Book Title: Naishadh Mahakavyam Purvarddham
Author(s): Hargovinddas Shastri
Publisher: Chaukhambha Sanskrit Series Office

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Page 4
________________ प्राक्कथन [लेखक-त्रिभुवनप्रसाद उपाध्याय एम१५० प्रधानाचार्य-राजकीय संस्कृत महाविद्यालय, वाराणसी ] संस्कृत संसार की सर्वप्रथम भाषा है, इसका साहित्य अत्यन्त सुन्दर एवं समृद्ध है, पहले गृहे गृहे और जने जने इसका प्रचार था तथा जीवन के सभी क्षेत्रों में इसका व्यवहार होता था। बाद में कालक्रम से समाज की रुचि में विविध परिवर्तन हुये, जिसके कारण शिथिलता आने से इसकी प्रगति मन्द पड़ने लगी और निकट अतीत में विदेशी शासन के समय तो इसकी घोर उपेक्षा हुई। किन्तु अब स्वतन्त्र भारत के सुप्रभात में जनता तथा शासन दोनों ही का आकर्षण इस ओर बढ़ रहा है / ऐसी स्थिति में संस्कृत के उत्तमोत्तम प्रन्थों को सरल संस्कृत तथा राष्ट्रभाषा के माध्यम से जनसम्पर्क में लाना संस्कृत के विद्वानों का प्रधान कर्तव्य है। अतः श्रीहर्ष जैसे महान् दार्शनिक कवि की रमणीय रचना 'नैषध' को राष्ट्रभाषा में अनूदित करने का पं० हरगोविन्द शास्त्री जी का उपक्रम बहुत ही स्तुत्य है इनकी अनुवाद-भाषा बड़ी ही रोचक, मोहक तथा मूल भावों के अभिव्यंजन में पूर्ण क्षम है। मेरा विश्वास है कि संस्कृत के जिज्ञासु इस कृति का पूरा आदर कर अनुवादक को उत्साहित करेंगे, जिससे उनकी प्रौढ़ लेखनी से संस्कृत के अधिकाधिक ग्रन्थ राष्ट्रभाषा में अनूदित होकर जनजिज्ञासा की तृप्ति और देश का महान् मंगल कर सकेंगे। दिनांक 25-1-54 त्रि० प्र० उपाध्याय

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