Book Title: Mandira Sati Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Lala Shivkarandasji Arjundas

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Page 19
________________ म. स. २ऊकरडी ८ 1 रे ॥ सत्य ॥ ६ ॥ तूं भामनी दामनी समीरे | कंचन तन भल काय ॥ हूं कोडीयो शेंडी खण्ड १ १ बिजली क्यों समो | एतो जोडो नहीं शोभायरे ॥ सत्य ॥ ७ ॥ अनं मुज संग थायरो ए सुन्दर रुप शरीर । क्षिणमा हें विणसी जस ने । पात्रसी बहूली पीररे ॥ सत्य ॥ ७ ॥ दक्षिण सुख बहु दुःख कारणे । तूं मत कर म्हारो साथ | तुज सुख कारण में कहू । ते मान तूं म्हारी बातरे ॥ सत्य ॥ ८ ॥ अजु लगण थारा माहागरे । मिलोयां नहीं छ अंग ॥ तिहां लग कुछ हरकत नहीं छे । कर तूं बीजा ना संगरे ॥ सत्य ॥ ९ ॥ जो तुम बाल पणा थकीरे । धारी राख्यो मन मांय ॥ नाम स्थान मुत्र ने कह । हूं देवू तिहा पहोचाय . ॥ सत्य ॥ १० ॥ वचन इसा मन्दीरा सुणीजी । नेणा जल बर्षाय ॥ वश २ नाथ अत्र चुप रहो । एह बचन न मुझ थी सुगाव जी ॥ सत्य ॥ ११ ॥ राज सज्जन तजतां थका जी न पाइ किंचित दुःख । दुःख हुवा हिवणा घणां जी । ए बचन सुणी आप मुम्ब जी ॥ सत्य ॥ १३ ॥ कुलवन्ती कन्या भणी जी । सुणत्री न घंटे ए बात ॥ तो करवी रही वेगली एक रोम थी हूं नही चहात जी ॥ सत्य ॥ १४ ॥ वांछयो नहीं में मन करी जी । अन्यथ (पुरुष ने तांय || सुरेन्द्र नरेन्द्र से अधिक छो । तुम मुझ प्राण ना रहाय जी ॥ सत्य ॥ १५ ॥ इण भवतो अर्पण छेजी । तन मन आप चरण ॥ एह वचन हिव काढ सो तो

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