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ऋषिजी। सेवेसी अमोलख कीवी ॥२॥ कथानुसार करी चरी ए। विरुद्ध जे मे उचा#. सारीयो । मिच्छा दुष्कृत्य देइ करुं अर्ज । मेधावी सुधारीयो॥ देव अहंत गुरु निग्रन्थ धामण्डर
पण्डित २३ दया में धारीये ॥ भवो भव शिव सुख मिली । वेगी मोक्ष पधारीये ॥३॥
निरुपदप परम पूज्य श्री कहान जी ऋषिजी महाराजके सम्प्रदायके महंत मुनिराज श्री खूबा ऋषिजी महाराज, तस्य शिष्य आर्य मुनिराज श्री चेना ऋषि जी महाराज तस्य शिष्य बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलख ऋषि जी महाराज चित सत्य शील महातम श्री मन्दिरा सती परित समाप्तम् ॥७॥
खुशखबा. "
श्री परमात्म मार्ग दर्शक ५०० पृष्टका बड़ा ग्रन्थरी मनहर रत्न धन्नावली ग्रंथ प रहे हैं छपवाद लालाजी नेतरामजी रामनारायणजी की तरफ से अमुल्य सायेंगे. अमुल्य पुस्तके जैन तत्व प्रकाश चंद्रसेश लीलावर रक्तामर मूल ॥ यह पुस्तको उपकर तैयार हैं लिख मुजब टपाल खरच भेजकर निम्नलिखित पत्ते जीय. स्टांप व पुस्तक गेर बदले जावे अिसके हम जुम्मेदार नहीं है.
पता-लाला ने राम राम
जोहरी चारकमान, दक्षिण हैद्राबाद. NI