Book Title: Mulsutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 348
________________ नन्दी सूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन ३४३ ग्रहण की। सुनन्दा ने जब शिशु को जन्म दिया तो उसका जन्मोत्सव मनाते समय उसकी सखियों ने उसे घेर रखा था । सखियों ने कहा - "यदि इस शिशु के पिता धनगिरि जैन श्रमण न बनते और यहाँ उपस्थित होते तो जन्मोत्सव का रूप कुछ और ही होता ।" सखियों के परस्पर वार्त्तालाप को नवजात शिशु ने सुना तो उसका ध्यान उसी बात पर विशेष रूप से केन्द्रित हुआ । ऊहापोह करते-करते ज्ञानावरण-कर्म के क्षयोपशम होने से बालक को जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया । १८८ उसने चिन्तन किया कि मेरे पूज्य पिता और मामा ( समित आर्य) ने संयम ग्रहण किया है तो मेरे लिए भी यही मार्ग श्रेष्ठ है । परन्तु संयम-पथ का पथिक बनने में मेरी माँ की ममता बाधक बनेगी । अतः माँ की ममता के गाढ़ बन्धन को शिथिल करने के लिए बालक ने रुदन करना प्रारम्भ किया। सदा रोते रहने से उसकी माँ न तो सुखपूर्वक सो सकती थी, न ही उठ-बैठ सकती थी और न भोजन कर सकती थी। बालक के रुदन को कम करने के लिए सुनन्दा ने बहुत प्रयत्न किये, परन्तु सब व्यर्थ हुए। छह महीने तक सतत रुदन के कारण सुनन्दा खिन्न हो गई । एक दिन आचार्य सिंहगिरि तुम्बवन में पधारे। धनगिरि और समित मुनि भी उनके साथ थे। आर्य समित और धनगिरि भिक्षा के लिए जाने लगे तो सिंहगिरि आचार्य ने उनसे कहा - "पक्षी का स्वर मुझे शुभसूचक लगता है, इसलिए आज तुम्हें भिक्षा में सचित्त, अचित्त जो भी प्राप्त हो, ले आना।" धनगिरि और समित आर्य ने गुरु का आदेश शिरोधार्य करके चल पड़े सुनन्दा के घर की ओर । वहाँ पहुँचे तो शिशु के अनवरत रुदन से परेशान सुनन्दा ने दोनों को वन्दन करके धनगिरि मुनि से निवेदन किया- "पुत्र के सतत रुदन ने मुझे खिन्न कर दिया है। संतान की सुरक्षा का भार माता-पिता दोनों पर होता है । इतने दिन इसका लालन-पालन मैंने किया है, अब आप इसे सँभालें ।” धनगिरि ने सोचकर कहा - "तुम अगर सहर्ष इसे देती हो तो मैं स्वीकार करूँगा, किन्तु भविष्य में तुम इसे वापस न ले सकोगी, न ही कोई आपत्ति उठाओगी, सोच लो ।” सुनन्दा ने कहा- "आर्य समित और ये मेरी सखियाँ इस बात की साक्षी हैं, मैं भविष्य में अपने पुत्र को लेने के लिए कोई प्रश्न उपस्थित नहीं करूँगी।"१८९ सुनन्दा के अत्याग्रह से छह मास के उक्त बालक को धनगिरि ने अपनी झोली में ग्रहण कर लिया। धनगिरि के पास आते ही अपना उद्देश्य सफल हुआ देख बालक ने रोना बंद कर दिया । धनगिरि बालक को झोली में लेकर गुरु के पास पहुँचे । 1 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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