Book Title: Namaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Author(s): Dhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vardhak Sabha

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Page 527
________________ 480 सिरिरयणसेहरसूरिविरइयसिरिसिरिवालकहातो पंचपरमिट्ठिपयाराहणविहिसंदभो। [प्राकृत . अभिगमण-वंदण-नमंसणेहिं असणाइ-वसहिदाणेहिं / वेयावच्चाइहि अ साहुपयाराहणं कुणइ // 1174 // अव० - अभिगमणं-सम्मुखगमनं, वन्दनं-स्तुतिः, नमस्यनं-नमस्कारकरणं, तैस्तथा; अशनादीनां वसतेश्च दानैश्च पुनर्वैयावृत्त्यादिभिः साधुपदाराधनां करोति // 1174 // 5- आगमोना नियुक्ति वगेरेना अर्थोनुं अध्यापनकार्य तो आचार्य भगवंतो ज करे छे त्यारे समग्र आगमोनां मूळ सूत्रोनुं अध्यापनकार्य उपाध्याय भगवंतोना शिरे होय छे। वळी, गच्छना साधुओनुं पालन-पोषण करवानी मुख्य फरज पण उपाध्याय भगवंतो ज बनावे छ / वाचना पृच्छना, परावर्तना अनुप्रेक्षा अने धर्मकथारूप स्वाध्याय करनारा साधुओने उपाध्याय भगवंतो भणावे त्यारे अध्ययन अने अध्यापन माटे निराकुल वातावरण अने भोजन, 10 वस्त्र, पुस्तक वगेरेनी योग्य सामग्री भावपूर्वक पूरी पाडवाथी तेमज भणनारा साधुओए उपाध्याय भगवंत प्रत्ये भक्ति बताववाथी उपाध्यायपदनी आराधना करी शकाय छ। ' आचार्यपदनी पेठे उपाध्यायपदनी आराधना पण साक्षात् उपाध्यायनी आराधनाथी थाय छे माटे तेमनी मूर्ति वगेरेथी करवानुं जणाववामां आव्युं नथी / // 1173 // . ते महाराजा अभिगमन, वंदन अने नमस्कार करवावडे भोजन वगेरे तथा निवासस्थान 15 देवावडे अने वेयावञ्च आदि करवा वडे साधुपदनी आराधना करे छे / // 1174 // विवेचन-साधुपदनी आराधना करवा माटे अभिगमन एटले साधु भगवंतने वंदन करवा माटे सामे जवं, तथा गाममां प्रवेश करता होय त्यारे तेमनुं भावपूर्वक सामैयुं करवू, वंदन एटले अभिवादन अर्थात् मन, वचन अने कायानी प्रशस्त प्रवृत्ति करवी; नमस्यन एटले नमन के पूजन वगैरे करवू, तेमज ते साधु भगवंतोने अशन आदि एटले अशन (भोजन), पान, खादिम, स्वादिम, 20 वस्त्र, पात्र, कंबल, रजोहरण, संथारियां, दंडक वगेरे संयमसाधनानां उपकरणो देवां, तेमज तेमने ऊतरवा माटे वसति एटले उपाश्रयनां स्थानो आपवां अने वेयावञ्च एटले धर्मसाधन निमित्ते अन्न वगेरे विधिपूर्वक मेळवी आपवां जोईए। - आचार्य अने उपाध्यायपदवी प्राप्त करनारा महापुरुषो. पहेलेथी ज साधुपणामां होय छे एटले आचार्य, उपाध्याय वगेरे पदवीओ प्राप्त करवाथी तेमनामां साधुपणानी न्यूनता आवती नथी, 25 बल्के ते विशेषपणे विकास पामे छे / तेथी ज आवश्यकनियुक्ति (गाथा 1018) मा पूर्वपक्षकारे सिद्ध भगवंत अने साधु भगवंतमां पंचपरमेष्ठीना नमस्कारनो एक दृष्टिए समावेश कर्यो छे / वळी, 'पंचसूत्र', 'चउसरणपयन्ना' अने प्रतिक्रमणसूत्र वगेरेमां आचार्य अने उपाध्याय भगवंतने मंगळ, लोकोत्तम अने शरण्य तरीके जुदा न गणावतां साधुपदमां तेमनो समावेश कर्यो छे। साधुपदनी आराधना माटे पदस्थ एवा आचार्य अने उपाध्याय भगवंतोनी जेम मूलोत्तर 30 गुणना धारक गीतार्थ अने गीतार्थनी निश्रावाळा साधुओनी सामे जइने वंदन वगेरे करवान विधान आ गाथामां करेलुं छे। वळी, श्रमण महात्माओना नामस्मरण एटले जाप करतां ये तेमने वंदन, नमस्कार करवानुं फळ विशेष छे एम जणाववामां आव्युं छे / // 1174 //

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