26 करे 32 जेनी द्वारा , 32 जे करतां 2 अणिओग ..11 जिनेद्र 31 होवा छतांये 169 5. मिथ्याविरति 14 थनारो , 29 बनी 32 बनी 2 लक्षणस्या - 25 शंकाकारना 27 बराबर 31 छध्नस्थ अर्थात् अल्पज्ञानीओनां 4 दशना 21 समीचीनता आवी शकती नथी, अने समीचीनता 28 मावि 2 14 नथी .' 22 'जिनेन्द्रदेवने नमस्कार थाओ' , 26 परमेष्ठी , 32-33 मंगल विनयने करीने पण 173 3 लहुपारया 7 मध्यावसाने 18 आ सूत्र नथी। आथी 26 बनाववामां 28 परंतु 3 सत्त्योपलम्भान्न 4-5 केवलज्ञानाद्यशेषशेषात्म 23 आवरण कर्म सिद्ध छमस्थनां दर्शना सम्यक्त्व आवी शकतुं नथी अने सम्यक्त्व भव्य नथी, तेथी मंगलनुं अनंतपणुं छे / ‘णमो जिणाणं' x मंगल अने विनयने करीने लहु पारया मध्येऽवसाने आ षट्खण्डागम सूत्र नथी। ते बताववामां अने सत्तोपलम्भान्न केवलज्ञानाद्यशेषात्म आवारक कर्म,
Loading... Page Navigation 1 ... 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592