Book Title: Namaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Author(s): Dhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vardhak Sabha

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Page 508
________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय / 461 अकिञ्च एकैकोऽप्यभिवाञ्छितानि वितरेद् ध्यातोढुंदादिसुदा, सज्ज्येष्ठाः परमेष्ठिनः किमु परं पश्चापि चानुस्मृताः 1 तत् कः स्वस्य रिपुः 1 स्वरिच्छति न कः 1 काङ्केत्त मोक्षं न कः ? __ योऽस्मिन् श्रीपरमेष्ठिपञ्चकनमस्कारे न बद्धादरः // 1 // किं दानैः 1 किमु भूरिशास्त्रपठनैः ? किं देवपादार्चनैः ? किं ध्यानैस्तपसा च किं 1 किमथवा कूटैविवेकैरपि ? चेत संसारसरित्पतौ तरिसमा नैवास्ति कल्याणभू भक्तिः श्रीपरमेष्ठिपञ्चकनमस्कारे नृणां निश्चला // 2 // वह्नयुद्दीप्तगृहादनमणिवजन्येष्वमोघास्त्रवत्, - सिन्धौ मजदनल्पनौफलकवत् पातेऽथवाऽऽलम्बनम् / . गृह्णन् पश्चनमस्कृति सकलमप्यन्यद् विहायादराद्, जीवो जीवितविप्लवेऽपि न भवत्येवापदामास्पदम् // 3 // स्थिति-गति-सुख-दुःख-स्वम-निद्रान्त-हाड___टवी(वि)-निशि-दिनपातोत्पातवेलासु येषाम् / व्रजति न परमेष्ठिश्रेष्ठमन्त्रो मनस्तस्त इह भवसमुद्राद् द्राग् बहिष्टाद् भवन्ति // 4 // (कहारयणकोसो-कथानक 10 मुं. पृ. 66 आ) श्री अरिहंतादि एक-एकनुं पण प्रसन्नतासहित ध्यान करवामां आवे तो ते अभिवांछितोने आपे छे, तो पछी अनुक्रमे वारंवार स्मरण करायेला सत्पुरुषोमां ज्येष्ठ एवा पांचेय परमेष्ठिओ शुं न आपे? 20 . . तेथी, पोतानो शत्रु कोण छे ? स्वर्गने कोण इच्छतो नथी ? मोक्षनी आकांक्षा विनानो कोण छे ? / (उत्तर-) जे आ पंचपरमेष्टिनमस्कारमा आदवाळो नथी ते // 1 // संसार-समुद्रमां नौका समान अने सर्व कल्याणोनी जन्मभूमि एवा श्रीपंचपरमेष्ठी नमस्कारने विषे भक्ति नथी तो दान देवाथी शुं ? घणां शास्त्रो भणवाथी शुं ? देवोनी अर्चनाथी शुं ? ध्यान धरवाथी शुं ? तप तपवाथी शुं ? अने कृत्रिम विवेक करवाथी पण शुं? // 2 // 25 आगथी सळगता घरमांथी जेम कोई महामूलां रत्नोने ज साथे राखे, लडाईमां अमोघ अस्त्रने ज साथे राखे, दरियामां बूडतो माणस जेम होडीना मोटा पाटियानो ज आश्रय ले, पडतो माणस आलंबनने ज पकडी ले तेम जीवनसंग्राममां जीव बीजुं बधुं छोडीने एक मात्र पंचनमस्कार मंत्रनो ज आदरपूर्वक आश्रय ले तो ते कदी पण आपत्तिओनुं भाजन बनतो नथी // 3 // . बेसतां, चालतां, सुखमां, दुःखमां, स्वप्नमां (ऊंघतां), जागतां, घरमां, जंगलमां, रात्रे, दिवसे, 30 पतन वखते के उत्थान वखते (अर्थात् गमे ते प्रसंगे) जेमना मनमांथी (पंच) परमेष्ठी-महामंत्र दूर नथी थतो तेओ संसार-समुद्रमांथी शीघ्र बहार थाय छे / (अर्थात् निर्वाण मेळवे छे / ) // 4 // (कथारत्रकोष-'श्रीदेवनृप' कथानकः 10 मुं. पृ. 66 आ) * आ श्लोको संस्कृत विभागमा लई शकाय तेम छे, पण संदर्भनी एकविषयता जाळववा माटे अहीं लीधा छ /

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