Book Title: Mandira Sati Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Lala Shivkarandasji Arjundas

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Page 5
________________ शील वृत एक जाण ॥ ६ ॥ सर्व विघन ने नाश कर । सर्थ संपत दातार ॥ सर्व सुखाएं। दाता सदा । शील सर्व श्रृंगार ॥ ७॥ शूर वीर सत वन्त नर । तेह आराधी सकंत ॥d खण्ड तो अबला जो पालवे । ते तेहथी आधिकंत ॥ ८॥ महा सती मन्दिरावती । द्रुमका १ भिख्यारी कुष्टि भरतार ॥ ते तजतां ते न तज्या । सही सूरी परिहार ॥ ९ ॥ महा संकटे सी जोग ते । पतिवृत पाल्यो विशुद्ध ॥ तो दुःख गयो स्वप्ननी परे । पामी ऋद्धि वर बुद्धा N॥ १०॥ शील सत्य ने द्रढ करण । हित वाहक अधिकार ॥ भग्नि बन्धू श्रवण मनन IN करो प्रमाद निवार ॥ १ ॥ ॥ ढाल १ ली ॥ चार पहर को दिन हुवेरे लाल॥d यह ॥शील सत्यनी सुणो कथारे लाल । यहीज जगे सुख कार होश्रोताजना|आराधी पाली सुखी हुवारे लाल । तेह तणो कहूं अधिकार हो श्रोता जन ॥ शील ॥१॥ जंबर द्विप में दीपतोरे लाल । भरत क्षेत्र ने मझार हो श्रोता जन ॥ क्षिती प्रतिष्ट पुर शोहा ।। तोरे लाल ॥ गढ मढ पोल प्रकार हो श्रो० ॥ शील ॥ २ ॥ रिपु मर्दन नरेश्वरुरे लाला Mo रिपु नष्ट जिण कीध हो श्रो॥ न्याय नीती निपुण तारेलाल । तेह थी शोभा लीध हो। श्रो० ॥ शील ॥३॥ मदन रेखा राणी भलीरे लाल । सजीयो शील सिणगार तेश्रो. गुणोंका ॥ नमन खमण गुणथी श्रेयेरे लाल । धर्मात्म गुणागार हो श्रो० ॥ शी० ॥ ४ ॥ ब्रह्मा

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