Book Title: Mulsutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 375
________________ * ३७० * मूलसूत्र : एक परिशीलन २०. (क) प्रबुद्ध जीवन से संक्षिप्त भाव ग्रहण (ख) भगवतीसूत्र (ग) ब्रह्मचर्य विज्ञान (उपाध्याय पुष्कर मुनि जी) २१. (क) पंचविध आचार के लिए देखें-स्थानांग, समवायांग, निशीथचूर्णि आदि (ख) ज्ञातासूत्र, अन्तकृद्दशासूत्र में देखें इनका वृत्तान्त २२. प्रबुद्ध जीवन से संक्षिप्त भाव ग्रहण २३. प्रबुद्ध जीवन, ज्ञातासूत्र, अन्तकृद्दशासूत्र आदि से भाव ग्रहण २४. नन्दीसूत्र-विवेचन में नन्दीसूत्र दिग्दर्शन (उपाध्याय पं. फूलचन्द जी म. 'श्रमण') से भाव ग्रहण २५. नन्दीसूत्र विवेचन में नन्दीसूत्र दिग्दर्शन (उपाध्याय फूलचन्द जी म. 'श्रमण') से भाव ग्रहण, पृ. ५ (क) “सूत्रार्थोभयरूपः आगमः।" -आवश्यक ५२४ (ख) “आचार्यपारम्पर्येणागतः, आप्तवचनं वा।' -अनुयोगद्वार वृत्ति ३८ (ग) “गुरुपारम्पर्येणागच्छतीति आगमः; आ = समन्तात् ज्ञायन्ते = गम्यन्ते ____ जीवादयः पदार्था अर्ननेति वा।' -वही २१९/५ (घ) “आप्तप्रणीतः आगमः।" -आचारांग वृत्ति ४८ (ङ) “आप्तवचनादाविर्भूतमर्थ-संवेदनमागमः। उपचारादाप्तवचनं च।" -प्रमाणनय तत्त्वालोक ४/१-२ २७. (क) “आप्तो रागद्वेषादि वियुतः।" -तत्त्वार्थ सिद्धसेनीया वृत्ति १/२० (ख) “यथार्थवक्ता स आप्तः।" (ग) “अभिधेयं वस्तु यथावस्थितं यो जानीते, यथाज्ञानं चाभिधत्ते स आप्तः।" -प्रमाणनय तत्त्वालोक ४/४ २८. “आगमे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-सुत्तागमे य अत्थागमे य तदुभयागमे।" -अनुयोगद्वार, सू. ४७०, आवश्यकसूत्र २९. “अत्थं भासइ अरहा, सुत्तं गंथंति गणहरा निउणं।" -आवश्यकनियुक्ति ९२ ३०. (क) “अहवा आगमे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा–अत्तागमे, अणंतरागमे परंपरागमे य। तित्थगराणं अत्थस्स अत्तागमे, गणहराणं सुत्तस्स अत्तागमे, अत्थस्स अणंतरागमे, गणहरसीसाणं सुत्तस्स अणंतरागमे, अत्थस्स परंपरागमे, तेणं परं सुत्तस्स वि अत्थस्स वि णो अत्तागमे, णो अणंतरागमे, परंपरागमे।" -अनुयोगद्वार, सू. ४७० (ख) स्थानांगसूत्र, स्था. ३ ३१. प्रशमरति, श्लो. १८६-१८७ ३२. रत्नकरण्डक श्रावकाचार, न्यायावतार वार्तिक वृत्ति ३३. “जहा सूइ ससुत्ता, पडिया वि न विणस्सइ। तहा जीवे ससुत्ते, संसारे न विणस्सइ॥" -उत्तराध्ययन, अ. २९, सू. ५९ ३४. पाणिनीय व्याकरण महाभाष्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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