Book Title: Mulsutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 389
________________ ३८४ मूलसूत्र : एक परिशीलन २२१. (क) नन्दीसूत्र स्थविरावली, गा. ४१-४५ (ख) नन्दीसूत्र विवेचन ( हिन्दी भाषा टीका सहित ) ( आचार्य श्री आत्माराम जी म.) से भाव ग्रहण, पृ. ४३-४६ २२२. (क) नन्दीसूत्र स्थविरावली, गा. ४६ (ख) नन्दीसूत्र विवेचन ( हिन्दी भाषा टीका सहित ) ( आचार्य श्री आत्माराम जी म.) से भाव ग्रहण, पृ. ४६-४७ २२३. (क) नन्दीसूत स्थविरावली, गा. ४७-४९ (ख) नन्दीसूत्र विवेचन (वही), पृ. ४७-५० २२४. (क) वही, गा. ५० (ख) वही ( विवेचन ), पृ. ५० २२५. देखें- नन्दीसूत्र, मूल पाठ, गा. ५१-५४ २२६. (क) वही, सूत्र १-५ (ख) नन्दीसूत्र हिन्दी टीका सहित (आचार्य श्री आत्माराम जी म.) की प्रस्तावना से भाव ग्रहण २२७. अनुयोगद्वारसूत्र, खण्ड १ ( आत्मज्ञान पीयूषवर्षिणी व्याख्या सहित ) (पं. र. ज्ञान मुनि जी ) से भाव ग्रहण, पृ. ५२ २२८. (क) देखें - वही, पृ. ५३-५६ (ख) इस सम्बन्ध में विशेष जानकारी के लिए देखिये - वही, व्याख्या, पृ. ५०-५९ २२९. (क) नन्दीसूत्र की प्रस्तावना (मुनि श्री पुण्यविजय जी ) (ख) अन्यत्र नन्दीसूत्र के प्रारम्भ में ९० पद्यात्मक गाथाएँ तथा ५९ गद्यसूत्र हैं, ऐसा उल्लेख है। देखें - प्राकृत भाषा का इतिहास (डॉ. नेमिचन्द्र जैन) में २३०. नन्दीसूत्र विवेचन ( हिन्दी भाषा टीका सहित ) ( आचार्य श्री आत्माराम जी म. ) से भाव ग्रहण, पृ. ५९-६० २३१. “पंचसए पणसीए, विक्कमकालाओ झत्ति अत्थमिओ । हरिभद्दसूरि सूरो, भवियाणं दिस्सउ कल्लाणं ॥" Jain Education International 网 房5 编卐卐编卐 फफफफ For Private & Personal Use Only - विचार श्रेणि www.jainelibrary.org

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