Book Title: Namaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Author(s): Dhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vardhak Sabha

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Page 544
________________ 495 विभाग] -ममस्कारस्वाध्याय। दुक्कडसंवेल्लिअओ, भवमासोओढणोजमोलोओ। उज्वेल्लिजइ मेहि, अरहंसाणं नमो ताणं // 19 // व्याख्या-दुष्कृतेन अशुभकर्मणा संवेष्टितो व्याप्तः / सरं भवपाशोद्वेष्टने संसारबन्धनमोक्षणे उद्यतः कृतमयको लोको यैस्वेष्ट्यते बन्धनमुक्तः क्रियते तेभ्योऽर्हट्यो नमः / चुकड' इस्पत्र भार्मसात् तस्य डः // 19 // जे झाउं संमआइ, अपाखिजिरसिसिराण सा सिद्धी। ते वच्चामो सरणं, नचिरमचिश्मणा सिद्धे // 6 // व्याख्या-यान् ध्यात्वा स्मृत्ला अखेत्तृस्वेतृणाम् अखेदनखेदनशीत्मनां खेद-स्वेदरहितानाम् इति यावत् / / अस्माकं सा सिद्धिः तत् सिद्धवं संपद्यते / तान् सिद्धान् नर्तित नर्तनशीलम् / भक्तिवशाद् उत्कलिकाकलितम् इत्यर्थः / तथा मदितृ तोपणशीलं मनो येषां ते तथाभूता वयं शरणं नामः / 'झाउं' 10 इत्यत्र सेधनक्रियापेक्षया प्राक्काल्यम् न संपद्यते इत्यपेक्षया / तच्च भावितमेवेति // 60 // आणंदरोकिराम जेसु नवन्ताण होइन्तोब्वेको / धाइ समुहं च मुत्ती तापा-ममो सनसिद्धाणं // 61 // व्याख्या-यान आनन्दरोदितृणां हर्षाचविमोचनशीलानां सतां नमतां नमस्कुर्वतां न उद्वेगो मवति / किन्तु यात नमतां मुक्तिः संमुखम् अभिमुखं च धावति सत्वरम् आयाति / तेभ्यः सर्वसिद्धेभ्यो 15 नमः / 'जेसु' इति द्वितीया-तृतीययोः सप्तमी' [3. 135.] इति सप्तमी.॥ 61 // कुपहे धावन्ति अखादिमं न खादन्ति तेहि वि समं जो। धावइ खाइ अतं:पि हबोहन्ते झामि आगरिए॥ 62 // व्याख्या-ये कुपथे अमार्गे / अनीताविति यावत् / धावन्ति / तथा ये खाद्यते यत् तत् खादं तस्य भावः खादत्वं, न विद्यते खादत्वं यस्य तत् तथा अखाद्य वस्तु खादन्ति / तैरपि समं यो 20 * 'धावंति कुपथे गच्छति, खादति अभक्षणीयं भक्षयति च / हु इति निश्चितम् / तमपि ताशमपि प्राणिनं स्वयं अधर्म अधर्मविप्रलब्धं च / अस्मादृशम् इत्यर्थः / बोधयतो धर्मदेशनया सन्मार्गे प्रवर्तयत, माचार्यान् घ्यायामि संस्मरामि // 12 // अशुभ कर्मोथी वीटायेला होवा छतां जे लोको संसारना बंधनमाथी मुक्त थवानो प्रयत्न करी रह्या छे तेमने संसारना बंधनमांथी मुक्त करनार अरिहंतभगवंतोने ममस्कार थामो // 59 // 25 (सिद्ध भगवंत-) जेमनुं ध्यान धरवाथी खेद अने स्वेद ( परसेवो) बिनाना अमने ते सिद्धपनी प्राप्ति थाय के ते सिद्ध भगवानने अमे नाचता हृदये तथा संतुष्टहृदये शरणे जईए छीए:।। 60 // जेमने आनंदना अश्रुपातपूर्वक नमस्कार करतां उद्धेग नथी श्रतो पण उलटी मुक्ति सामी दोडी आवे छे ते सर्व सिद्ध भगवंतोने नमस्कार थाओ // 61 // (आचार्य भगवंत-) उन्मार्ग दोडनारा माणसोनी साये जे दोडे छे तथा अभक्ष्य खानार माणसनी साथे जे अभक्ष्य खाय छे तेषा-माणसने पण जे प्रतिबोध पमाडे छे ते आचार्य भगवंतोनुं हुं ध्यान धरूं छु। 62 // 30 63

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