Book Title: Mulsutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 374
________________ नन्दीसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन ३६९ उद्धृत संदर्भ-स्थल सूची १. उत्तराध्ययनसूत्र, अ. ३२, गा. २ २. उत्तराध्ययनसूत्र, अ. ६, गा. १ ३. " अज्ञानेनावृतं ज्ञानं, तेन मुह्यन्ति जन्तवः ।” ४. (क) “जे आया से विन्नाणे, जे विन्नाणे से आया।” (ख) “उपयोगो लक्षणम् । ” (ग) “णाणे पुण नियमं आया ।” - भगवद् गीता ५/१५ - आचारांग, श्रु. १, अ. ५, उ. ५, सू. १६६ - तत्त्वार्थसूत्र, अ. २/८ - भगवतीसूत्र १२/१० ५. वेदान्तसार ६. "नादंसणिस्स नाणं, नाणेण विणा न हुंति चरणगुणा । अगुणिस्स नत्थि मोक्खो, नत्थि अमोक्खस्स निव्वाणं ॥" - उत्तराध्ययन, अ. २८, गा. ३० ७. “सव्वसुत्त-खंधतादीणं मंगलाधिकारे नंदि त्ति वत्तध-णंदणं गंदी, नंदति वा तेण त्ति नंदी | नंदी प्रमोदो हरिसो कंदप्पो इत्यर्थः ।" - नन्दी सूत्रचूर्णि ८. “ भावणंदी - दिसद्दोवउत्त भावो, अहवा - इमं पंचविहणाण - परूवणं णंदित्ति अज्झयणं ।” - नन्दीसूत्र ९. (क) देखें - स्वरूप सम्बोधन ( ३ ) में आत्मा और ज्ञान की भिन्न-भिन्नता का प्रतिपादन "ज्ञानाद्भिन्नो न चाभिन्नो, भिन्नाभिन्नः कथंचन । ज्ञानं पूर्वापरीभूतं, सोऽयमात्मेति कीर्तितः ॥" (ख) "ज्ञानाधिकरणमात्मा ।” १०. (क) “स्व-पर-व्यवसायात्मकं ज्ञानं प्रमाणम् ।" (ख) "ज्ञानं स्व-पर- प्रकाशकम् ।" ११. (क) चतुर्विंशतिस्तव आवश्यक सूत्र (ख) भक्तामर स्तोत्र, श्लो. १६ में Jain Education International १२. उत्तराध्ययन ३२/२ १३. (क) देखें - प्रबुद्ध जीवन में (परमानन्द कापड़िया का लेख ) (ख) आज का आनन्द (दैनिक) ता. २३/११/१९९८ से १४. “Ignorance is the root of all evils.” १५. " न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते ।” १६. आज का आनन्द (दैनिक) ता. २३/११/१९९८ से १७. प्रबुद्ध जीवन (परमानन्द कापड़िया) से संक्षिप्त भाव ग्रहण १८. वही १९. "नासिद्धं सुख - दुःखादि ज्ञानादर्थान्तरं यतः । चेतनत्वात् सुखं दुःखं ज्ञानादन्यत्र न क्वचित् ।।” - तर्कसंग्रह -प्रमाणनय तत्त्वालोक For Private & Personal Use Only -Plato - भगवद् गीता - पंचाध्यायी १४ www.jainelibrary.org

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