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१३४ मूलसूत्र : एक परिशीलन
कि चूलिकाएँ अन्य लेखक की रचनाएँ हैं जो बाद में दस अध्ययनों के साथ जोड़ दी गईं।
आचार्य हेमचन्द्र ने 'परिशिष्ट पर्व' ग्रन्थ में लिखा है कि आचार्य स्थूलभद्र की बहिन साध्वी यक्षा ने अपने अनुज मुनि श्रीयक को पौरुषी, एकाशन और उपवास की प्रबल प्रेरणा दी। श्रीयक ने कहा - "बहिन ! मैं क्षुधा की दारुण वेदना को सहन नहीं कर पाऊँगा ।" किन्तु बहिन की भावना को सम्मान देकर उसने उपवास किया पर वह उतना अधिक सुकुमार था कि भूख को सहन न कर सका और दिवंगत हो गया। मुनि श्रीयक का उपवास में मरण होने के कारण साध्वी यक्षा को अत्यधिक हार्दिक दुःख हुआ । यक्षा ने मुनि श्रीयक की मृत्यु के लिए अपने को दोषी माना। श्रीसंघ ने शासनदेवी की साधना की । देवी की सहायता से यक्षा साध्वी महाविदेह क्षेत्र में सीमंधर स्वामी की सेवा में पहुँची । सीमंधर स्वामी ने साध्वी यक्षा को निर्दोष बताया और उसे चार अध्ययन चूलिका के रूप में प्रदान किए। संघ ने दो अध्ययन आचारांग की तीसरी और चौथी चूलिका के रूप में और अन्तिम दो अध्ययन दशवैकालिक चूलिका के रूप में स्थापित किए । ६२
दशवैकालिकनिर्युक्ति की एक गाथा में इस प्रसंग का उल्लेख मिलता है । ६३ आचार्य हरिभद्र ने दूसरी चूलिका की प्रथम गाथा की व्याख्या में उक्त घटना का संकेत किया है पर टीकाकार ने निर्युक्ति की गाथा का अनुसरण नहीं किया, इसलिए कितने ही विज्ञ दशवैकालिकनिर्युक्ति की गाथा को मूलनिर्युक्ति की गाथा नहीं मानते । ६५ आचारांगचूर्णि में उल्लेख है कि स्थूलभद्र की बहिन साध्वी यक्षा महाविदेह क्षेत्र में भगवान सीमंधर के दर्शनार्थ गई थीं, लौटते समय भगवान ने उसे भावना और विमुक्ति ये दो अध्ययन प्रदान किए। ६६ आवश्यकचूर्णि में भी दो अध्ययनों का वर्णन है। प्रश्न यह है कि आचार्य हेमचन्द्र ने चार अध्ययनों का उल्लेख किस आधार से किया ? आचारांगनिर्युक्ति में इस घटना का किञ्चित्मात्र भी संकेत नहीं है तथापि आचारांगचूर्णि और आवश्यकचूर्णि में यह घटना किस प्रकार आई, यह शोधार्थियों के लिए अन्वेषणीय है ।
ग्रन्थ- परिमाण
दशवैकालिक के दस अध्ययन हैं, उनमें पाँचवें अध्ययन के दो और नौवें अध्ययन के चार उद्देशक हैं, शेष अध्ययनों के उद्देशक नहीं हैं। चौथा और
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