Book Title: Namaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Author(s): Dhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vardhak Sabha
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________________ 134 णमोकारणिजुत्ती। [प्रांकृत अरिहंतनमुक्कारो सव्वपावप्पणासणो। मंगलाणं च सव्वेसिं पढमं हवइ मंगलं // 40 // 926 // कम्मे सिप्पे' अ विजों य मंते जोगे' अ आगमे / अत्थे जत्ती अभिप्पाएं तवे कम्मक्खए इय // 41 // 927 // 5 अव्यर्थ एवं शस्त्र धारण कराय छे ते प्रमाणे मरण समये बारे अंगोने छोडीने जे कारणे अरिहंतने. नमस्कार करवामां आवे छे ते कारणथी ते वार अंगना अर्थवाळो कहेवाय छ / बधाये बारे अंगो परिणामनी विशुद्धि मात्रनां कारण छे, अने नमस्कार पण तेनुं ज कारण छे, तेथी नमस्कारने बार अंगनो सार कह्यो छे / एवा प्रकारना ( मरण समयना) देश-काळमां समग्र बार प्रकारना श्रुतस्कंधर्नु अनुचिंतन 10 करवानुं अत्यंत शक्तिशाली चित्तवाळाने पण शक्य होतुं नथी / माटे अरिहंत नमस्कारहुँ ज अनुस्मरण-चिंतन शुभचित्ते करवू जोईए / 39, (925) (अरिहंत विशे उपसंहार करतां कहे छे-) श०–अरिहंतने करेलो नमस्कार बधांये पापनो नाश करनारो छे अने बांये मंगलोमां उत्कृष्ट मंगल स्वरूप छे / (40) . 15 वि०-जे नीचे पाडे ते 'पाप', अथवा हितने पी जाय तेने 'पाप' कहे छे / जाति सामान्यनी अपेक्षाए आठे प्रकारनां कर्म पाप कहेवाय छे / अरिहंतने करेलो नमस्कार, ते पापोनो नाश करे छ। बधांये नाम आदि मंगलोमां उत्कृष्ट अर्थकारी होवाथी प्रथम मंगल कहेवाय छे अथवा पांचे परमेष्ठीओ जे भावमंगल स्वरूप छे तेमां आ अरिहंत प्रथम मंगलरूप छे / 40, (926) (2) सिद्ध भगवंतने नमस्कार / . 20 सिद्ध शब्द पिधु, साधू अथवा विधू ए धातुओथी बने छ। जेणे ते ते गुणो पूर्णरूपे प्राप्त करी लीधा छे तेने 'सिद्ध' कहे छे / ते सिद्ध सामान्यथी चौद प्रकारे छे। तेमां 1 नामसिद्ध, 2 स्थापनासिद्ध अने 3 द्रव्यसिद्ध / 1. कोईनुं सिद्ध एवं नाम राख्युं होय ते 'नामसिद्ध' कहेवाय / 2. कोई वस्तुविशेषनी सिद्धरूपे स्थापना करीए ते 'स्थापनासिद्ध' कहेवाय / 3. द्रव्य सिद्ध (रंधाई गयेला चोखानी माफक ) जे गुणवडे संपूर्ण छे अने सामान्यपणे ते द्रव्य पण छे तेथी ते 'द्रव्यसिद्ध' कहेवाय / (आ त्रण भेद पछी बाकीना अगियार भेदो विशे गाथामां कहे छे-) श०–४ कर्मसिद्ध, 5 शिल्पसिद्ध, 6 विद्यासिद्ध, 7 मंत्रसिद्ध, 8 योगसिद्ध, 9 आगमसिद्ध, 10 अर्थसिद्ध, 11 यात्रासिद्ध, 12 अभिप्रायसिद्ध, 13 तपसिद्ध, अने 14 कर्मक्षयसिद्ध-ए प्रकारे सिद्धो छ / 41, (927)