Book Title: Namaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Author(s): Dhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vardhak Sabha
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________________ 260 ध्यानविचारः। [प्राकृत 8. अनभिगृहीता : घणां कार्यो करवानां होय त्यारे कोई माणस कोईने पूछे के 'हमणां हुं शुं करूं ?' त्यारे बीजो माणस जवाब आपे के 'तने ठीक लागे ते कर' आवी अचोकस भाषा ते अनभिगृहीता भाषा कहेवाय छे / 9. अभिगृहीता: 'हमणां आ करजे' अने 'हमणां आ न करीश' आ प्रमाणे जे चोक्कस 5 कहेवामां आवे ते अभिगृहीता भाषा छ / 10. संशयकरणी : जेना अनेक अर्थो नीकळता होवाथी बीजाने संशय उत्पन्न थाय एवी जे भाषा ते संशयकरणी भाषा कहेवाय छे / जेमके 'सैंधव लावो' एम कहेवामां आवे त्यारे बीजाने संशय उत्पन्न थाय छे के 'शुं लावq ?'-मीठं लावq, वस्त्र लावq, पुरुष लाववो, के घोडाने लाववो ? कारणके 'सैंधव' शब्दना लवण, वस्त्र, पुरुष अने घोडो एम अर्थ थाय छे / तेथी आवी. भाषा संशयकरणी 10 कहेवाय छ। 11. व्याकृता : ‘आ देवदत्तनो भाई छे' वगेरे स्पष्ट अर्थवाळी भाषा ते व्याकृता भाषा छ / 12. अव्याकृता : अत्यंत गंभीर अर्थवाळी भाषा ते अव्याकृता भाषा कहेवाय छे / तेमज अस्पष्ट अर्थवाळी नाना बाळको वगेरेनी भाषा पण अव्याकृता भाषा कहेवाय छे / आ रीते भाषाना कुल 42 प्रकारो छे। परिचय श्री नमस्कार महामंत्रनी आराधनामां 'ध्यान' एक मुख्य अंग छे / तेथी ध्यानविषयक ग्रंथोनी तपास करतां पाटणना श्री हेमचंद्राचार्य ज्ञानमंदिरना भंडारमा डा. नं. 50, प्र. नं. 993 मां श्री 'ध्यानविचार' नामनो आ लघु ग्रंथ मळी आव्यो छे / / आ ग्रंथना आधाररूपे कोई महान् मौलिक ग्रंथ हशे एवं अनुमान थाय छे / ते शोधवा माटे 20 प्रयासो चालु छे / श्री नमस्कार महामंत्रनी आराधनामां ध्यानयोग जेवा अतीव महत्त्वना अंग उपर आवा व्यवस्थित ग्रंथथी मुमुक्षु पुरुषोने पुष्ट आलंबन थाय एवा पुण्य हेतुथी आ ग्रंथमां यथोचित शुद्धि करी विशेष व्यवस्थित रीते संपादित करी गुजराती अनुवाद साथे अहीं प्रकाशित कर्यो छे / आ कृतिना कर्ता विशे हस्तलिखित प्रतिमां कोई उल्लेख मळतो नथी। 15 PARANA KABP