Book Title: Naishadh Mahakavyam Purvarddham
Author(s): Hargovinddas Shastri
Publisher: Chaukhambha Sanskrit Series Office

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Page 7
________________ भूमिका सेवनके द्वारा हो चरमोद्देश्यप्राप्ति करने के लिए लोगों की प्रवृत्ति होती है, जैसा कि आचार्य मामहने कहा है 'स्वादुकाम्यरसोनिमकं शास्त्रमप्युपयुञ्जते / प्रथमालीढमधवः पिबन्ति कटुभेषजम् // ' (काव्यालङ्कार 563) राजानक कुन्तक ने भी अन्य शास्त्रों को कड़वी दवा के समान तथा काम्यको मधुर दवाके समान अविवेकरूपी रोगका नाशक कहा है 'कटुकौषधवच्छास्त्रमविद्याव्याधिनाशनम् / आहायमृतवत्काव्यमविवेकगदापहम् ॥(वक्रोक्तिजीवित) नैषधचरितकी काव्यश्रेष्ठताम०म० 50 शिवदत्त शर्माके कथनानुसार पं० दुर्गाप्रसाद शर्मा द्वारा प्रकाशित काम्यमालाके मुद्रणके पूर्व 'रघुवंश, किरातार्जुनीय, कुमारसम्भव, शिशुपालवध और नैषषचरित' इन पाँच हो काम्योंका पठन-पाठन प्रचलित था। कुछ विद्वानोंका मत है कि-'लघुत्रयी तथा वृहप्रयी' नामसे प्रसिद छः काम्योंका अध्ययनाध्यापन प्रचलित था। लघुत्रयों में 'रघुवंश, कुमारसम्भव तथा मेघदूत' और वृत्रयीमें 'किरातार्जुनीय, शिशुपालवध तथा नैवषचरित' की गणना है / इनमें से प्रथम 'लघुत्रयो' संज्ञक तीन काम्य महाकवि कालिदासके तथा 'पदत्रयी' संज्ञक कायों में 'किरातार्जुनीय, शिशुपालवध तथा नैषचरित' महाकाव्य क्रमशः महाकवि भारवि, माष तथा श्रीहर्षदारा विरचित है। इन तीनों महाकवियों में विदानोंने श्रीहर्षको ही सर्वश्रेष्ठ माना है 'उपमा कालिदासस्य भारवेरर्थगौरवम् / दण्डिनः पदलालित्यं माघे सन्ति त्रयो गुणाः // ' इति / 'तावना भारवे ति यावन्माषस्य नोदयः। उदिते नैषधे काव्ये कमाघःकच भारविः॥ इति / उक्त प्रथम पथमें माघमें उपमादि गुणत्रयका अस्तित्व कहनेसे माधकी श्रेष्ठता कहकर द्वितीय पथमें श्रीहर्षकी सर्वश्रेष्ठता स्पष्टरूपमें प्रतिपादित की गई है। श्रीहर्षका जीवनचरित___ महाकवि श्रीहर्षके पिताका नाम 'श्रीहीर' तथा माताका नाम 'मामलदेवी' था। इसे स्वयं श्रीहर्षने नैषधचरित के प्रत्येक सर्गके अन्तिम श्लोकके पूर्वार्द्ध में स्पष्ट कहा है श्रीहर्ष कविराजराजिमुकुटालङ्कारहीरः सुतं श्रोहोरः सुषुवे जितेन्द्रियचयं मामलदेवी च यम् / ' कतिपय विद्वान् 'माम् + अल्लदेवी' ऐमा पदच्छेद करके इनकी माताका नाम 'अल्लदेवी' था, ऐसा कहते हैं। किन्तु अन्य विद्वानों का मत है कि 'वातापि' के निकट 'मामल्लपुर'

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