Book Title: Mulsutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
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* ३७४ * मूलसूत्र : एक परिशीलन
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७१. देखें-आचारांगसूत्र, प्रथम श्रुतस्कन्ध, अध्ययन ९ का विवेचन ७२. देखें-आचारांगसूत्र प्रथम और द्वितीय श्रुतस्कन्ध में भगवान महावीर की
जीवन-गाथा ७३. (क) विशेष जानकारी के लिए देखें-भगवान महावीर : एक अनुशीलन (आचार्य
देवेन्द्र मुनि) (ख) तीर्थंकर महावीर (उपाध्याय अमर मुनि) ७४. वही (लेखक-आचार्य देवेन्द्र मुनि) ७५. “गुण-भवण-गहण ! सुय-रयण-भरिय ! दंसण-विसुद्ध-रत्थागा।
संघनगर ! भदं ते, अखंड-चारित्त-पागारा॥ संजम-तव-तुंबारयस्स, नमो सम्पन्न-पारियल्लस्स। अपडिचक्कस्स जओ, होउ सया संघ-चक्कस्स॥ भदं सील-पडागूसियस्स, तव-नियम-तुरय-जुत्तस्स। संघरहस्स भगवओ, सज्झाय-सुनंदिघोसस्स ॥ कम्म-रय-जलोह-विणिग्गयस्स, सुय-रयण-दीह-नालस्स॥
संघ-पउमस्स भई, सयण-गण-सहस्स-पत्रस्स॥ तव-संजम-मय-लंछण, अकिरिय-राहु-मुह-दुद्धरिस ! भिच्छं। जय संघचंद ! निम्मल-सम्मत्त-विसुद्ध-जोण्हागा ।। पर-तित्थिय-गह-पह-नासगस्स, तव-तेय-दित्त-लेसस्स।
नाणुज्जोयस्स जए, भदं दमसंघसूरस्स॥" -सिरि नंदीसुत्तं, गा. ४-१० ७६. “संघो गुणसंधाओ, संघो य विमोचिओ य कम्माणं।
दंसण-णाण-चरित्ते संघायंतो हवे संघो॥" -भगवती आराधना ७१४ ७७. प्रवचनसार तात्पर्यवृत्ति, पृ. २४९ ७८. व्यवहार भाष्य ३२६ ७९. “नाणस्स होइ भागी, थिरयरओ दंसणे चरित्ते य।" -बृहत्कल्प भाष्य, गा. ५७१३ ८०. सिरि नंदीसुत्तं, गा. ११ ८१. (क) “(वंदे) उसभं अजियं संभवमभिनंदण-सुमइं सुप्पभं सुपासं।
ससि-पुष्फदंत-सीयल-सिज्जंसं वासुपुजं च॥ विमलमणंतं य धम्म, संतिं कुंथु अरं च मल्लिं च।
मुणिसुव्वयं नमि नेमिं, पासं तह वद्धमाणं च॥ -नंदीसूत्र, गा. २०-२१ (ख) “धम्मतित्थयरे जिणे " -आवश्यकसूत्र में चतुर्विशतिस्तव पाठ (ग) “नाणं च दंसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा।
एस मग्गुत्ति पण्णत्तो, जिणेहिं वरदंसिहि ॥" -उत्तराध्ययनसूत्र २८/२ (घ) “सदृष्टि-ज्ञान-वृत्तानि, धर्मं धर्मेश्वरा विदुः ॥
देशयामि समीचीनं, धर्म कर्म-निवर्हणम्। संसार दुःखतः सत्वान्, यो धरम्युत्तमे सुखे॥"
-रत्नकरण्डक श्रावकाचार, श्लो. ३, २
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