Book Title: Naishadh Mahakavyam Purvarddham
Author(s): Hargovinddas Shastri
Publisher: Chaukhambha Sanskrit Series Office

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Page 5
________________ सम्मतिपत्र [ लेखक-पण्डित श्री बदरीनाथ शुक्ल एम० ए० प्रधानाध्यापक-वाराणसैय संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी] संस्कृत विश्व की समस्त भाषाओं का शिरोमुकुट, समग्र उदात्त और उज्ज्वल विचारों की मनोरम मंजूषा तथा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों की कमनीय कुंचिका है। यही कारण है कि अनेक शताब्दियों से अनाहत एवं उपेक्षित होने पर भी इसकी मधुरता और ओजस्विता अब भी ज्यों की त्यों बनी है। किन्तु यह रन्तोष की बात है कि 'यथा राजा तथा प्रजा' की जिस नीति ने इसे जनता से दूर कर दिया था उसी के आधार पर भारत को स्वतन्त्रता के समुन्मेष के साथ ही जनता की रुचि में संस्कृत की उन्मुखता पुनः अभिवृद्ध होने लगी है। अतः संस्कृत के प्रचार में अवांछनीय मन्दता आ जाने के कारण संस्कृत में निहित जो ज्ञान-विज्ञान समाज को दुष्प्राप्य हो गये हैं उन्हें अब हिन्दी के माध्यम से जनता के बीच प्रसारित करना संस्कृत के विद्वानों का समयोचित धर्म हो गया है। मैं पण्डित श्री हरगोविन्द शास्त्री जी को धन्यवाद देता है कि उन्होंने अपनी सिद्ध लेखनी से एक ऐसे ग्रन्थ को हिन्दी में अनूदित करने का प्रयास किया है कि जिसमें भारत के आदर्श नरेश नल और आदर्श नारी दमयन्ती का पावन चरित्र दार्शनिक शिरोमणि महाकवि श्रीहर्षद्वारा उच्चतम कोटि की काव्यकला में वर्णित हुआ है जिसके परिचय तथा अनुकरण से मनुष्य कृतार्थ हो सकता है। अनुवाद की भाषा बड़ी मंजुल और प्रांजल है तथा अध्येता को कवि के वास्तविक अभिप्राय के अत्यन्त निकट पहुंचाने की पूरी क्षमता रखती है। मेरा विश्वास है कि यह अनुवाद संस्कृतप्रेमी जनों को आवजित कर पर्याप्त प्रसार प्राप्त करेगा जिससे प्रकाशक और अनुवादक उत्साहित हो संस्कृत साहित्य की अन्य कृतियों को भी हिन्दी द्वारा जनता को हृदयंगम कराकर मानवता के मंगलमय विकास में पूर्ण सहयोग कर सकेंगे। बदरीनाथ शुक्ल

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