Book Title: Namaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Author(s): Dhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vardhak Sabha
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________________ 157 विभाग] नमस्कार स्वाध्याय / अरिहंताइ निअमा साहू साहू अ तेसु भइअव्वा / तम्हा पंचविहो खलु हेउनिमित्तं हवइ सिद्धो // 133 // 1019 // श-नमस्कार संक्षिप्त नथी तेम विस्तृत पण नथी / जो संक्षिप्त होय तो ते सिद्ध अने साधुने एम वे प्रकारे होय, अने विस्तारथी तो अनेक प्रकारे होय, माटे पंचविध नमस्कार योग्य नथी / (132) वि०—आ सूत्र संक्षेप अने विस्तार ए बेनी मर्यादामां नथी / ए 'सामायिकसूत्र'नी माफक 5 संक्षिप्त नथी अने चौद पूर्वनी माफक विस्तृत पण नथी; परंतु आ 'नमस्कारसूत्र' ए बेथी भिन्न छ। ___संक्षेप बे प्रकारना होय छे एटले जो आ संक्षिप्त होय तो तेमां पण बे प्रकारो संभवे / 'सिद्ध' अने 'साधु' एम बे प्रकारनो ज नमस्कार संभवित छे, केमके परिनिर्वाण पामेला अरिहंत वगेरे 'सिद्ध' शब्दथी ग्रहण करी शकाय, अने संसारवर्ती आचार्य, उपाध्याय पण 'साधु' शब्दथी प्रहण करी शकाय / 10 वळी, आ नमस्कारसूत्र विस्तृत पण नथी / एनो विस्तार तो अनेक प्रकारनो जाणवा मळे छ / अरिहंतोमां तो श्रीऋषभदेव, श्रीअजितनाथ, श्रीसंभवनाथ, श्रीअभिनंदनस्वामी, श्रीसुमतिनाथ, श्रीपद्मप्रभस्वामी, श्रीसुपार्श्वनाथ, श्रीचंद्रप्रभस्वामी वगेरेथी श्रीमहावीरस्वामी पर्यंत चोवीश अरिहतो तेमज सिद्धोने पण नमस्कार थाओ एवो विस्तार थई शके। ___वळी, सिद्धोमां अनन्तरसिद्ध, परंपरसिद्ध, प्रथम समयसिद्ध, द्वितीय-तृतीय समयसिद्ध 15 वगेरेथी मांडीने असंख्येय, अनंत समयना सिद्धोने नमस्कार थाओ; तेमज तीर्थसिद्ध, स्वलिंगसिद्ध, प्रत्येकबुद्धसिद्ध आदि विशेषणोथी विशिष्ट एवा तीर्थंकर सिद्धोने नमस्कार थाओ; तेमज आचार्य अने उपाध्याय परमेष्ठीना पण अनेक भेदो थाय छे-आ प्रकारे तो अनंतगणो विस्तार छ। * जे कारणथी आम थाय छे ते कारणथी बने पक्षो जोतां पांच प्रकारनो नमस्कार युक्त नथी; एवो 'आक्षेप' मानी शकाय। 132, ( 1018) 20 8. प्रसिद्धि द्वार। उपर्युक्त द्वारमा उपस्थित करेली शंकाओनुं समाधान आ प्रसिद्धि द्वारमा करवामां आवे छे उपर्युक्त द्वारमा जे 'ण वि संखेवो' एम कर्दा छे ते ठीक नथी, कारण के, ते नमस्कार संक्षेपात्मक छे अने 'सिद्ध' तेमज 'साधु' मात्र कहेवाथी बधानो संग्रह थई जात एम कहेवू पण बराबर नथी, केमके, तेनां बीजां कारणो पण छे / ते जो के अगाउ जणावेलां छे पण अहीं 25 था गाथामा जणावीए छीए श०-अरिहंत वगेरे नियमथी साधु छे पण साधुओ तेमां भजनाए छे, माटे पांच प्रकारना हेतु निमित्तथी नमस्कार पांच प्रकारनो छे / ( 133 ) वि०-अरिहंतो वगेरे नियमथी साधुओ छे, कारण के तेमना गुणोमां तेनो सद्भाव छे; पण ते अरिहंतोमा साधुओ भजनाए छे, तेथी बधा साधुओ अरिहंत वगेरे नथी। केटलाक अरिहंतो 30