Book Title: Mulsutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 321
________________ *३१६ * मूलसूत्र : एक परिशीलन (३) भगवान महावीर के परिनिर्वाण के बाद वीर संवत् के प्रारम्भ काल में, अर्थात् शक संवत् से ६०५ वर्ष पूर्व कार्तिक शुक्ला १ के दिन चतुर्विध संघ ने आर्य सुधर्मा को भगवान महावीर के प्रथम पट्टधर के रूप में नियुक्त किया था।१२८ काश्यप गोत्रीय आर्य जम्बू : द्वितीय आचार्य __ आचार्य जम्बू भगवान महावीर के द्वितीय उत्तराधिकारी थे। उनका जन्म वीर निर्वाण पू. १६ (विक्रम पू. ४८६) में राजगृह में हुआ। उनके पिता राजगृह के दूभ्य श्रेष्ठी ऋषभदत्त थे, माता का नाम धारिणी था। माता-पिता की प्रसन्नता हेतु ब्रह्मचर्य संकल्पी जम्बूकुमार ने गुण-सम्पन्न अप्सरा-सम सुन्दर आठ कन्याओं के साथ विवाह किया। विवाह की प्रथम रात्रि में ही जम्बू ने उन आठों पलियों को विविध दृष्टान्तों से समझाकर भोग से त्याग मार्ग की ओर मोड़ दिया। इस प्रकार आठों पत्नियों को विवाह की प्रथम रात्रि में ही त्यागकर तथा असीम भोग-सामग्री को ठुकराकर स्वेच्छा से कण्टकाकीर्ण तप-संयम-पथ का अनुसरण करने वाले जम्बू का उदाहरण इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों पर अंकित अनुपम उदाहरण है।२९ एक दिन जम्बू ने आर्य सुधर्मा का भवव्याधिहारक प्रवचन सुना और उसके कोमल मानस पर अध्यात्म का एवं संसार-विरक्ति का गहरा रंग छा गया। फलतः आर्य जम्बू ने कुबेरोपम अपार वैभव का त्याग स्वयं ही नहीं किया, वरन् उनके वैराग्य से प्रभावित होकर आठों पत्नियाँ, उनके माता-पिता, पिता ऋषभदत्त, माँ धारिणी तथा कुख्यात चौरराज प्रभव, उसके ५०० साथी, यों कुल ५२७ व्यक्तियों के साथ वीर निर्वाण १ (विक्रम पू. ४६९) में राजगृह स्थित गुणशील चैत्य में आर्य सुधर्मा के पास जम्बूकुमार दीक्षित हुए। आर्य जम्बू कुशाग्र बुद्धि के धनी थे। आर्य सुधर्मा ने अपना समस्त श्रुतज्ञान आर्य जम्बू को प्रदान किया। जिस प्रकार गणधर इन्द्रभूति गौतम अपनी जिज्ञासा एवं शंका का समाधान करने के लिए भगवान महावीर के समक्ष परम विनीत भाव से उपस्थित होते थे, ठीक उसी प्रकार जम्बू स्वामी भी अपनी जिज्ञासाओं का समाधान पाने के लिए सुधर्मा स्वामी के पास उपस्थित होते थे। जम्बू स्वामी की पृच्छा और सुधर्मा द्वारा दिया गया आगम ज्ञान ही आज अपने मूल स्वरूप का परित्याग किये बिना, उसी अपरिवर्तित रूप में विद्यमान है और यही प्रवाह पंचम आरे के अन्त तक चलता रहेगा।३०० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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