Book Title: Namaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Author(s): Dhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vardhak Sabha
View full book text ________________ 472 सिरिरयणसेहरसूरिविरहय-'सिरिसिरिवालकहा'तो सिद्धचक्कयंतोद्धारविहिसंदम्भो। [प्राकृत अरिहं-सिद्ध-गणीणं-गुरु-परमादिट्ठणंतसुगुरूणं / . दुरणंताण गुरूण य सपणव-बीयाओ ताओ य // 202 // 12 // व्याख्या-अथाष्टगुरुपादुका एवाह-अर्हतां पादुकाः 1, सिद्धानां पादुकाः 2, गणीनांआचार्याणां 3, गुरूणां-पाठकानां 4, परमगुरूणां 5, अदृष्टगुरूणां 6, अनन्तगुरूणां 7, दुरणंता5णंति-अनन्तानन्तगुरूणां च 8, इत्येवमष्टानामपि ताः पादुकाः सप्रणवबीजाः-प्रणवबीजाभ्यां सहिताः ॐ हौंयुता इत्यर्थः, ॐ ह्रीँ अर्हत्पादुकाभ्यो नमः' इत्थं सर्वा अपि लिखेत् // 202 // (12) रेहाद्गकयकलसागारामिअमंडलं व तं सरह / चउदिसि विदिसि कमेणं जयाइ-जंभाइकयसेवं // 203 // 13 // व्याख्या-रेखाद्विकेन यत्रोर्श्वभागाद् वामदक्षिणनिर्गताऽन्योऽन्यग्रथितप्रान्तरेखाद्विकेन कृतं 10 यत् कलशाकारं अमृतमण्डल तद्वत् तत् स्मरत-कलशाकारं लिखेदित्यर्थः / किंविशिष्टं तत् ? चतुर्दिक्षु विदिक्षु च क्रमेण जयादिकाभिः चतसृभिः जया 1, विजया 2, जयन्ती 3, अपराजिताभिः 4; तथा जम्भादिभिर्जम्मा 1, स्तम्भा 2, मोहा 3, बन्धाभिः 4; कृता सेवा यस्य तत् / तत्र जयादिकाश्चतस्रः क्रमेण पूर्वादिदिक्षु जम्भादिका आग्नेय्यादिषु विदिक्षु लिखेत् // 203 // (13) (हवे ए आठ गुरुपादुकाओ जणावे छे-) 1 अरिहंतोनी पादुकाओ, 2 सिद्धोनी पादुकाओ, 15 3 गणी एटले आचार्योनी-गणधरोनी पादुकाओ, 4 गुरु एटले पाठक-उपाध्यायोनी पादुकाओ, 5 परम गुरुओनी पादुकाओ, 6 अदृष्ट गुरुओनी पादुकाओ, 7 अनंत गुरुओनी पादुकाओ अने 8 दुरन्तानन्त एटले अनंतानन्त गुरुओनी पादुकाओने प्रणव एटले ॐकार अने बीज ह्रींकार पूर्वक लखवी। (ते आ प्रकारे 1. ॐ ह्रीँ अर्हत्पादुकाभ्यो नमः। 2. ॐ ह्री सिद्धपादुकाभ्यो नमः / 20 3. ॐ ह्रीँ गणधरपादुकाभ्यो नमः। 4. ॐ ह्रीँ गुरुपादुकाभ्यो नमः। 5. ॐ ह्रीँ परमगुरुपादुकाभ्यो नमः। 6. ॐ ह्रीँ अदृष्टगुरुपादुकाभ्यो नमः / 7. ॐ ह्रीं अनन्तगुरुपादुकाभ्यो नमः। 8. ॐ ह्रीं अनन्तानन्तगुरु पादुकाभ्यो नमः) // 202 // यंत्रना ऊपरना भागथी डाबी तरफथी अने जमणी तरफथी एम बे रेखाओ नीकळे छ / छल्ले 25 बने रेखाओना छेडे मळी जतां जे आकृति थाय ते कलशाकार 'अमृतमंडळ' छे एवं ध्यान करवू / .. ते यंत्रनी चार दिशाओ अने विदिशाओमा क्रमशः जया अने जंभा वगैरे यंत्रनी सेवा करे छे ते रीते ( वलयाकारे.) आलेखन करो। ( ते आ प्रकारेदिशाओमां विदिशाओमा 1. ॐ ह्रीँ जयायै नमः। 2. ॐ ह्रीं जम्भायै नमः। 3. ॐ ह्रीँ विजयायै नमः। 4. ॐ ह्रीं स्तम्भायै नमः। .. 5. ॐ ह्रीं जयन्त्यै नमः। 6. ॐ ह्रीँ मोहायै नमः। 7. ॐ हाँ अपराजितायै नमः। 8. ॐ ह्रीं बन्धायै नमः ) // 203 // 30
Loading... Page Navigation 1 ... 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592