Book Title: Mulsutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
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नन्दीसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन * ३७३ * ६०. (क) “देववायगो साहुजणहियट्ठाए इणमाह।" -नन्दीचूर्णि, पृ. २० ___ (ख) “देववाचकोऽधिकृताऽध्ययन-विषयभूतस्य ज्ञानस्य प्ररूपणां कुर्वन्निदमाह।"
-नंदी हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. ३७ ६१. जैनकालगणना (मुनि श्री कल्याणविजय जी) ६२. नन्दीसूत्र की प्रस्तावना (नन्दीसूत्र दिग्दर्शन) (आचार्य श्री आत्माराम जी म.) से
भाव ग्रहण, पृ.८ ६३. (क) वही, पृ. २
(ख) उत्तराध्ययन, अ. ३२, गा. २ ६४. (क) नन्दीसूत्र प्रस्तावना (नन्दीसूत्र दिग्दर्शन) (आचार्य श्री आत्माराम जी म.) से
भाव ग्रहण, पृ. ८ (ख) “एकादश अंगानि गणधर-भाषितानि, अन्यागमाः सर्वेऽपि छद्मस्थैरंगेभ्य उद्धृताः सन्ति।"
-समाचारीशतक (उपाध्याय समयसुन्दर जी) से भाव ग्रहण, पृ. ७७ ६५. श्रीमन्नन्दीसूत्रम् (आचार्य हस्तीमल जी म.) से भाव ग्रहण, पृ. २ ६६. (क) “मंगलमहवा नंदी, चउव्विहा मंगलं च सा नेया।
___दव्वे तूस्समुदओ, भावम्मि य पंचनाणाई॥" -विशेषावश्यक भाष्य
(ख) नन्दीसूत्र (आचार्य आत्माराम जी म.) प्रस्तावना के आधार पर, पृ. ३, २ ६७. बहुविघ्नानि श्रेयांसि, तेन कृतमंगलोपचारैः।
गृहीतव्यः सुमहानिधिरिव, यथा वा महाविद्या॥ तत्र मंगलभादौ, मध्ये पर्यन्तकं च शास्त्रस्य। प्रथमं शास्त्रार्थाऽविघ्न-पारंगमनाय निर्दिष्टम्॥ तस्यैव च स्थैर्यार्थ, मध्यमकमन्तिममपि तस्यैव। अव्यवच्छित्ति-निमित्तं, शिष्य-प्रशिष्यादि वंशस्य॥"
-विशेषावश्यक भाष्य, प्राकृत गाथाओं की संस्कृत छाया ६८. (क) नंदीसूत्र (आचार्य आत्माराम जी म.) की प्रस्तावना से भाव ग्रहण, पृ. ३
(ख) “थव-थुइ मंगलेणं नाण-दंसण-चरित्त-बोहिलाभं जणयइ। नाणदंसणचरित्त__ बोहिलाभ-संपन्ने य णं जीवे अंतकिरियं कप्पविमाणोववत्तिगं आराहणं ___ आराहेइ।"
-उत्तराध्ययन, अ. २९, सू. १४ ६९. नन्दीसूत्र (आचार्य आत्माराम जी म.) की प्रस्तावना से भाव ग्रहण, पृ. ४ ७०. (क) “जयइ जगजीवजोणी-वियाणओ, जग गुरु जगाणंदो।
जगणाहो जगबंधु जयइ, जगप्पियामहो भयवं॥ जयइ सुआणं पभवो, तित्थयराणं अपच्छिमो जयइ। जयइ गुरु लोगाणं, जयइ महप्पा महावीरो॥ भदं सव्व जगुजोयग़स्स, भदं जिणस्स वीरस्स।
भदं सुरासुरनमंसियस्स, भदं धुयरयस्स॥" -नन्दीसूत्र, मूल पाठ, गा. १-३ (ख) नन्दीसूत्र (आचार्य आत्माराम जी म.) से भाव ग्रहण, पृ. १-८
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