Book Title: Mulsutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 310
________________ नन्दीसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन ३०५ (१०) पार्श्वनाथ परम्परा से सम्बन्धित उदक पेढालपुत्र के अविनयपूर्ण तथा असंस्कृत व अकृतज्ञता भरा व्यवहार देखकर उन्होंने उसे हितबुद्धि से प्रेरित होकर निर्भयतापूर्वक कर्त्तव्यबोध एवं मार्गदर्शन दिया। ऐसे हितबुद्धि प्रेरित निर्भयतापूर्वक दिये गए उपदेश का उदक पेढालपुत्र पर अनुकूल प्रभाव पड़ा। वे भगवान महावीर के पंचमहाव्रत रूप श्रमणसंघ में सम्मिलित हो गये । ९३ (११) गौतम स्वामी की उपदेश कुशलता से एक अज्ञानी कृषक सुलभबोधि बना। (१२) गौतम स्वामी जिज्ञासु थे। विपाकसूत्र में उनकी जिज्ञासाओं का सुन्दर उल्लेख है। भगवतीसूत्र में उट्टंकित ३६ हजार प्रश्न इन्द्रभूति गौतम की जिज्ञासु वृत्ति के अनूठे उदाहरण हैं । ९४ (१३) भगवान पार्श्वनाथ और भगवान महावीर के श्रमणों की आचारविचार पद्धति में विभिन्नता देखकर गणधर गौतम स्वयं अपने शिष्य-समुदाय के साथ केशीकुमार श्रमण के निवास स्थान पर गए और श्रमण केशीकुमार द्वारा उपस्थित शंकाओं का युक्तियुक्त ढंग से सुन्दर समाधान किया । परिणामस्वरूप केशी श्रमण भी भगवान महावीर के संघ में सम्मिलित हो गए। (१४) भगवतीसूत्र, उपासकदशासूत्र एवं औपपातिक आदि शास्त्रों में यत्र-तत्र उनके व्यक्तित्त्व का परिचय देते हुए कहा है- “ श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी इन्द्रभूति अनगार उग्र तपस्वी, दीप्त तपस्वी, तप्त तपस्वी, घोर ब्रह्मचर्यवासी, लछिमा ऋद्धि तथा महानसलब्धि से सम्पन्न, विपुल तेजोलेश्या को अन्तरलीन करने वाले थे। ज्ञान की अपेक्षा से वे चार ज्ञान और चतुर्दश पूर्व के धारक थे तथा सर्वाक्षर सन्निपाती - जैसी विविध लब्धियों के धारक थे। भगवान महावीर से न तो अतिदूर और न ही अतिनिकट, ऊर्ध्वजानू और अधोसिर हो ( उकडू आसन की मुद्रा में ) बैठते थे। ध्यानकोष्ठ में विराजमान होकर वे तप और संयम से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरते थे । आपका विनय इतनी उच्च कोटि का था कि स्वयं को जब भी कोई प्रश्न पूछना होता तो वे अपने स्थान से तत्परतापूर्वक उठकर भगवान के पास जाते और तीन बार प्रदक्षिणापूर्वक वन्दना - नमस्कार करते थे। फिर मर्यादित क्षेत्र में प्राञ्जलयुक्त होकर भगवान से पूछते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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