Book Title: Namaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Author(s): Dhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vardhak Sabha

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Page 448
________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। 10 सत्त य सयाणि वीसा छण्हं पणसहस चत्तसत्तण्डं / चालीससहस तिसया विसुतरा हुंति अट्ठण्हं // 4 // लैक्खतिगं बासट्ठीसहस्स अट्ठ य सयाणि तह असिई / नवकारनवपयाणं भंगयेसंखा मुणेयव्वा // 5 // व्याख्या-गाथात्रयं स्पष्टम् // 3,4,5 // एषां भङ्गानां नामान्याह तत्थ पढमाऽणुव्वी चरमा पच्छाणुपुविआ नेया / सेसा उ मज्झिमाओ अणाणुंपुव्वीओं सव्वाओ // 6 // व्याख्या स्पष्टा / अत्र पञ्चपदीमाश्रित्य विंशत्युत्तरशतभङ्गकयन्त्रकं लिख्यते // 6 // स्थापना यथा आनुपूर्वीक्रमकोष्ठकम् / 12345 12453 / 12452 / 23451 / 21345 21354 21453 31452 32451 13245 13254 14253 14252 24351 31245 31254 41253 41352 42351 23145 23154 '24153 34152 34251 32145 32154 42153 42152 43251 12435 12534 - 12543 / 13542 / 23541 21435 21534 21543 31543 32541 14235 15234 15243 15342 25341 41235 51234 51243 51342 52341 24135 25134 25143 35142 35241 42135 52134 / 52134 54142 53241 13425 13524 | 14523 / 14532 14532 / 24531 31425 31524 41523 41532 42531 14325 15324 / 15423 15432 25431 41325 51324 51423 51432 52431 34125 35124 45123 45133 45231 43125 53124 54123 54132 / 54231 23415 / 23514 24513 | 34512 / 34521 32415 32514 42513 43512 43521 24315 25314 25413 35412 35421 42315 52314 52413 53412 53421 34215 35214 45213 45312 45321 43215 / 53214 / 54213 / 54312 | 54321 वीस छे, सातनी भंगसंख्या पांच हजार चालीस छे, आठनी संख्या चालीस हजार त्रणसो वीस छे अने नवकारनां नवपदोनी भंगसंख्या त्रण लाख बासठ हजार आठ सो ऐंसी छे / / 3-5 // 1 सत्तन्हें A1 2 अट्ठन्हें / 3 लक्खुति A / 4 °संख्या उमु००। 5°मा उKAL 6°णुपूज्वी सAN 7 सव्वा उ AT 8 ते यथा A /

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