Book Title: Namaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Author(s): Dhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vardhak Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 515
________________ 428 सिरिरयणसेहरसूरिविश्य-'सिरिसिरिवालकहा तो सिद्धचक्कयतोद्धारविहिसंदभो। [प्राकृत अत्राम्नायः-s' इति बीजं 'ॐकारोदरे न्यसेत् , एतच्च बीजद्वयं 'हाँ'कारोदरे न्यसेत् ततश्च 'ही' कारस्येकारस्वरात् रेखां पश्चाद् वालयित्वा द्विःकुण्डलाकारेणाऽनाहतेन तद्वीजत्रयमपि वेष्टयेत्, पुनः कीदृशम् ?-'अन्त्यस्वरं'-अन्त्ये स्वराः-अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ अं अः-एते षोडश यस्य तत् , पूर्वोक्तस्य सर्वतः स्वरान् न्यसेदित्यर्थः, इत्येतावत् कर्णिकायां 5 ध्येयम् // 196 // (6) झायह अडदलवलये सपणव-मायाइए सुवाईते / सिद्धाइए दिसासुं विदिसासु दसणाईए // 197 // 7 // व्याख्या-अथ पीठं लिखित्वा तत्पार्थे वृत्तमण्डलं लिखेत् , तदुपरि अष्टदलकमलाकारं वलयं लिखेत् , तत्राष्टदलवलये चतुर्पु दिक्पत्रेषु प्रणव-मायादिकान् स्वाहान्तान् सिद्धादिकान् चतुर्थीबहुवच10 नान्तान् ध्यायत, प्रणव-ॐकारो, माया-'हाँ'कारस्तौ आदी येषां ते तान् , तथा 'स्वाहा' अन्ते येषां ते तान् / लिखनविधिः यथा-ॐ हाँ सिद्धेभ्यः स्वाहा' पूर्वस्यां 1, ॐ ही आचार्येभ्यः खाहा' दक्षिणस्यां 2, ॐ ही उपाध्यायेभ्यः स्वाहा' पश्चिमायां 3, ॐ ही सर्वसाधुभ्यः स्वाहा' उत्तरदिग्दले 4, ____ अहीं आनाय आ प्रमाणे छे-'ऽह' ए बीजने 'अ'कारना उदरमा मूकवो अने ते बने ('ई' अने ॐकार ) ने 'हाँ'कारना उदरमा आलेखवा / पछी 'हाँ'कारना 'ई'कार खरनी रेखाने 16 पाछळ वाळीने बे आवर्तथी-कुंडलाकारे (अनाहतरूपे) ते त्रणे बीजनुं वेष्टन करी लेवु / अनाहत पछी सोळ स्वरो ( अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ अं अः) वर्तुळाकारे स्थापन करवा-आ रीते यंत्रनी कर्णिकानुं ध्यान (आलेखन ) करवु // 196 // (6) , .. ___ आ रीते पीठ आलेखीने तेने फरतुं गोळाकार वलय करवू / ते वलयने फरती कमळनी आठ पांखडीओ दोरवी / ते आठ पांखडीओ पैकी चार दिशाओ तरफनी चार पांखडीओमां प्रणव एटले 209 कार अने माया एटले 'हाँ'कार तेमज अंते 'स्वाहा' पूर्वक 'सिद्ध' आदि पदोनुं चतुर्थी बहु वचन पूर्वक ध्यान (माटे आलेखन ) करवू अने (ते प्रमाणे ) दर्शन आदि पदोनुं विदिशानी पांखडीओमां ध्यान ( माटे आलेखन ) करवू / ते आ प्रमाणे: केटलाक मंत्रशास्रोमा नाद, बिंदु अने कला एत्रण भिन्न पदार्थों मानवामां आव्या छे. त्या नाद (A), बिंदु(१) भने कला (1) ने आ रीते-(A) आलेखवामां आव्या छे। आवी जातना आलेखनवाळा यंत्रो पण मळे छ। ____ आ विषयमा आचार्य भगवंत श्री सिंहतिलकसूरि 'मंत्रराजरहस्य' मां कहे छे केरपरं हं त्रिकोणरूढं ईस्वरखण्डेन्दुबिन्दुनादाब्यम्। आज्ञाचक्रे पश्यति वह्निपुरेशाक्षिपरसंक्षे॥ ते ( साधक ) वह्निपुर अने ईशाक्षि एवी अन्य संज्ञाओ छे जेने एवा आज्ञाचक्रमा (आ चक्र भ्रूमध्यमा आवेलु छे) छे पर जेने एवा 'ह'ने ('ह'ने) त्रिकोणथी रूढ (जेना ऊर्ध्वभागमा त्रिकोण छे एवो) तथा ई खर, चंद्रकला, बिन्दु अने नादथी संपन्न जुए छे. अहीं 'ही' नुं ध्यान छे. 4 श्रीसिंहतिलकसूरि अनाहत विशे जणावतां कहे छे के:नादो भृङ्गध्वनिरिव शखिन्युत्थस्त्वनाहतो नादः॥ . .. -मत्रराजरहस्य, प्रथम प्रस्थान, श्लो०८. ह. लि.॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592