Book Title: Mulsutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 330
________________ नन्दीसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन * ३२५ * अतः इस दशवैकालिकसूत्र का मैं पुनः पूर्वो में संवरण कर देना चाहता हूँ।" आचार्य की बात सुनकर आर्य यशोभद्र आदि मुनिसंघ एवं श्रावकसंघ ने प्रार्थना की-“पूज्यवर ! मनक मुनि के समान भविष्य में और भी अल्पायु या मंदमति साधु-साध्वी हो सकते हैं। उनको साध्वाचार का संक्षेप में पथ-प्रदर्शन करने में यह सूत्र अतीव उपयोगी होगा। अतः आप इसे यथावत् रहने दें।” आचार्य शय्यंभव पूर्वो से सूत्र का निर्वृहण करने वाले प्रथम आचार्य हुए हैं। संघ द्वारा की गई प्रार्थना और शय्यंभवाचार्य के कृपा प्रसाद के फलस्वरूप आज समग्र सम्प्रदायों के श्रमणसंघ में दशवैकालिकसूत्र से पूर्णतया आध्यात्मिक लाभ उठाया जा रहा है। पंचम आरे के अन्त तक दशवैकालिकसूत्र विद्यमान रहेगा, यही इसकी उपयोगिता तथा सर्वश्रेष्ठता का प्रमाण है। __ आचार्य शय्यंभव ११ वर्ष तक सामान्य मुनि-पर्याय में और २३ वर्ष तक युगप्रधान आचार्यपद पर रहे। ६२ वर्ष की सर्वायु पालन कर वे वीर निर्वाण सं. ९८ (विक्रम पूर्व ३७२) में स्वर्गासीन हुए।४३ तुंगिक गोत्रीय आचार्य यशोभद्र : पंचम पट्टधर ____ आचार्य शय्यंभव के प्रधान शिष्य आर्य यशोभद्र जैनशासन के परम यशस्वी युगप्रधान आचार्य हो गये हैं। आपका जन्म तंगियायन (तंगिक) गोत्रीय याज्ञिक ब्राह्मण परिवार में वीर निर्वाण ६२ में (विक्रम पूर्व ४०८) में हुआ। २२ वर्ष की युवावस्था में आपने आर्य शय्यंभव के पास प्रव्रज्या ग्रहण की। १४ पूर्वो की विशाल ज्ञान-राशि का अध्ययन करके ३६ वर्ष की वय में आचार्यपद पर आसीन हुए। ५० वर्ष तक आचार्यपद पर रहकर जिनशासन की अनुपम सेवा करते हुए ८६ वर्ष की आयु में वीर निर्वाण १४८ में स्वर्गगामी हुए। विशेष ज्ञातव्य (१) आचार्य यशोभद्र ने अपने समय के बड़े-बड़े याज्ञिकों को प्रतिबोध देकर जैनधर्मानुयायी बनाये। (२) आप ही की विचक्षण प्रतिभा के फलस्वरूप आपके शासनकाल में संभूतविजय और भद्रबाहु-जैसे दो समर्थ शिष्य चतुर्दश पूर्वधर श्रुतकेवली बने।४५ (३) तीर्थंकर महावीर के उत्तरवर्ती युगप्रधान आचार्यों की श्रृंखला में उस समय तक सर्वाधिक लम्बा शासनकाल (५० वर्ष) आचार्य यशोभद्र का रहा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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