Book Title: Mulsutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
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नन्दीसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन * ३७९ * १४१. दशवैकालिकनियुक्ति, गा. १६-१७ १४२. “आणंद-अंसुपायं कासी, सिज्जंभवा तहिं थेरा। जसभद्दस्स य पुच्छा, कहणा य वियालणा संघे॥"
-दशवकालिकनियुक्ति, गा. ३७१ १४३. पट्टावली समुच्चय (श्री गुरुपट्टावली), पत्रांक १६४ १४४. “जसभदं तुंगियं वंदे।"
-नन्दीसूत्र १४५. “मेधाविनो भद्रबाहु-सम्भूतविजयैः मुनि।
चतुर्दशपूर्वधरौ, तस्स शिष्यौ बभूवतुः॥" --परिशिष्ट पर्व, सर्ग६ १४६. परिशिष्ट पर्व, सर्ग ६ १४७. थेरस्स णं अज्जसंभूय विजयस्स इमे दुवालस थेरा अंतेवासी होत्था, तं जहा
"नंदण भद्दे उवनंदभद्दे, तह तीसभद्द जसभद्दे । थेरे य सुमिअणभद्दे, मणिभद्दे य पुन्नभद्दे य॥१॥ थेरे य थूलभद्दे, उज्जुमती जंबूनामधेज्जे य।
थेरे य दीहभद्दे, थेरे तह पंडुभद्दे य॥२॥" -कल्पसूत्र, स्थविरावली २०८ १४८. (क) उपदेशमाला, विशेष वृत्ति, पृ. २३७-२३९ (ख) “अब्भुट्ठिया मणागं, दुक्करकारीणं सागयं तुभं। आसासिया कमेण गुरुणा, ता थूलभद्दोति॥'
-उपदेशमाला, विशेष वृत्ति २३८-२३९ १४९. थेरस्स णं अज्ज संभूइविजयस्स इमाओ सत्त अंतेवासिणीओ अहावच्चओ
अभिमाताओ होत्था, तं जहा"जक्खा य जक्खदिन्ना य, भूया तहेव भूई दिन्ना य। सेणा वेणा रेणा, भगिणीओ थूलभद्दस्स।॥१॥"
-कल्पसूत्र २०८ १५०. "श्रीसंघायोपदां प्रेषीन्, मन्मुखेन प्रसादभाक् ।
श्रीमान् सीमन्धरस्वामी, चत्वार्थध्ययनानि च।। भावना च विमुक्तिश्च, रतिकल्पमथापरम्। तथा विचित्रचर्यां च, तानि चैतानि नामतः॥"
-परिशिष्ट पर्व, सर्ग ९, श्लो. ९७-९८ १५१. परिशिष्ट पर्व, सर्ग ९ १५२. वही, सर्ग ७, श्लो. ४ १५३. उक्त ध्यान-साधना से १४ पूर्वशास्त्रों की समग्र ज्ञान-राशि का मुहूर्त मात्र में परावर्तन (पारायण) कर लेने की क्षमता आ जाती है।
-परिशिष्ट पर्व, सर्ग ९, श्लो. ६२ १५४. परिशिष्ट पर्व, सर्ग ९, श्लो. १७२
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