Book Title: Naishadh Mahakavyam Purvarddham Author(s): Hargovinddas Shastri Publisher: Chaukhambha Sanskrit Series Office View full book textPage 6
________________ भूमिका काव्यप्रयोजनअपारे काव्यसंसारे कविरेव प्रजापतिः / यथाऽस्में रोचते विश्वं तथेदं परिवर्तते // पुरुषार्थचतुष्टयको प्राप्त करना प्राणिमात्रका उद्देश्य होता है। उसके लिये योगसाधन, तपश्चरण, देवाराधन, तन्त्र-मन्त्रोपासना, आदि विविध उपाय शास्त्रों में अनेकत्र वर्णित हैं, और उन्हें प्रायः कुशाग्रबुद्धि व्यक्ति क्लेशादि सहन करके ही प्राप्त कर सकते है किन्तु उत्तम काम्य के सेवनसे साधारण बुद्धिवाला व्यक्ति मी मुखपूर्वक उक्त उद्देश्यकी पूर्ति कर सकता है; जैसा कि साहित्यदर्पणकारने कहा है 'चतुर्वर्गफलप्राप्तिः सुखावल्पषियामपि।। काव्यादेव............................. (: ............... ( सा० द० 112) मामइने सत्काव्यको पुरुषार्थचतुष्टयप्राप्तिके साथ-साथ कगों में विचक्षणता, प्रीति तथा कीर्तिका साधक कहा है धर्मार्थकाममोक्षाणां वैचक्षण्यं कलासु च। करोति प्रीति कीर्ति साधुकाव्यनिषेवणम् // ' ( काव्यालङ्कार 112) इतना ही नहीं, काव्यसे कालिदासादिके समान यश, राजराजेश्वर श्रीहर्षादिसे कविश्रेष्ठ बाणादिके समान अर्थलाम, सूर्यस्तुतिदारा मयूरादिके समान कुष्ठादिमहारोगनिवृत्ति, तत्काल ब्रह्मानन्दसहोदर आनन्दलाम तथा स्त्रीवत् सदुपदेशादिलाम भी सम्भव है, जैसा कि मम्मटाचार्य ने कहा है काम्यं यशसेऽर्थकृते व्यवहारविदे शिवेतरपतये। सद्यः परनिर्वृतये कान्तासम्मिततयोपदेशयुजे रुद्रटने तो काम्यको समस्त अभिमतको देनेवाला कहा है 'अर्थमनर्थोपशमं शमसममथवा मतं यदेवास्य / स्वरचितरुचिरसुरस्तुतिरखिलं लभते तदेव कविः॥ (काव्याल. 18) राजानक कुन्तकने तो काव्यको पुरुषार्थचतुष्टयकी प्राप्तिसे भी अधिक आनन्दप्रद कहा है 'चतुर्वर्गफलस्वादमप्यतिक्रग्य तद्विदाम् / / काव्यामृतरसेनान्तश्चमत्कारो वितन्यते // ' (वक्रोक्तिजीवित) यही कारण है कि कष्टप्रद योग-तपश्चर्यादि साधनोंका त्याग कर मुखसाध्य काम्य.Page Navigation
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