Book Title: Namaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Author(s): Dhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vardhak Sabha

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Page 555
________________ 508 चउसरणपयन्नासंदभो। वयणामएण भुवणं निव्वावंता गुणेसु ठावंता। जिअलोअमुद्धरंता अरिहंता हुंतु मे सरणं // 20 // 12 // अच्चभुयगुणवंते निअजसससहरपसिअअदिअंते / निअयमणाइअणंते पडिवन्नो सरणमरिहंते // 21 // 13 // उज्झिअजरमरणाणं समत्तदुक्खत्तसत्तसरणाणं / तिहुअणजणसुहयाणं अरिहंताणं नमो ताणं // 22 // 14 // अरिहंतसरणमलसुद्धिलद्धसुविसुद्ध सिद्धबहुमाणो / पणयसिररइयकरकमलसेहरो सहरिसं भणइ // 23 // 15 // कम्मढक्खयसिद्धा साहाविअनाणदंसणसमिद्धा / सव्वट्ठलद्धिसिद्धा ते सिद्धा इंतु मे सरणं // 24 // 16 // . तिअलोअमत्थयत्था परमपयत्था अचिंतसामत्था / मंगलसिद्धपयत्था सिद्धा सरणं सुहपसत्था // 25 // 17 // वचनरूप अमृतथी त्रणेय जगतना जीवोनी वेदनाने शमावता तेमज तेमने गुणना मार्गे स्थापता अने ए रीते जीवलोकने संसाररूप भयंकर कुवामाथी उद्धरता श्री अरिहंतदेवो मने 15 शरण हो // 20 // 12 // .... अति आश्चर्यकारी गुणोथी शोभता अने पोताना यशरूप चन्द्रथी सर्व दिशाओना अन्तभाग सुधी प्रकाशने विस्तारता तेमज शाश्वत, अनादि, अनन्त एवा श्री अरिहंतदेकोना शरणने हुँ स्वीकारुं छु // 21 // 13 // - - जरा-वृद्धावस्था अने मरणथी सर्वथा रहित, अनेक प्रकारनां दुःखोथी पीडाता आत्माओनां 20 साचा शरण-आश्यरूप अने त्रणेय लोकना जीवोने सुख आपनारा एवा श्री अरिहंतदेवोने हुं नमुं छु // 22 // 14 // श्री सिद्ध भगवंतोतुं शरण आ मुजब श्री अरिहंत देवना शरणथी कर्ममलनी शुद्धि थवाना योगे, जेने श्री शुद्धस्वरूपमय सिद्ध भगवंतो प्रत्ये पूर्ण बहुमान प्रगट थयुं छे ते पुण्यवान आत्मा भक्तिथी नमेला पोताना 25 मस्तकने विषे करकमलोवडे अंजलि करीने हर्षसहित आ रीतिए कहे छे // 23 // 15 // . आठेय प्रकारना कर्मना क्षयवडे सिद्ध थयेला, स्वाभाविक निरावरण एवा ज्ञान अने दर्शनवडे समृद्ध अने सर्व अभिलषित अर्थो अने लब्धिओनी प्राप्तिथी सिद्ध-कृतकृत्य एवा . श्री सिद्धभगवंतोनुं मने शरण हो // 24 // 16 // 30 त्रण लोकना मस्तकपर-सिद्धशिलानी उपर रहेला, परमपदे( मोक्षमां) रहेला, अचिन्त्य सामर्थ्यवाग, परममंगलभूत सिद्धिपदे रहेला अने परम-अनंत-अव्याबाध सुखना कारणे प्रशस्त एवा श्री सिद्धभगवंतो मने शरण हो // 25 // 17 //

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