Book Title: Namaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Author(s): Dhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vardhak Sabha
View full book text ________________ विभाग] 469 नमस्कार स्वाध्याय। तथैव विदिक्षु दर्शनादीनि चत्वारि पदानि ध्यायत / तत्तल्लिखनविधिस्त्वयं-ॐ ह्रीं दर्शनाय स्वाहा' आमेयकोणे 1, ॐ ही ज्ञानाय खाहा' नैर्ऋत्यां 2, ॐ हीं चारित्राय स्वाहा' वायव्ये 3, 'ॐ ही तपसे स्वाहा' ईशानकोणे 4, अनेन क्रमेण लिखेत् / एवं अष्टदलं प्रथमवलयम् // 197 // (7) बीयवलयम्मि अडदिसि दलेसु साणाहए सरह वग्गे।। अंतरदलेसु अट्ठसु झायह परमिट्ठिपढमपए // 198 // 8 // व्याख्या-प्रथमवलयबाह्यतो मण्डलाकारं षोडशदलं न्यसेत् / तत्र द्वितीयवलये अष्टसु एकान्तरितदिग्दलेषु सानाहतान्-अनाहतबीजसहितान् अष्टौ वर्गान् 'अ, क, च, ट, त, प, य, श'रूपान् क्रमेण लिखित्वा यूयं स्मरत, तत्र प्रथमवर्गे षोडश वर्णाः कवर्गादिषु पञ्चसु प्रत्येकं पञ्च पञ्च वर्णा अन्तिमवर्गद्वये प्रत्येकं चत्वारो वर्णाः, ततोऽष्टसु वर्गाणामन्तरदलेषु परमेष्ठिपदानि- 'ॐ नमो अरिहंताणं' इत्येवंरूपाणि ध्यायत, अष्टस्वपि अन्तरदलेषु 'ॐ नमो अरिहंताणं' इत्येवं लिखेदित्यर्थः। एवं 10 द्वितीयवलयम् // 198 // (8) 1. 'ॐ ह्रीं सिद्धेभ्यः स्वाहा' - आ प्रमाणे पूर्व दिशामां लखतुं / 2. 'ॐ ह्रीं आचार्येभ्यः स्वाहा' - आ प्रमाणे दक्षिण दिशामां लखवू / 3. 'ॐ ह्रीं उपाध्यायेभ्यः स्वाहा' - आ प्रमाणे पश्चिमदिशामां लखवु / 4. 'ॐ ह्रीं सर्वसाधुभ्यः स्वाहा' * आ प्रमाणे उत्तरदिशामां लखवू / 5. 'ॐ ह्रीं दर्शनाय स्वाहा' आ प्रमाणे अग्निकोणमां लखवु / 6. 'ॐ ह्रीं शानाय स्वाहा' - आ.प्रमाणे नैर्ऋत्यकोणमां लखवं। 7. 'ॐ ह्रीं चारित्राय स्वाहा' - आ प्रमाणे वायव्यकोणमां लखवू / 8. 'ॐ ह्रीं तपसे स्वाहा' - आ प्रमाणे ईशानकोणमां लखवु / आ प्रमाणे आठ पांखडीवाळु वलय आलेखq // 197 // (7) [ प्रथम वलय ] 20 पहेला वलयनी बहार सोळ पांखडीवाळु मंडलाकारे फरतुं बीजुं वलय आलेखq / ते सोळ पांखडीओ पैकीनी एकांतरित आठ दिशाओ तरफनी आठ पांखडीओमां अनाहत (द्विकुंडलाकार) बीज साथे अनुक्रमे आठ वर्गो-अ क च ट त प य श-लखीने तेनुं ध्यान करवू / प्रथम वर्गमां सोळ वर्णो (अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ अं अः-स्वरो), कवर्ग आदि पांचमां पांच पांच वर्णो ( कवर्ग-क ख ग घ ङ चवर्ग-च छ ज झ ञ टवर्ग-ट ठ ड ढ ण; 25 तवर्ग-त थ द ध न; पवर्ग-प फ ब भ म-व्यंजनो) अने छेल्ला यवर्ग ( य र ल व ) तेमज शवर्ग ( श ष स ह )-बेमां चार चार वर्णो लखवा / ते आठे वर्गोना अंतरनी-बब्बे वञ्चेनी आठे पांखडीओमां 'ॐ नमो अरिहंताणं' पद लखतुं // 198 // (8) [ बीजुं वलय ] / , केटलाक प्रसिद्ध थयेला पटोमा 'ॐ ह्रीं श्री सिद्धेभ्यः स्वाहा' आलेखेखें जोवामां आवे छे; परंतु अहीं मूळ के व्याख्यामां 'श्री' पाठनो निर्देश करेलो नथी। वळी दर्शन आदि पदोमां उपर्युक्त व्याख्यामां दर्शावेल पाठथी भिन्न 'ॐ नमो दसणस्स, ॐ नमो नाणस्स, ॐ नमो चरित्तस्स, ॐ नमो तवस्स', एवो पाठ पण आपेलो जोवामां आवे छे /
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