Book Title: Mulsutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 380
________________ नन्दीसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन ३७५ ८२. (क) “पढमित्थ इंदभूई, बीए पुण होइ अग्गिभूइत्ति । तइ य वाउभूइ, तओ वियत्ते सुहम्मे य ॥ मंडिय-मोरियपुत्ते, अकंपिए चेव अचलभाया य। जे पहासे, गणहरा हुंति वीरस्स ॥" - सिरि नंदीसुत्तं, गा. २२-२३ (ख) “अनुत्तर ज्ञान - दर्शनादिगुणानां गणं धारयन्तीतिगणधरः ।” - विशेषावश्यक भाष्य टीका, गा. १०६२ (ग) “समणस्स भगवओ महावीरस्स नव गणा, एक्कारस गणहरा होत्था ।” - कल्पसूत्र स्थविरावली, सू. २०१ (घ) “समणस्स भगवओ महावीरस्स एक्कारस्स गणा, एक्कारस गणहरा होत्था ।" - समवायांगसूत्र, समवाय ११ ८३. (क) “मगहा गुब्बरगामे जाया तिन्नेव गोयमसगुत्ता।” (ख) देखें - आवश्यक निर्युक्ति, गा. ६४७-६४८ ८४. "गोभिस्तमो ध्वस्तं यस्य, असौ गौतमः ।" ८५. जे गोयमा, ते सत्तविहा पण्णत्ता, तं जहा - ते - अभिधान राजेन्द्रकोष, भा. ३ गोयमा, ते गग्गा, ते भारहा, ते अंगिरसा, ते सक्कराभा, ते उदगत्ताभा ।" - स्थानांगसूत्र, स्थान ७, सू. ५५१ ८६. देखें - भारतीय प्राचीन चरित्रकोश, पृ. १९३, १९५ ८७. कल्पसूत्र की सुबोधावृत्ति, पृ. ३८९ ८८. (क) कषायपाहुड की टीका, पृ. ७६ (ख) षट्खण्डागम धवला, पृ. ६२ ८९. (क) उपासकदशांगसूत्र, अ. १ (ख) वही, अ. १ ९०. (क) उपासकदशासूत्र, अ. १ (ख) वही, अ. १ (ग) वही, अ. ३ ९१. अन्तकृद्दशासूत्र, वर्ग ६ ९२. भगवतीसूत्र, श. २, उ १ ९३. सूत्रकृतांगसूत्र, श्रु. २/७/३६-३८ ९४. (क) भगवतीसूत्र १४/७ (ख) उत्तराध्ययनसूत्र टीका सहित २३ (ग) विपाकसूत्र ९५. (क) उत्तराध्ययनसूत्र, अ. २३ (ख) भगवतीसूत्र, श. १ ९६. आवश्यकनिर्युक्ति, गा. ६५०-६५५ ९७. वही, गा. ६५०-६५५ ९८. वही, गा. ६४३-६५५ Jain Education International - आवश्यकनिर्युक्ति, गा. ६४३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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