Book Title: Namaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Author(s): Dhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vardhak Sabha
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________________ 170 [प्राकृत षट्खण्डागमस्य संदर्भः। नावृतावस्थायां मङ्गलीभूतकेवलज्ञानाद्यभावः आव्रियमाणकेवलाद्यभावे तदावरणानुपपत्तेः / जीवलक्षणयोर्ज्ञान-दर्शनयोरभावे लक्षणस्याप्यभावापत्तेश्च / न चैवं तथाऽनुपलम्भात् / न भस्मच्छन्नाग्निना व्यभिचारः ताप-प्रकाशयोस्तत्राप्युपलम्भात् / पर्यायत्वात् केवलादीनां न स्थितिरिति चेन्न, अत्रुट्यज्ज्ञानसंतानापेक्षया तत्स्थैर्यस्य विरोधाभावात् / न छद्मस्थज्ञान-दर्शनयोरल्पत्वादमङ्गलत्वमेकदेशस्य, 5 माङ्गल्याभावे तद्विश्वावयवानामप्यमङ्गलत्वप्राप्तेः / रजोजुषां ज्ञान - दर्शने न मङ्गलीभूतकेवलज्ञानदर्शनयोरवयवाविति चेन्न / ताभ्यां व्यतिरिक्तयोस्तयोरसत्त्वात् / मत्यादयोऽपि सन्तीति चेन्न, तद्वस्थानां मत्यादिव्यपदेशात् / तयोः केवलज्ञान-दर्शनाङ्कुरयोर्मङ्गलत्वे मिथ्यादृष्टिरपि मङ्गलं, तत्रापि समाधान-ए कई दोष नथी। केमके, एवो प्रसंग तो अमने इष्ट ज छे; परंतु एम मानी लेवा छतां मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद वगेरेनुं मंगलपणुं सिद्ध थई शकतुं नथी / केमके, तेमां जीवत्व 10जोवातुं नथी / मंगल तो जीव ज छे, अने ते जीव केवलज्ञान आदि अनंत धर्मात्मक छ। ____ आवृत अवस्थामा अर्थात् केवलज्ञानावरण आदि कर्मबंधननी दशामां मंगलभूत केवलज्ञान आदिनो अभाव छ; अर्थात् ए अवस्थामां ए सर्वथा जोवाता नथी / जो कोई एवो प्रश्न करे, तो आव्रियमाण अर्थात् जे कर्मो द्वारा आवृत थाय छे एवा केवलज्ञान आदिना अभावमा केवलज्ञान आदिने आवरण करनारां कर्मोनो सद्भाव सिद्ध थई शकशे नहीं। बीजं, जीवना 15 लक्षणरूप ज्ञान अने दर्शननो अभाव मानतां लक्ष्यरूप जीवना अभावनी पण आपत्ति आवी जाय छे, परंतु एम नथी / केमके, प्रत्यक्ष आदि प्रमाणोथी जीवनी उपलब्धि न थाय एवं जोवामां आवतुं नथी, परंतु प्रत्यक्ष आदि प्रमाणोथी पण तेनी उपलब्धि थाय ज छ / अहीं भस्मथी ढंकायेला अग्निनी साथे व्यभिचार दोष पण आवतो नथी / केमके, ताप अने प्रकाशनी त्यां पण उपलब्धि थाय छ / 20 विशेषार्थ—आवृत अवस्थामां पण केवलज्ञान वगेरे जोवाय छे, ते जीवना गुणो छ / जो आ अवस्थामां तेमनो अभाव मानवामां आवे तो जीवनो पण अभाव मानवो पडशे / आ अनुमानने ध्यानमा राखीने शंकाकारनुं कहेवू छे के, आ रीते भस्मथी ढंकायेला अग्निथी व्यभिचार थशे / केमके, भस्माच्छादित अग्निमां अग्निरूप द्रव्यनो सद्भाव जोवाय छे, परंतु तेना धर्मरूप ताप अने प्रकाशनो सद्भाव जोवातो नथी। आ रीते हेतु विपक्षमां चाल्यो जाय छे, 25 आथी ते व्यभिचरित थाय छे / आ रीते शंकाकारना भस्मंथी ढंकायेला अग्निनी साथे व्यभिचारनो दोष देवो ठीक नथी / केमके, राखथी ढंकायेला अग्निमां पण तेना गुणधर्म ताप अने प्रकाशनी उपलब्धि अनुमान आदि प्रमाणोथी बराबर थाय छ। शंका-केवलज्ञान वगेरे पर्यायरूप छे, एटला माटे आवृत अवस्थामां तेनो सद्भाव बनी न शके। समाधान-ए शंका पण ठीक नथी। केमके, कदापि नहि तूटनारी ज्ञानसंताननी अपेक्षाए 30 केवळज्ञाननो सद्भाव मानी लेवामां कोई विरोध आवतो नथी। ___ छद्मस्थ अर्थात् अल्पज्ञानीओनां ज्ञान अने दर्शन अल्प होवा मात्रथी अमंगल बनी शकतां नथी / केमके, ज्ञान अने दर्शनना एक देशमा मंगलपणाना अभावनो स्वीकार करी लेतां ज्ञान अने दर्शनना संपूर्ण अवयवोने पण अमंगलरूप मानवा पडशे /