Book Title: Mandira Sati Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Lala Shivkarandasji Arjundas
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 33333333३७७७७७७७७33333333333333 बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलख ऋषिजी महाराज रचित . सत्यका सच्चा प्रभाव बतानवाला मन्दिरा सती चरित्र मुल्य-सत्य र जा जा जा जा जान प्रसिद्धकर्ता-लाला शिवकरणदासजी अर्जुनदास (हंद्राबाद दक्षिण.) मी वीर संवत २४३८. विक्रम १९६९. अक्षावितीया. सर्व प्रत १०००. अंबिका प्रिंटिंग प्रेस.-हैद्राबाद दक्षिण. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना. SarasRN निन्दन्तु नीति निपुणा यदि वा स्तुवन्तु । श्लोक. लक्ष्मीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम् ॥ अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा। न्याय्यात्पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः ॥ सत्पुरुषोंका कथन है कि-"आखिर सत्यतिरे" और "सत्यका वाली साहब" तथा "सच्चे का बोल पाला और झूठे का मुह काला" यह बातों अक्षरेक्षर सत्य है, निसंशय है. फक इसका परिचय लेने वालाही चाहिये, जो सत्यवंत इन बचोके पक्के आस्तिक निश्चयात्मक होते हैं. उनकी कोई बडे नीति शास्त्र के पारग भी कभी चाह निन्दा करें, चाहे स्तुनी करें, लक्ष्मी (धन) घर में बहुतसी आधे, चाहे चली जाय, प्राण चाहे अभी जॉय, चाहं कल्पान्त में. परन्तु धीर लोग न्यायका - सत्य का मार्ग छोडकर एक पगभी उससे वाहिर नहीं चलते है. ऐसा कथन वरोक्त श्लोक में किया है. इस बातका हुबहु तादृश्य चित्र बताकर सत्यवन्त शीलबन्त का डामाडोल हुवे चित को स्थिर करने - द्रढ करने, यह मन्दिरा सतीका चारित्र बडाही अशर कारक है. इस का श्रवण सबही को लाभ कारक है. परन्तु विशेषत्व स्त्री यों को तो यह चरित्र अद्यत स्थिर चिंत से अवस्यही पठन श्रवन मनन नि Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ध्यासन करने योग्य है, हमारा हृदय साक्षी देता है कि सती प्रेमालाऔ इसका श्रवण पठन करने से जरूर कर्तव्य परायण होगी, अपने सातत्व के कृतव्य में, पति और स्वजनोंकी भक्ति करने की रीति में, और विशेषत्व लि जाति को धर्म ज्ञान का अभ्यास होने से क्या फायदा होते है, माताओं को पुत्र पुत्री ओंकी तरफ कैसी फरज अदा करना उचित है, बगैरा मुख्य २ कर्तव्यों में समजेगी, फिर उस प्रमाणे वर्ताव करना उनके इकत्यार है. हमार सुभाग्योदयले परम पुज्य श्री कहानजी ऋषिजी महाराजके सम्प्रदायके स्थिावर तपश्वी जी श्री श्री केवल ऋषिजी महाराज वृद्ध अवस्थाके कारणसे यहां विराजमान हुवे हैं, और उनके सेवामे बाल ब्रह्मचारी पण्डित मुनि श्री अमोलख ऋषिजी महाराज विराजते हैं. इनके सद्वौदसे इस शहर के लोगों ज्ञान बृद्धि करने को बडे उत्सहाही बने हैं, और आजतक छोटो बडी ३१,००० पुस्तकोंका अमुल्य - मुफत प्रसार किया है. तदनुसारही यह चरित्र दिल्ली जिल्लके कानोड (महेन्द्रगड) के निवासी अगरवाल वंशी द्रढ साधू मार्गी लाला शिवकरणदास के सुपुत्र अर्जुनदास ने इस ग्रन्थ ने कर्ता मुनिके पास सामायिक प्रति क्रमण अर्थ सहित, और पच्चीस बोलका थोक बहुतही विस्तार सहित, तथा लघु दंडक वगैरा का अभ्यास करनेसे झान बृद्धी की उम्मेद हुइ, उस वक्त यह चरित्र महाराज श्री रात्रिको फरमाते थे, इसे श्रवन कर उपकार का कर्ता जान इसकी १००० प्रत छापवाकर अपने धर्मात्मा भडिश बंधवाको अमुल्य अर्पण कर कलशता समजते हैं. चारकमान दक्षिण हैद्राबाद, सत्य वृद्धिका इच्छा, वीर. २४२८, वि. १९६८. चैत्री पौर्णिमा. लाला सुखदेव शाहजी ज्वाला प्रशाद. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ नमः ॥ ॥ श्री परमात्मायः ॥ ___ अथ शील महात्म ॥ श्री मन्दिरा सती चरित्र प्रारंभ ॥ ॥ दुहा ॥ सच्चिदानंद जग विभू । अव्यय अव्या वाध ॥ त्रिकरण शुद्ध वन्द्र नमु । वक्षो विमल बुद्ध साध ॥ १॥ तीर्थंकर सिद्ध सुरीवर । वह सूत्री मुनि राज ॥ लिए पांचो पद में नमू । देवो रचन सुसाज ॥ २ ॥ गोयम गण धर लब्ध घर । महू साधू सिरदार ॥ प्रणमू श्री गुरु. देवने । स्याद् वाद मत दातार ॥ ३ ॥ अहं गिरा एक प्रगटी । सारदा दाता सार ।। तास प्रशाद साहस करूं । वरणू शील अधिकार ॥ ४ ॥ गुणो बृद्ध सह संत को । आश्रय धर आधार ॥ मन्दिरा सती सत्यनी कथा । विस्तार संगित मझार॥ ५ ॥सर्व वृत शिर सेहरो । सर्व धर्म मंडाण । सर्व गुणो मा मूल गुण ॥ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शील वृत एक जाण ॥ ६ ॥ सर्व विघन ने नाश कर । सर्थ संपत दातार ॥ सर्व सुखाएं। दाता सदा । शील सर्व श्रृंगार ॥ ७॥ शूर वीर सत वन्त नर । तेह आराधी सकंत ॥d खण्ड तो अबला जो पालवे । ते तेहथी आधिकंत ॥ ८॥ महा सती मन्दिरावती । द्रुमका १ भिख्यारी कुष्टि भरतार ॥ ते तजतां ते न तज्या । सही सूरी परिहार ॥ ९ ॥ महा संकटे सी जोग ते । पतिवृत पाल्यो विशुद्ध ॥ तो दुःख गयो स्वप्ननी परे । पामी ऋद्धि वर बुद्धा N॥ १०॥ शील सत्य ने द्रढ करण । हित वाहक अधिकार ॥ भग्नि बन्धू श्रवण मनन IN करो प्रमाद निवार ॥ १ ॥ ॥ ढाल १ ली ॥ चार पहर को दिन हुवेरे लाल॥d यह ॥शील सत्यनी सुणो कथारे लाल । यहीज जगे सुख कार होश्रोताजना|आराधी पाली सुखी हुवारे लाल । तेह तणो कहूं अधिकार हो श्रोता जन ॥ शील ॥१॥ जंबर द्विप में दीपतोरे लाल । भरत क्षेत्र ने मझार हो श्रोता जन ॥ क्षिती प्रतिष्ट पुर शोहा ।। तोरे लाल ॥ गढ मढ पोल प्रकार हो श्रो० ॥ शील ॥ २ ॥ रिपु मर्दन नरेश्वरुरे लाला Mo रिपु नष्ट जिण कीध हो श्रो॥ न्याय नीती निपुण तारेलाल । तेह थी शोभा लीध हो। श्रो० ॥ शील ॥३॥ मदन रेखा राणी भलीरे लाल । सजीयो शील सिणगार तेश्रो. गुणोंका ॥ नमन खमण गुणथी श्रेयेरे लाल । धर्मात्म गुणागार हो श्रो० ॥ शी० ॥ ४ ॥ ब्रह्मा Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बादी मंत्रीवरुरे लाल । राज धुरंधर तेह हो श्रो० ॥ राजा प्रजा मन मोहवतोरे लाल बुद्धि निध्यान गुण गेह हो श्रो० ॥ शील ॥ ५ ॥ धर्मी दानी बहु गुणीरे लाल || नगरी तणा नर नार हो श्रो० ॥ पंगू परधन हरणनेरे लाल । अंध निरखण परदार हो श्रो ॥ शील || ६ || राजा परजा सहू पुण्यथीरे लाल । विलसे इच्छित सुख हो श्रो ॥ तोषे निज आत्मारे लाल । दाने गमावे पर दुःख हो श्रो० ॥ शील ॥ ७ ॥ मदन रेखा राणी एकदारे लाल । सूती सुख सेज मझार हो श्रो० ॥ देव भवन अवलोकीयोरे लाल, ।। शिखर बन्ध मनोहार हो श्रो० || शील ॥ ८ ॥ तुर्त ते हर्षित हीयेरे लाल || प्रितम पासे आय हो श्रो० ॥ सुखे निद्रा विसर्जन करीरे लाल || नरमी स्वप्न जणाय हो श्री० || शील ॥ ९ ॥ पूल होसी कुल मन्डणोरे लाल । कहे नरिन्द सत्कार हो श्रो० ॥ अनन्दी अंगना सुणीरे लाल । नमन करी तेवार हो श्रो० ॥ शील ॥ १० ॥ निज सद ने आइ फिरीरे लाल । धर्मिन दासी परिवार हो श्रो० ॥ निद्रा दुस्वप्न निवारवारे लाल जागरण कियो तेवार हो श्री० ॥ शील ॥ ११ ॥ करे यत्ना सहू गर्भकीरे लाल । दोषण सगला टाल हो श्रो० ॥ तीजे मासे ऊपनारे लाल । डोहला पुण्य विशाल हो श्रो० ॥ शलि ॥ १२ ॥ दान दीजे शील पालीयोरे लाल | सुख दीजे सहू तांय हो श्रो० ॥ ते १. परस्त्री Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सहू पूरे राजेश्वरुरे लाल । सवा नव मांस बीत्याय हो श्रो० ॥ शील ॥ १३ ॥ शुभ लग्ने - खण्ड? म. स. प्रसवी तदारे लाल । कंन्या सूरूप दिव्य काय हो श्रो० ।। दासी वधाइदी रायनेरे लाल । संतोषी राय तिण ताय हो श्रो० ॥ शील ॥ १४ ॥ जन्म उत्सव कियो रीत ज्यूरे लाल IN चारों आहार निप जाय हो श्रो० ॥ जिमायो परिवारनेरे लाल । स्वप्न अनुसार नामा Nठाय हो श्रो० ॥ शील ॥ १५ ॥ “मन्दिरा कुँवरी” सुण हर्षियारे लाल । चिरंजीवो देव आशीष हो श्रो० ॥ सह जन हर्षी घरे गयारे लाल । बाइ वदे ज्यों पति' निश हो श्रो० | १ चंद्र Hशील॥१६॥ वाल क्रिडा तणे विपरे लाल । माता प्रेम जणाय हो श्रो० ॥ नवकार आदि २ सिखावाइरे लाल । अपशब्द नाही वदाय हो श्रो० ॥ शील ॥१७॥ अचीर्ण अनीती तजावतीरे लाल । चलावती नीती मय हो श्री० ॥ कू संगे नाही पठावतीरे लाल । लघुवयो। सुज्ञते थाय हो श्रो० ।। शील ॥ १८ ॥ विज्ञान वय जब प्रगमीरे लाल । तब सुसाध्वी पास हो श्रोत० ॥ धर्म ज्ञान अर्थ युक्तिथीरे लाल । खांत करायो अभ्यास हो श्रो० ॥ शलि ॥ १९ ॥ सामायिक प्रति क्रमणोरे लाल । मार्गणी द्रव्य प्रमाण हो श्रो। नया निक्षेप क्रिया तत्वनीरे लाल । हुइ परमार्थ की जाण हो श्री० ॥ शील ॥ २०॥ चौसठ। Vaकला त्रिया तणीरे लाल । सीखी संसारिक तेह हो श्रो० ॥ प्रथम ढाल. गुण गृहण की Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १चंद्रमा कोयल ४ शरीर रे लाल । ऋषि अमोलख केह हो श्रो० ॥शील॥२१॥४॥हा॥ इम गुण तन वृद्धि हुवा) प्रोढ पणो ते पाय ॥ नव यौवन अंग उपंग वर । इन्द्राणी ने लजाय ॥ १॥ पूर्णेन्दू तोता मुख भाल अर्ध । मृगांक्षी शुक घ्राण । सिह कटी लज्जावती । कुम पद मंडाण ॥ २ ॥ द्रव्ये वपु वत्थ भूषणे । भावे संवेग समकित ॥ राची माची गुण गुणी । मन्दिरा शोहे हाथों मुद्रित ॥ ३ ॥ पिर्क क्यण दंती गमण । यतना ए वरतेय ॥ चिन्ते पेखी जनीता तदा बस्न पति योगी भइ एय ॥ ४ ॥ पण नृपती निश्चिन्त छे । चेतावु देखाय ॥ पुत्री वसावा । न तात घर । छेवट पर घर जाय ॥ ५॥ ७ ॥ ढाल २ री ॥ बड़े घर ताल लागी जी ॥ यह ॥ जेह द्रढ श्रद्धा धारी जी । असत्य ते नहीं स्वीकारीजी ॥ आं॥ तनुजा व जणाव वाजी । सोले श्रृंगार सजाय ॥ मंजन अंजन तंबोल भूषण वत्थ । दिप्त करी तसा काय ॥ जेह ॥ १ ॥ सहेल्या साथे करीजी । राज शभा मा पहोंचाय ॥ शरमित अधो द्रगं राखने । बाइ तातने प्रणमी आय ॥ जेह ॥ २॥ शभा पुरित भूप पेखीने जी विस्मित चित सह पाय ॥ आदर दे अनुखंग में । राय पुत्री ने वेठाय ॥ जेह ॥ ३ ॥ निज कुल रयण अवलोकने जी । अभिमाने छक्यो राय ॥ मुज सम अन्य न भूम में। १० नजिक इम जाणी कहे शभा तांय ॥ जेह ॥ 2 ॥ कहो सह निश्चय करी जी । इण भूमंडके N] - पुत्री Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ म. स. माय । समृडी सुख म्हारा जिसो । कोइ अन्य स्थान देखाय ॥जह॥५॥ खुशामदी आ. श्रित सहु कहे । आप तुल्य विश्व मंड ॥ हवो न होसी राजवी । ऋद्धि गुण आणा अखंड, खण्ड? जेह ॥ ६ ॥ इम सुण कुँरी शिर धुणेजी । नृप पूछे ते वार ॥ किम वच्छ सहू मान्य बातडी ॥ किम नतें करी अंगी कार ॥ जेह ॥ ७ ॥ कर जोडी कंन्या भणे तात । असत्या जे वाणी होय ॥ किम मानी जाय जाण.ने । जो सत्य वदे कभी सोय ॥ जेह ॥ ८॥ यह शभा सहू गर्ज वन्तनीजी । शरम खुशामद वश ॥ अविचारी भाषा लेवे । आप सोबले चो जी जरा कश ॥जह॥९॥ विश्व अनादि एह ने विषे जी। अनंत हुवा राजान ॥ चक्री ३ हरी हल धर समा । तेमां अपनो किस्यो गुमान ॥जेह॥१०॥तरतम जोगी सायबी ऐसी ।। मिली अनंती वार ॥ गर्न सरी नहीं जीवकी । तो किस्यो एहनो अहंकार ॥ जेह ॥ ११॥ सुण मुर्जाणो राजवीने । शभा पाइ चमत्कार ॥ अभिमाने छकी करी पुनः। इण परे करे उचार ॥ जेह ॥ १२ ॥ अहो शभा इण बाल बचन परातुम लक्षन देवो लगा॥सच कहो यह सुख संपदा । पाया किण उपकार ॥ जेह ॥ १३ ॥ सह कर जोडीने कहे । श्वामी आपको सह उपकार ॥ कल्प वृक्ष सम आपछो । म्हाणे वांच्छित सुख दातार ॥ जेह ॥ १४ ॥ जीवां छां आप आश्रय हम । आप रुठया मर जाय ॥ मिथ्या हम नहीं ऊचरां। Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोगन इश्वरना खाय ॥जेह॥१५॥ हाँस्य वचन बाइ वदे। अहो भोला हुवा सह लोक ॥ महीपा। रीजावण कारणे। सह वयण वदो छोफोक ॥जेह॥१६॥ कर्ता अकर्ता आत्मा निज ।श्री जिन जी फरमाय ॥ कर्त कर्म अनुसारथी जीव । सुख दुःख जग में पाय ॥जेह॥१७॥ जो पुण्य संचने लावीया तो । वणिया राजा प्रधान ॥ पापो पार्जित प्राणियाने । मिले न पूरो धान ॥ जेह ॥ १८ ॥ नुन्याधिक कोई करे सके नहीं । कर्मोदय के मांय ॥ तो अर्प वो सुखा. दुःख को । एता हाँस जनक जणाय ॥ जेह ॥ १९ ॥ सकट नीचे वहे श्वान ते जाणे । मुज आधारे गती एह ॥ तिम मोहो मुर्छित जीवडा । फोकट गुमाने फूलेय ॥ जेह ॥ Mom २० ॥ इत्यादि युक्त वचन थी जी । शभा निरुत्तर थाय ॥ ढाल युगेम शाल सस की। यह । ऋषि अमोलख गाय । जेह ॥२१॥७॥दुहा॥ निज वाचा खन्डी लखी । कोपातुर * लाल हवो राय ॥ अरुण नयण तिक्ष वयण थी। कुँवरीने चेताय ॥ १॥ विद्या वावली तूं भइ । शुद्धन रही लगार ॥ भरी शभा मे नारी हो । बके इम किम गमार ॥२॥ किस्यो जाणे तूं शास्त्र में । वस्त्रन जाणे पेर ॥ मुख आव्यो ते ऊचर्यो । जाण्यो नही सार फेर ॥ ३ ॥ जावा दे तूं अन्य को । निज वीती प्रकाश ॥ किण आधारे सुखी दुःखी । ऊंडो जरा विमास ॥ ४ ॥ तूं पोते भोली हुइ । अन्य ने भोला बणाय ॥ जैसे हडक्या स्वान ने कमSE Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स. स. ४ सगला श्वान जणाय ॥ ५ ॥ ७ ॥ ढाल ३ री ॥ बंधव बोल मानो हो ॥ यह० ॥ इस वचन सुण तात ना । मन्दिरा न मुरजाइ हो || नहीं बुरो मन मानीयो । नहीं ते डर खण्ड? पाइ हो || राजेश्वर वात विचारो हो | आं ॥ १ ॥ शरमित नयन नरमी भणे । तात बुरो न मानो हो ॥ न्याय सोचो हृदय विषे । खोटो पक्ष न ताणो हो ॥ राजे ॥ २ ॥ हूं म्हा रो हठ स्थापवा । नहीं बात वणावुं हो || जिनागम प्रमाण थी । सत्यासत्य जणावू हो राजे ॥ ३ ॥ कर्ता हर्ता जगत् में। दूसरो कोइ नहीं हो ॥ पुण्य पाप संच्या जिवा सुख दुःख सहू पाइ हो || राजे || ४ || कर्म वश पड्या जीवडा । सुख कारण तरसे ही ॥ सुखी होवा समर्थ नहीं । सोचो आप परसे हो ॥ राजे ॥ ६ ॥ जो शक्ति छे तुम विषेष सुख दुःख करवारी हो । तो किम तुम होवो नहीं । चक्र वृत पद धारी हो । राजे ७ ॥ तरसो मुज बन्धव कारणे । ते लेवो निप जाइ हो । और खामी घणी दिसे । पूरो हिवणाई हो || राजे || ८ || अन्य भणी सुखी करो । तो निज प्रजा ने कीजे हो ऊंच नीचता टालने । सहू सरीखारीजे हो ॥ राजे ॥ ९ ॥ एकने किया सचीवजी । एक कोटवाल हो । एक प्यादा दोड्या फिरे । एक नो मद् गालो हो ॥ राजे ॥ १० ॥ शक्तिवंत होइ प्रभृ । न्यायालय किम करया हो ॥ सहू ने चलावो नीत विषे । विन Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सहायक जरीया हो ॥राजे ॥ ११॥ अन्नौदक विण घणा मरे । शीत ताप पिडाया हो। 5 झूरे घणा धन कुटंब ने । देवो ताप मिटाया हो ॥ राज ॥ १२ ॥ निज ने सुखी नहीं। कर सके । तो परने किम करसे हो ॥ भूखो भिख्यारी तणो । उदर किम भरसे हो ॥ राजे ॥ १३ ॥ म्हारी जो पूछो खरी । तो तात जी सुण लीजो हो ॥ पूर्व जन्म पुण्य ।। संचीया । वायो धर्म नो बीजो हो ॥ राजे ॥ १४ ॥ तो पुण्यात्मा तुम जिसे । घर उपनी आइ हो ॥ सुख संपत विलसी रही । ए संचित कमाइ हो ॥ राजे ॥ १५ ॥ कीधो सो पाई इहां । करस्यूं सो पास्यूं हो ॥ यह निश्चय म्हारो खगे। कह्यो तात जी यांना स्यूं हो ॥ राजे ॥ १६ ॥ आप पण श्रद्धो इसो । छोडा मिथ्या गुमानो हो ॥ जिन वयण व सत्य श्रद्धीये । बाल विनंती मानो हो ॥ राजे ॥ १७ ॥ आपको मन दुःखाव वा । नहीं में । इहां बोली हो ॥ पूज्य पिता श्री महारा । हिता हित गृहो तोली हो ॥ राजे ॥१८॥ इम बहु मधुर वयण करी । कुँवरी राय समजावे हो ॥ ढाल तीजी अमोलख कही। न्याय सुज्ञे सुहाचे हो ॥ राजे ॥ १९ ॥ ७ ॥ दुहा ॥ शीतोज्वर उद्वत भणी । पय सकर को पाय ॥ विष रुप जिम प्रगमे । तिम नृप ने ते वाय ॥१॥ सम विषम रूप मानीया कोपातुर अतिथायः ॥ जाणी कुँवरी वैरणो । अविनीत हट्ट गृहाय ॥ २ ॥ पापणी भरी म Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ म. स. भा शभा विषे | म्हारो कियो अपमान || उत्पन्न हुइ धरणी थकी । भरी महा अभिमान ॥ ३ ॥ ऐसी T दुष्ट कंन्य थकी । अपुत्र्या सुखी होय ॥ ऐसी विद्या पाठक थकी । मुर्खही खण्ड १ मन मोय ॥ ४ ॥ मान खन्डू हूं एहनो । जिम खन्ड्यो मुज इण । तो आंख्या खुलसी जरा । सोची बोले ततूक्षिण ॥ ५ ॥ ● ॥ ढाल ४ थी ॥ तावडा धीमोसो पडजरे ॥ यह ० ॥ कर्म गत लीजो जन भली हो कर्म०॥ होणहार सो होवे निश्चय । टले नहीं टाली आं ॥ अरे दुरात्म पुली तुजने । शरम न लगारी । विना काम थें बड २ करीने । पत खोइ थारी ॥ कर्म ॥ १ ॥ तुजने अवलोकत मुज मन में । प्रेम अति आयो || चिन्त्यो उपरणा एहवे स्थान । जन्म भर सहू सुख पायो ॥ कर्म ॥ २ ॥ पण थारा ए बचन सेल १ माला थी । मुज मन भेदायो || नशीब थारा फूटा बाइ । जाणी दुःख उपायो || कर्म ॥ ३ तो पण आवरी मुज कषायने । तुजने चेतावूं || मान महारो उपकार तो तुजने । राजा ने परणावु ॥ कर्म ॥ ४ ॥ हूं छू समर्थ इच्छित करवा । शंका न लगारो || क्षिण में राय को रंक वणावुं । राय करूं कंगालो || कर्म ॥ ५ ॥ सत्य मान ए बचन हमारो । तज देष हटीलाइ || थारा हाथ थारा आत्मकी । दुशमन क्यों थाइ ॥ कर्म ॥ ६ ॥ कुंबरी कहे कृपा पिताजी । रीस नही कीजे || असत्य बात न मानू कदापि । इच्छा तस दीजे ॥ कर्म | Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७॥ आपदेशों मोटा नृप ताइ । जो मुज कर्म अवलाइ। तो ते राजा राज गमाइ । भिख्यारी थाइ ॥ कर्म ॥ ८ ॥ जो देशो कधी रंक भणीने । उदय हुवे पुण्याइ ॥ तो ते । क्षिण अन्तर ने माइ । महाराजा थाइ ॥ कर्म ॥ ९ ॥ तेह थी आपका कोप को मुजने । जरा डर नहीं आइ ॥ नहीं मानु मिथ्या जबरी से । डरूं नहीं डराइ ॥ कर्म ॥ १० ॥ सहू शभा जन कहवे बाइ । तजो तुम हटीलाइ ॥ मानो बचन पिता भूपत को । ज्ञाना वन्त थाइ ॥ कर्म ॥ ११ ॥ वक्त विचारो ऊंडो एवारो । पड्या राय वश मांइ ॥ कुँवरी कहे वश पड़ी कर्म के । और करे कांइ ॥ कर्म ॥ १२ ॥ कहे नृप सह ने बोलो मत को Aion खुटी इण पुण्याइ ॥ कर्मे दुःख लिखा कर लाइ ते । देवू हूं बताइ । कर्म ॥ १३ ॥ समजाया न समजे बचन से । जे लातां चहाइ ॥ देव चमारका चर्म पूजावे । रोशेयोन फरमाइ ॥ कर्म ॥ १४ ॥ कहे भटने वेगी जावो तुम । जोवो नगर मांइ ॥ धर्म शाला भी देवल ने वाग में । जिहां जो नर पाइ ॥ कर्म ॥ १५ ॥ गलित कुष्ट तस अंग झड पडिया निराधार होवे ॥ निर्धन कंगाल कृपण दुर्बल । कूरुप' कर शाहे ॥ कर्म ॥ १६ ॥ लावो पकडी शिघ्र इहां तस । देर नहीं करणी ॥ इण बाइरे ऐसो नशीबे । सुखी होसी परणी| - कर्म ॥ १७ ॥ धस मस करता सीपाइ चाल्या । सह विस्मय पाया ॥ हाँसी की यहा। Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हुइ वगासी । करे किसो डाया ॥ कर्म ॥ १८ ॥ कुँवरी ने तो वाह्याभ्यन्तर । दुःख जराKaur म. स.न दीसे । निश्चय होणहार पर धार्यो । सह अश्चर्य हाँसे ॥ कर्म ॥ १९ ॥ माता बोलाइक वाइ ने । तक्षिण तिहां जावे ।। ढाल चौथी कही अमोलख । होतव सो थावे ॥ कर्म ॥ २१ ॥ * ॥ दुहा ॥ जननी प्रेमोत्सुख कहे । सांभली प्यारी जात । जे जे ते शभा में कही । ते साची सह बात ॥ १ ॥ पण नहीं मानी राय जी । मोहोदय वश होय । तिहथी तूं ताणे मति । बोली जे अवसर जोय ॥ २॥ मन्दिरा कह कर जोडके । इम मता मां समजाय ॥ जे जाणी असत्य छ । ते सत्य किम कहेवाय ॥ ३ ॥ असत्य सत्य असत्य चव । गिथ्या लागे मात ॥ एक भव सुख कारणे । अनंत भव दुःख पात ॥ ४॥ चिंता मत करो मात जी । होणहार सो थाय ॥ सत्य शील पसाय थी। दुःख सुख हो । प्रगमांय ॥ ५ ॥ ७ ॥ ढाल५मी ॥ आऊखो टूटां ने सान्धो को नहींरे ॥७॥ होणहार भव्या । सांभलारे ॥ होणहार सोइ होयरे ॥ कर्मोदय होतां जीवनरे । सगो न रहे कोयरे ॥ होण ॥ १॥ भट चट जोता पुरने विषेरे । द्रुमंक दीठो एकरे ॥ कुष्ट रोग अंग गली : भिल्यारी Nगयोरे । पडिया छे सहनों छे करे ॥ हो ॥२॥ कथा फाटी लीरा लटकतीरे । न्हाखी गोडी के गिरवा मायरे ॥ वस्त्र खन्डे लज्जाढकोरे । मक्षिका बहु भणणायरे ॥ होण ॥३॥ फूटो - Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खांडो भाजन मृतिका तणोरे । करमे लेइ मांगे भीखरे || रक्त सींचे मार्ग चालनार दुगंछ निक प्रतिक्षरे || होण || ४ || नृप को जिसडो मिल्यो । गृह्य तस भट हर्षायरे || ते चमक्यो जोइ सीपाइने रे । कहे नरमी घरायरे || होण || ५ | किम विन गुन्हे मुझने घरीरे । खेची ले जावो किण ठामरे || भट कहे डरे मत तूं जरारे । तूठा थारे पर जग श्वामरे || होण || ६ || राजा साहेव बोलवाइरे । कुँवरी तुजने परणायरे || सुख पासी तूं सहू परेरे । इम कही ताणी ले जायर || होण ॥ ७ ॥ ते तागी तस कहे आ नहींरे । किम करो म्हारी हाँसरे || गरीब सतावो विन् कारणरे । न्हाखवा धारो किसी फासरे || होण || ८ || भट समजावे मिठास थीरे ॥ मिथ्या मत जाण हम केणरे || सच्ची राम पुली तुज भणीरे । वरती जातां ही तत्क्षेगर || होण || ९ || भक्षक सत्य समाने नहींरे । छूट्टी ने भागण चढ़ायरे || धक्का देइ २ लावीयर । राय शभा रे मांयरे || होण ॥ १० ॥ जोइ रूप राजा हर्षियोरे । मंदिरा भणी बुलायरे ॥ ते आइ तत्क्षिण राजा कनेरे । माता रोकी ते नहीं रहायरे ॥ होण ॥। ११ ॥ भूपत कहे समजाय नेरे मान म्हारी तूं बातरे || छोडी दे हठ तूं थायरोरे | म्हारोइ धार्यो थातरे || होण ॥ १२ ॥ कुँवरी कहे धायें मुनुष्य कोजी । हांवे नहीं वि कालरे || पूर्व संचित पर होवती जी Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । ए निश्चय मुझ हालरे ॥ होण ॥ १३ ॥ राजा अने कुँवरी भणीरे । समजावे सपला म. स. लोकरे ॥ एकतो छोडो हट्ट भणीरे । न करो अयुक्त थोकरे । होण ॥ १४ ॥ छोरु कू छोड ७ । हुवेरे । मावित्र कू मावित्र न थायरे ॥ वोली २ ने ऊपररे । अनर्थ म करो म्हारायरेश। ॥ होण ॥ १५ ॥ कोगतुर राजा भणेरे । चुप रहो सहू ए वाररे । एह छे एहवी चन्डा-al लणारे । द्रुमक इणरा कर्म मांयरे ॥ होण ॥ १६ ॥ वयण सुणी इम गयनार । मन्दिरा तत्क्षिण जायरे ॥ कर गृह्यो कुष्टी तणोरे । जरा नहीं अंबकायरे ॥ होण ॥ १७ ॥ भिख्यारी दुरो हटेरे । किस्यो करुं हु तुज व्यायरे ॥ एक पेट दुर्लभ भरेरे । तुजन पोपू साना उगयर ।। होण ॥ १८॥ राजा कहे डरे मतीरे । ए थइ था। नाररे ॥ चाकरी पूरी कराविजेर । राखी जे आज्ञा में माररे ॥ होण ॥ १९ ॥ वस्त्र भूषण कुँवरी तणारे । भट पाता नप उतरायरे ॥ कुँवरी पोताना हाथीरे । उतारी न्हाख्या तिण ठायरे ॥ होण ॥ १९ ॥ N लज्जा ढकण जोग राखीयारे । जमाइने कंबल दयर ॥ जावो शिघ्र ग्राम वाहीरेरे । कोपा वडयो राय केयरे ॥ होण ॥ २१ ॥ आगे कुष्टी पाछे मन्दिरारे ॥ चाल्या दम्पती तस्का लर ॥ हो तब ता जिम नीपजेरे । अमोल कही पंचम ढालरे ॥ होण ॥ २२ ॥ ॥ दुहा Men हाहा कार मचीयो अति । रोवे सहेल्या मात ॥ धिक्कारे केइ राय ने । कर कुँवरी कू ब Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तात ॥ १॥ चाल्या मध्य बजार थी। कुवरी अति शरमाय ॥ वो अंग छिपावती । पति ने पाछल धाय ॥ २ ॥ आण फिराइ पुर विषे । राजाजी ते वार ॥ जो क इ साज तसदेवसी । ते राजारो गुन्हे गार ॥ ३ ॥ सुणी सह चुपका ग्ह्या । कोइ नहीं बतलाय ॥ जोड़ा स्वार्थ संसार नो । मदिरा संवग रचाय ॥ ४ ॥ आया दोनो ग्राम वाहिरे । यक्ष देवालयाच मांय ॥ भूखा प्यास थ क्या तिहां । बैठा दोना सुस्ताय ॥ ५ ॥ ७ ॥ ढाल ६ ठी॥ बलती तो देखी द्वारका ॥ यह ॥ मन्दिरा दुःव न दवी सक्यो जी । रवी पश्चिम में छि-- पाय ॥ निशा पडी तम व्यापीयो । दोनो दम्पती देवल माय जी ॥ सत्य द्रढता जोई। लो ॥ आं॥॥ कुँवरी अंगोपांग जोइ ने । कुष्टि नणे नीर वहाय ॥ मन्दिरा पूछे कर जोडने । सुख स्थाने दुःख किम आय जी ॥ सत्य ॥ २ ॥ कुष्टी कहे किर्मा कहं में म्हारा कर्म की बात ॥ नारी मिली तुझ सारखी ॥ पण कर्म करी व्याघातरे ॥ सत्य ॥३॥ du रुधीर झरीतरे तन महारेरे । अति दुगंध महकाय ॥ अंगो पांग गली गया । किमान सुख मुंज थी विलसाय जी ॥ सत्य ॥ ४ ॥ तात तुमारे राजवीरे । कियो मोटा अन्याया। K कोयतुर सो नहीं । न्हाखी तुझन मा दुःव मांयर ॥ सत्य ॥ ५ ॥ गयेसने संग का हंसली रे । सिंहग रासंभ संग ॥ शाभ नहीं लिम मुम संगे तू । तेह थी भयो मन भंगा २गदा Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ म. स. २ऊकरडी ८ 1 रे ॥ सत्य ॥ ६ ॥ तूं भामनी दामनी समीरे | कंचन तन भल काय ॥ हूं कोडीयो शेंडी खण्ड १ १ बिजली क्यों समो | एतो जोडो नहीं शोभायरे ॥ सत्य ॥ ७ ॥ अनं मुज संग थायरो ए सुन्दर रुप शरीर । क्षिणमा हें विणसी जस ने । पात्रसी बहूली पीररे ॥ सत्य ॥ ७ ॥ दक्षिण सुख बहु दुःख कारणे । तूं मत कर म्हारो साथ | तुज सुख कारण में कहू । ते मान तूं म्हारी बातरे ॥ सत्य ॥ ८ ॥ अजु लगण थारा माहागरे । मिलोयां नहीं छ अंग ॥ तिहां लग कुछ हरकत नहीं छे । कर तूं बीजा ना संगरे ॥ सत्य ॥ ९ ॥ जो तुम बाल पणा थकीरे । धारी राख्यो मन मांय ॥ नाम स्थान मुत्र ने कह । हूं देवू तिहा पहोचाय . ॥ सत्य ॥ १० ॥ वचन इसा मन्दीरा सुणीजी । नेणा जल बर्षाय ॥ वश २ नाथ अत्र चुप रहो । एह बचन न मुझ थी सुगाव जी ॥ सत्य ॥ ११ ॥ राज सज्जन तजतां थका जी न पाइ किंचित दुःख । दुःख हुवा हिवणा घणां जी । ए बचन सुणी आप मुम्ब जी ॥ सत्य ॥ १३ ॥ कुलवन्ती कन्या भणी जी । सुणत्री न घंटे ए बात ॥ तो करवी रही वेगली एक रोम थी हूं नही चहात जी ॥ सत्य ॥ १४ ॥ वांछयो नहीं में मन करी जी । अन्यथ (पुरुष ने तांय || सुरेन्द्र नरेन्द्र से अधिक छो । तुम मुझ प्राण ना रहाय जी ॥ सत्य ॥ १५ ॥ इण भवतो अर्पण छेजी । तन मन आप चरण ॥ एह वचन हिव काढ सो तो Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेस्यूं हूं अग्नि शरणजी ॥ सत्य ॥ १६ ॥ तन बिगडया थी दुःख नही जी । मन विगडया दुःख पूर ॥ एक भव के कारणे । भव अनंत बिगाडे कूर जी ॥ सत्य ॥ १७ ॥ अधिकार सह सिणगार थी जी। नारी ने सील सिणगार ॥ स्वपति तज वंछे अन्य भणी जी । तेहा । ने कोटय धिक्कार जी ॥ सत्य ॥ १८ ॥ महारे भावे तो आपछो जी । इन्द्र थी अधिकारी रूप वन्त ॥ कुंबरे थी अधिक ऋद्धि धणी जी । महा बली अहो कन्त जी ॥ सत्य ॥ १९५ M वीनंती दासी तणी जी एक मानो शिरदार ॥ पूर्वोक्त अजोग बचन ने जी । न कभी मुख उचार जी ॥सत्य॥२०॥ संतोषाणो कुष्टी सुणी । सती प्रेमला ना सुधा वेण ॥ अमोल: अगृत कहें धन्य मन्दिरा सती सम । होवो सघली बेन जी ॥ सत्य ॥ २१॥ * ॥ दुहा ॥ ही न उत्सहा. मंजुल वयण । कुष्टि कहे धर प्यार ॥ तुज ने सुखी करवा भणी । दी हिता शिक्षा ए वार ॥ १ ॥ दुःख रूप ते प्रगनी । थारा कर्म को दोष ॥ तूं मुज ने त्यागे नहीं । मुज उप जे अपशोष ॥ २ ॥ एक उदर पोषण तणो । दुष्कर थो मुझ तांय ॥ किम । पालं हू तुज भणी । अन्न वस्त्र कर सहाय ॥ ३ ॥ सती कर जोडी भणे । चिन्ता मत । करो नाथ ॥ कृपा रही जो आप की । तो सब म्हारे आथ ॥ ४ ॥ ॥ ढाल ७ मी।। में मुख देख्यो गोडी पारस को ॥ यह ॥ धन्य २ सती मन्द्रिरावती तांइ । पति वृत द्रढ । Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खण्ड १ ९ धार जी ॥ धन्य ॥ आं ॥ कहे सती श्वामी निश्चय करो मन । पुण्ये मिले नर अवतार म. स. जी ॥ धन्य ॥ १ ॥ जेजे पुद्गल जिरे भोगवा । ते पण तस मिलनार जी ॥ धन्य ॥ २ ॥ समय मात्र नहीं देर लगे तस । संजोग मिले वक्ते सार जी ॥ धन्य ॥ ३ ॥ आप के साथे हूं पण फिरस्यूं । भिक्षा ए द्वारो द्वार जी ॥ धन्य ॥ ४ ॥ भाग्य जोग जो मिलसे, आप ने । मांगता सरस निरस अहार जी ॥ धन्य ॥ ५ ॥ ते लेइ एक स्थाने आस्यां छांटी सरस तेह मझार जी || धन्य ॥ ६ ॥ आप ने पास में बेठ जिमास्यूं । करी घणी मनवार जी || धन्य ॥ ७ ॥ जे ऐंठ बाडो बचली आप को । ते मे खाइ करस्यूं गुजार जी ॥ धन्य ॥ ८ ॥ इमही जे वस्त्र मांग्या मिलसी । ते माथी चोख २ टार जी ॥ धन्य ॥ ९ ॥ हाथे सींवी पोशाक वणास्यूं । ते आप कर जो श्रृंगार जी ॥ धन्य ॥ १० ॥ उबर्या ते में सान्दी पेहरस्यूं । रहस्यूं आप ने लार जी ॥ धन्य ॥ ११ ॥ दुःख नही किंचित देस्यूं कदापि । करस्यूं सेवा चरणार जी ॥ धन्य ॥ १२ ॥ आप को सहू बोजो शिर उठास्यूं । रहस्यूं हुकम मझार जी || धन्य ॥ १३ ॥ पूर्व पुण्ये हुइ राज पुत्री । हिवे नहीं गइ सहू हार जी ॥ धन्य ॥ १४ ॥ धन्य ॥ अन्य वस्त्र थी मूंगी नहीं श्वामी । इम न करो तिस्कार जी ॥ धन्य ॥ १५ ॥ इम सुणी कुष्टी कहे चुप रहे । तूं तो बोलणी घणी Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नार जी ।। धन्य ।। १६ ॥ थाक्यो घणो हूं सहू दिन फिरतो । लेवादे निद्रा लगार जी धन्य ।। १७ । इम कहो सूतो खंटी तणी । औडा कम्बल ते वार जी ॥ धन्य ॥१८॥ ती पाते भक्ती ने उमाइ । दावे तव चरणार जी ॥ धन्य ॥ १९ ॥ माखण सम कोमला। कर तेहनो । भरी जे रक्त मझार जी ॥ धन्य ॥ २० ॥ पण दुगंछा न लावे जरा भर ।। नहीं दुगंधे फेरे घाण द्वार जी ॥ धन्य ।। २१ ।। कुष्टा निद्रा में घोरण लागो । तोही न १ नाक NI भक्ति परिहार जी ॥ धन्य ॥ २२ ॥ ढाल सातमी कही अमोलख । देखो पतिवृता अचार जी ॥ धन्य ॥ २३ ॥ ७ ॥ दुहा॥ सती पती उत्तर विना । भाक्ति तजे कहो केम ॥ मन्दिरा पग चंपी रहे । मन में प्रमेष्टी प्रेम ॥ १॥ थाक भूख प्यासे करी । तन गयो कुमलाय ॥ रंग सडू दूखे तहथी। निद्रा घेरो दियो आय ॥ २॥ पग चंपी करता था। झोको आयो ते वार ॥ तेतले तिहां नीप ज्यो । अण चिन्त्यो चमत्कार ॥ ३॥ नर नारी नो जोडलो । दिव्य स्वरूप भलकार ॥ रयण भूषण वस्त्र भला । सज्या सह सिणगार॥ NI आइ ऊभा सती सन्मुखे । सतीना खुलिया नेण ॥ चकित हुइ देखी करी । निकले नाथ मुख थी वेण ॥५॥७॥ढालम।सुणो चन्दा जी श्री मंदिर पर मात्म पासे जाव जो ॥यह । पुणवाइहो म्हारो वचन ए मान्य कियासुख पावती हित' दाइ हो। मान कर्यो सहू दुःख क्षिण में Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विण्डर म. स. गमावसी ॥। मन्दिरा मेख.नमेख रही जोइ । यह युगल किणरो होइ।इहां आया कारण कोई नर सुर कुण छे ए दोइ । सुण ॥ १॥ तव दिव्य नारी तस बोलावे । अती मीठे बचने समजावे । बाई बैम जरा मत लावे । हूं आइ हूं थारे हित दावे ।। सुण ॥ २ ॥ मुज ने नगर रक्ष सुरी धारो । हूं गुप्त आइ ग्राम मझारी । राज शभा जोती थी जेवारो । होतो दीठो जबर अनाचारो ॥ सुण ॥ ३ ॥ यह बाप केणो के कसाइ । जरा दया घट नही आइN । सुकुमाल निज बच्ची ताइ । दी कोडीया भिक्ष ने परणाइ ॥ सुण ॥ ४ ॥ जे देखी दुःख घणो में पाइ । रीस पण अधिकी आइ । मारी हाखू दुष्ठ राजा ताइ । पण म्हारो। जाणी दया लाइ ॥ सुण ॥ ४ ॥ तुज द्रढता देखी माह जगायो । तुज सुखी करण मन डो लगायो । तिहां थी महारो तन भगीयो । जोडी जोती हूं उडी खगीयो ॥ सुण ॥ ५/- आकाश N॥ बहला देश फिर्या जोइ । पण गुगवन्त तुज सम नहीं कोई । गुण होवे तो रूप ना होई । इम विप्रीत पेखी हूं रोइ ॥ सुण ॥ ६ ॥ तेतले मार्ग ने मांइ । यह कुंवर जी जाता दीटाइ । दिव्य रूप देख में हर्षाइ । ज्ञाने गुण रूडा दीठाइ ॥ सुण ॥ ७ ॥ मगधाद्विप नरकेशरी राया । नर शेकर कुँवर ये कह वाया । धर्म कर्म कला में घणा डाया। तुझ सुभाग्ये मुज ने पाया ॥ सुण ॥ ८॥ धर्म कारण तात थी लडीया। वादी विजया Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करीने नीकलीया । शूर वीर धीर गुण कादरीया । में रोकी कही मनकी चरीया ॥ सुणा ॥ ९ ॥ क्षिती प्रतिष्ट पुर पति बाइ । रुप गुणे घणी शोभाइ । माता ए धर्म विद्या पढाइ निरूपम योवने दीपाइ ॥ सुण ॥ १० ॥ धर्म चरचा राजा से करी । निरुतर राय क्रोधे। भरी । कुष्टी दुमक ने करे धरी । पण तिण अंगिकार तस नहीं करी ॥ सुण ॥ ११ ॥ । दोनों ग्राम वाहीर इण वारी । यक्षना देवल मझारी । कुँवरी रही छे अति दुःख पारी तुम नर मोटा उपकारी ॥ सुण ॥ १२ ॥ धर्मात्म ने सुखी कीजे । डूबती कन्या में उवा रीजे । जोडी जुगती जग याइ जे । दोनो धर्मात्म सुख भोगी जे ॥ सुण ॥ १३ ॥ ही । मोटो राज देस्यूं तुम ताइ । वली ऋद्धि सिद्धी जे चह इ । सदा रहस्यूं हुकम माइ इम वह पर कुँवरने मनाइ ॥ सुण ॥ १४ ॥ तुझ कारण उठा इहां लाइ । तू निरखी ले नख शिख बाइ । वली पूछीले जे मन मांइ । पती ऐसा जग में नहीं पाई ॥ सुण ॥ ॥ १५ ॥ छोडी दे इण कोडिया भिख्यारी ने । मत जन्म डूबावे वोरी में । स्वर्ग सम सुखाचा, पाणी भोग ए धारी ने । तूं ले निज हित विचारी ने ॥ सुण ॥ १६ ॥ इम बहु विध मंदिरात न समजाइ । पण सती ने मन ए नही भाइ ॥ ढाल आठमी ऋषि अमोलख गाइ ॥ देखो। पतिवृता नी द्रढ ताइ ॥ सुण ॥ १७॥ ७॥ दुहा ॥ सुरी बचन सती सांभली। खिन्न हुआ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .... .... . . .. A J ख ण्ड नन में अपार ॥ अश्चर्य पण पाइ घणो । अहो २ मोहो बिकार ॥ १ ॥ देव गति में म. स. अवतरी । मति गिल्याणी धार ॥ चलाइ सधर्म से । आमंत्रे व्यभिचार ॥ २ ॥ कठिण खण्ड वयण कहवण तणो । इण ने अवसर नाय ॥ मिठासे उतर दइ । विदा करूं समजाय ॥ ३॥ वस्त्र तन निज संभरी । निति गंभीर बचन ॥ निज पतिवृत निभाववा । उत्तर दे। इण पर ॥ ४ ॥ ढाल ९ मी ॥ उग्रसेन की लली ॥ यह ॥ सुणो माता हित कार । सती तो न करे व्यभिचार अंगिकार ॥ ७ ॥ आप म्हारे पर घणो कियो उपकार ॥ मुज काज भोगी तस्दी अगर ॥ सुणो ॥ १॥ आप तो छो बुद्ध वन्त गुण वन्त । आपा ११ आगे म्हारी बुद्दी सी चलन्त ॥ सुणो ॥ २ ॥ तो पण विनय थी करूं उचार । जोगा। Kजोग को आप करो विचार ॥ सुणो ॥ ३ ॥ तात मात हजारों मनुष्य ने समक्ष । कुष्टि क नो हाथ ग्रह्यो में हो दक्ष ॥ सुणो ॥ ४ ॥ पुर पर जन सह जाणी यह बात । मंदिरागइ कुष्टिक नी साथ ॥ सुणो ॥ ५॥ हिवे अन्य नर मुज थी केम वराय । लोकीका। विरुद्ध यह घणो देखाय ॥ सुणो ॥ ६ ॥ तेह थी निश्चय में म्हारे मन कीध । कुष्ठिक एd पति म्हारा देव मुज ने दीध ॥ सुणो ॥ ७॥ याने छोडी इन्द्र चन्द्र की न करूं चहाया । । सह थी अधिक येही पति सुख दाय ॥ सुणो ॥ ८ ॥ इण पति ने प्रशादे दोनों लोकार Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माय ॥ सुख संपती में पामस्यूं सवा ॥ सुणो ॥ ९.॥ प्राणान्त हूं नही तज्यू कोडीयो नाम साथ । मन तन करी म्हारो एक येही नाथ ॥ सुणो ॥ १० ॥ वीजा सह नर म्हारे छेजी तात भ्रात । सो बाता की मे तो कही एक बात ॥ सुणो ॥ ११ ॥ तिण थी अर्ज करूं। IN माता शीस नमाय । नर शेखर कुँवर म्हागे सहोदर थाय ॥ सुणो ॥ १२ राज ऋद्धिार भाई सहित देवो निज स्थान पहोंचाय । मुज कारण दुःख जरा. भुक्तो मां माय ॥ सुणो ॥ १३॥ सुणो कुँवरी हितकार। मान म्हारी कहणी सुख दातार ॥७॥ इम बचन सुणी देवी व कोप भराय । नेत्र अरुण कर कहे धमकाय ॥ सुणो ॥ १४ ॥ मूर्खणी हटीली तूंतो भरीव गुमान । निज सुख दुःख को जरान तुज ज्ञान ॥ सुणो ॥ १५ ॥ महारा बचन तूं मिथ्या । कयाँ चहाय । मुशकले हूं राज पुत्र लाइ छु मनाय ॥ सुणो ॥ १६ ॥ इण ने में दीनो। अटल बचन । तेह तो फिरसके नहीं कोई दिन ॥ सुणो ॥ १७॥ तेह थी म्हारो कयो। मानी नर शेखर तांय । कर भरतार जे. तूं सुख चहाय ॥ सुणो ॥ १८ ॥ मेहनत म्हारी व होसी सफल । बचन महारो रहसी अटल ॥ सुणो ॥ १९ ॥ खबरदार ना बोले मत IN/ उठ कर गृह राय कुँवर नो पट ॥ सुणो ॥ २० ॥ हिवे नटथा पामसी दुःख अपार । कूल मरण मारस्यूं हूं इणवार ॥ सुगो ॥ २१ ॥ बोल शिघ थारा मन की बात । क्यों नहीं उठान Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ म. स. | तूं शरम क्यों लात ॥ सुणो ॥ २२ ॥ इम देवी कुँवरी ने घणी समजाय ॥ ढाल नवमी वाडी १२ । अषि अमोलख गाय ॥ सुणो ॥ २३ ।। ७ ॥ दुहा ॥ बार २ सुरी वयण सुण । मंदिरा । कह कर जोड ॥ माता ऐसा बचन सुण । मुज ने लागे खोड ॥ १॥ कह्यो में थांरान थकी । मरण मुझ कबूल ॥ पण नहीं वाच्छं अन्य ने । अनंत दुःख को मूल ॥ २ ॥ एका भव दुःख मरण से । मां में डरघू नाय ॥ पण अनंत भव बीगडे । कदापी ते न कराय | १३ ॥ डरावे तूं मुझ भणी । जाणी उन्मर बाल ॥ पण वृत रक्षण भणी । मुज ने जाण । १२ जे काल ॥ ४ ॥ कृपा करी अहो मात जी । बचन इस मा उचार ॥ लेइ म्हारा भाइ ने। । शिघ्र इहां थी पधार ॥ ५॥ ॥ ढाल १० मी ॥ थारो गयोरे यौवन पाछो नहीं आवे ॥ यह ॥ इन सुनी सती नी वाणी | चन्डा चन्डे प्रजलाणी । अरुण नेत्र तन कंपाक वे ॥ पण सती तो सत्य नहीं छिटकावे ॥ १॥ रीसे सती नी टंगडी झाली । दीना आकाश में उछाली ॥ गणण करीमियम!! ३ | धार्णः सती पडवा लागी । सुरी त्रिसूल ऊभी करी नागी । झेलो तिण पर तन भेदावे ।। पण ॥ ३ ॥ फिर उछाले फिर। झल । धरणी ये डाल पग थी ठेल । तिक्षण जार वर लगावे ॥ पण ॥ ४ ॥ रक्त तणी । छूटी धारा । छिद्र पढ्या तन जिम झारा । मांस लटक बारे आवे ॥ पण ॥ ५॥ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उज्वल वेदना होवा लागी । नर्क निगोद का दुःख सागी । तो भी सती नहीं घबरावे ॥ पण ॥ ६ ॥ धीर वीर हो मूनी नी परे । सति प्रभेष्टी चित धरे । भाले शल्य नहीं चडा. वे ॥ पण ॥ ७ ॥ नर्क तणा दुःख संभारे जे भोगवी आइ अनंत वारे ॥ सागरोपमा पार किम पावे ॥ पण ॥८॥तिसा तो यह दुःख नाहीं । किंचित काल में विरलाइ । पणः । आगे तो सुख उपजावे ॥ पण ॥ ९ ॥ इत्यादि विचारे समता धारी । ठस्को नहीं किया उचारी । देखी देवी अश्चर्य लावे ।। पण ॥ १० ॥ त्रीसूल ठवी इम कहे सूरी । थारी। अजु इच्छा नहीं हुइ पूरी ॥ क्यों कमवती कराये ॥ पण । ११ । भान २ म्हारी वाणी मत कर जरा आना कानी । नर शेखर वर जो सुख चहावे ॥पण॥१२॥ सती करंगुली । कान में घाली । कहे देवी से बोल संभाली । कर जे. थारे मन में फावे ॥ पण ॥ १३ ॥ इण तनका खन्डो खन्ड जो थावे । तमां म्हारो कोइ नहीं जावे । पण शील स्वण ने नाd बट्टो आवे ॥ पण ॥ १४ ॥ अनंत भव में जे नहीं पाइ । तिण विन अनंत भव भी आइ । ते अबके ही मुज कर आवे ॥ पग ॥ १५ ।। येह सब दुःख कापन हारो । येही सब सुख आपन हारो ॥ चिंता माणी थी अधिक भावे ॥ पण ।। १६ ।। नहीं नहीं नहीं खन्डू इण ताइ । तूं कांइ करसी म्हारो बाइ । मरण से अधिक नहीं देखावे ! पण ॥ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३ १७ ॥ इत्यादि सती सबौध कह्यो । सुणी देवी अति अश्चर्य लयो । मन में देवी मुरजा । खण्ड वे ।। पण ॥ १८ ॥ हक न्हाक इण ने मे सताइ । नाहक कर्म लिया बंधाइ ॥ धन्य २॥ यह इम स्थिर रहावे ।। पण ।। १९ ।। द्रढता जोइ बैर विलावे । मोह मन में उत्पन्न ।। थावे । सत्य सदाइ सुख दावे ॥ पण ॥ २० ॥ यह ढाल दशमी गाइ । सती नी द्रढता दिख लाइ ॥ अमोल आगे चमत्कार थावे ॥ पण ॥ २१ ॥ ॥ दुहा ॥ वेदना सह विरला गइ । शांती वरताइ तन ॥ सुस्ती व्यापी तन में । बैठी स्थिर कर मन ॥ १ ॥ थाक भूख प्यास जोग थी । आती ही गड कुमलाय ॥ तन अति दुःखित थयो । टेको । भीत नो सहाय ॥ २ ॥ निद्रिस्थ हुइ तताक्षण । मन्दिरा तिण ही ठाम ॥ मानु सती । सुख पेखवा । प्रगटया दिन का वाम ॥ ३ ॥ प्रकाश पडयो अनना परे । गइ निद्रा विराम लाय ॥ चक्षु प्रकाशी पेखतां । अश्चर्य सति अती पाय ॥ ४ ॥ नहीं नर शेखर नहीं मुरी। । नहीं पति कुष्टिक पास ॥ एक कोई अन्य दिव्य पुरुष ॥ वस्त्र भूषण सू शोभाल ॥ ५ चिन्ते ए स्यूं स्वप्न छे । के कोइ भरम जणाय ॥ प्रितम महारा किहां गया । इम विचार घवराय ॥६॥ संघ विछुटी मृगली ज्यों । चउपखे रही जोय ॥ तेतले सन्मुख नर रह्यो। वो-। ले नम्र अति होय ॥ ७ ॥ ॐ ॥ ढाल ११ मी ॥ आज आनंद धन जोगीश्वर आया ॥ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यह०॥ सत्य शील जोग सह सुख पाया ॥ प्रत्यक्ष फल देखायारे लो ॥ दुःख दोहग क्षिण में विरलाया ॥ चीरा लन्द प्रगटायारे लो॥ सत्य ॥ १ ॥ सुण सुन्दरी मुज वीतक कहाणी । ते तुझ ने होसी सुख दाणारे लो ॥ साची तूं सहू लांजे मानी । योग्य नर ने पहचाणारे लो ॥ सत्य ॥ २ ॥ इणहीज भरत क्षेत्र मध्य जाणो । गिरी बेताड रूपानोरे लो। NI जायण पच्चीस ऊंचो जागो । पचास जोयण चौडानारे लो ॥ सत्य ॥ ३ ॥ दश जोयण । उपर दो श्रेणी । पूर्व पश्चिम विस्तारोरे ले। शिखरी प्रमाणे ते जाणो ॥ ग्राम सोदेश १ पर्वत ते मझारोरे लो ॥ सत्य ॥ ४ ॥ दक्षिण ना पचास ग्राम शिरे । मणी पुर नयर विराजेरे। लो ॥ औपमा जेहनी श्वर्ग समागी । गढ भवन सह साजेरे लो ॥ सत्य ॥ ५ ॥ तस। प्रजा पालक मणी चड नृप । न्याइ निपुण सुख दाइरे लो ॥ अनेक राणी घणी गुणी। शाणी । रुपे चूंपे मोही नृप ताइरे लो ॥ मत्य ॥ ६ ॥ पण राय मन वैम त्रिया सत्य को । परिक्षा में सहू ठगाणीरे लो ॥ भंगो मन राय फिर शेहर में । जोवो कौतक कहाणीरे। लो ॥ सत्य ॥ ७ ॥ त्रिया चरित्र बहु नेण निहाली । प्रतीत नृप मन टालीरें लो ॥ एका दा निशी मां नयर भमंता । सुणियो श्लोक विद्या वालीरे लो ॥ सत्य ॥ ८ ॥ श्लोक ॥ सर्वत्र वायसाः कृष्णाः । सर्वत्र हरिताः शुकाः ॥ सर्वत्र सुखिना सौख्यं । दुःखं सर्वत्र Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खण्ड दुःखि नाम् ॥ १॥ ॥ ढाल ॥ सर्व स्थान काग छ काला । तोता लीला होवरे लो॥ नतिम सुखिया सह स्थान सुख पावे । दुःखिया दुःख सदा जोधेरे लो ॥ सत्य ॥ ९ ॥ १४ इम सुणी नृप आश्चर्य पायो । लेवू ए वात अजमायोरे लो ॥ इम विचारी तिहां थी। सिधायो । विद्या बल गग ने चल आयोरे लो ॥ सत्य ॥ १० ॥ क्षिती प्रतिष्ट पुर देखी al मनोहर । उतर्यो तिहां तवारोरे लो ॥ निशी माहे रूप विद्रूप कीना । कुष्टिक पणो अंग धार्योरे लो ॥ सत्य ॥ ११ ॥ फिर तो ग्राम में भिक्षुक रूप । मृतिका भाजन फूटो सहा १४ हीरे लो । तेतले राज सूभट तिहां आना । ते कुटी नोकर ग्राहीरे लो ॥ सत्य । १२ ॥ बलकारे लेगया राज मांही । तुज ने दी परणाईर लो ।। ग्राम तजन को हुकमज दीधो । बली दुहाइ फिराइरे लो॥सत्या॥१३॥ पूर्व वैमे परतीत न आइ । तिण कारण परिक्षा ताइरे लो॥ अन्य नर वरण को दाख्यो । बातां विविध वणाइर लो ॥ सत्य ॥ १४ ॥ देवी । नर शेखर रूप बनाया । परिसह घणा उपजायारे लो ॥ पण मेरु जिम तुझ मन नहीं चलीयो । ते देखा में हर्षायारे लो ॥ सत्य ॥ १५ ॥ महा सती जाणी प्रतीत आणी ॥ निज रूप प्रगट कीनारे लो । तेहोजणी चूड मुझ पहचानो । परिक्षा ने दुःख दीनारे ।। लो ॥ सत्य ॥ १६ ॥ धन्य २ तुझने ने तुझ जननीरे । जे धर्म विद्या सीखाइरे लो ॥ 2-AREE Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तासु प्रशादे महा संकट सह्या । पर सत्य शील न खन्डथाइरे लो ॥ सत्य ॥ १७ ॥ जिहवी हं चहाता अर्धगना । तेहवी मिली पुण्य जोगरे लो ॥ तेह हर्ष मुझ हीये न मावे । धन्य मुज राज सुख ए भोगेरे लो ॥ सत्य ॥ १८॥ पण ना कारण तुझ ने सताइ । अतिही त्रास उपजाइरे लो ॥ बज कर्म में बांन्ध्या अनया से । ते दुःख अति मुज थाइर) लो ॥ सत्य ॥ १९ ॥ ए मिश्रित ता म्हारा मन की। दे माफी ने मिटाइरे लो ॥ हिवे N किंवित कभी दुःख नहीं देस्यूं । दे निर्मल मने साइरे लो ॥ सत्य ॥ २१ ॥ प्रेमोत्सुख इम करे विनवणी । गुणा कर्षी खग रायारे लो ॥ कहे अमोल ए ढाल एकादश । सत्या शीले आनन्द वर्तायारे लो ॥ सत्य ॥ २१ ॥ ७ ॥ दुहा ॥ तब वदे मन्दिरा सती ।। आप कही जे बात । प्रत्यक्ष ते दिठा विना । मुज परतीत नहीं आत ॥१॥ सत्य छलण इण जक्त मे । होय चरित्र अनेक | मिष्ट कटु गुप्त बाह्य बहू । न भरमु ते हैं देख ॥ २ ॥ जो होवो तुम साचला । कुष्टिक महारा कंत ॥ तो रूप पुनः तेह वो करो। जिम पूगे मुझ खत ॥ ३ ॥ मणी चूड अनन्द ने । कह ताही ने मांय ॥ कुष्टेक रूप पुनः धारीयो पूर्व पर सुख दाय ॥ ४ ॥ पेखी हर्षी प्रेमला ।' अहो २ धर्म पसाय ॥ विन्न स्थान उल्ल व भयो । आनंद उर नहीं मांय ॥ ५॥ अपुत्र्यो पुरज लहे । नेत्र हीन लह नण ॥ - - Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ kett इत्यादि परे हर्षिया । जाइ सुखदा सेण ॥ ६॥ ते सुख जाणे उभय ते । के जाणे जि"नराय ॥ के मनो मन समजो सहू । बाचाय न वरणाय ॥ ७ ॥ ७ ॥ ढाल १२ मी ॥ १५ महारो आज आनंदनो दिन छेजी यह ॥ म्हारे आज आनंद वर्तावीया जी। सस्य शील। प्रभाव दर्शावी या जी॥ म्हारे० ॥ ७ ॥ खेचर पति अती हर्षाविया जी। हीये अमृत मेह बर्षाविया जी || म्हारे ॥१॥ साया पति तब ओलखी जी । सहू दुःख ने सुख । रूप गइ लखी जी ॥ म्हारे ॥ २॥ कर जोडी पडी आइ पांव में जी। विनवे ते धरी उत्सावने जी ॥ म्हारे ॥ ३ ॥ खमो आपराध नाथ माहेरो जी । में गुन्हो कियो बहु १५ यांयरो जी । म्हारे ॥ ४ ॥ देवी रूपे बचन कह्या आकारा जी । वली सत्य रुपे न मानी । वाक्यरा जी ॥ म्हारे ॥ ५ ॥ हुइ करडी सस्कार अभी नहीं कियो जी । सत्य बात कही तो भी वैम लियो जी | म्हारे ॥ ६ ॥ई अपराधी छं नाथ पग पगे जी । आप ने N अपराध जरा नहीं लगे जी ॥ म्हारे ॥ ७॥ जे आप किया ते रूडो कियो जी । मुज ने दुःख नही पण घणी सुख दियो जी ॥ म्हारे ॥ ८ ॥ धर्म प्रभाव होसी एह थी घणो । जी । यह अनंद मुज मन हुवो घणो जी ॥ म्हारे ॥ ९॥ हिवे कृपा करी मूलगा वणो जी । आ दासी ना सह गुन्हा हणो जी ॥ म्हारे ॥ १० ॥ इम सुणताही रूप पलटा - Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २. मुख वीयो जी । तत्क्षिण मणी चूड रूप बणावीयो जी ॥ म्हारे ॥ ११॥ वर वस्त्र भूषण शोभाविया जी। मुकुट कुंडल ए अनेन दीपावीयाती॥ म्हारे ॥ १२ ॥ कहो प्यारी हिवे किसो कीजीये जी । होवे इच्छा सो हुकुम करीजीये जी ॥ म्हारे ॥ १३ ॥ सती कर जोडी कहे नाथ सांभलो जी । मेटो मुज तात मन को आम्लो जी ॥ म्हारे ॥ १४ ॥ जिम तज ते मिथ्या भ्राम ने जी। नहीं करे पुनः एहवा कर्म न जी ॥ म्हारे ॥ १५ ॥ जैसा रुपे परणावी मुज भणी जी । तेही रूप बोलावो राज ए अणी जी ॥ म्हारे ॥ १६ ॥ शिक्षा पायां थी धर्म ते धार से जी। म्हारा हट नो होवसे सार से जी ॥ म्हारे ॥ १७ ॥ नही अविनय कयों चहार्बु तात नो जी । पण सत्य शील दीपे तस जातनो जी॥ म्हारे ॥ १८ ॥ जो परछो ए नेणा जोवसी जी। तो धर्मी जन घणा होवसी जी ॥ म्हारे ॥ १९॥ हिवणा इच्छा येही नाथ पूरीये जी । आ चेटीना दुःख सह चरीये जी ॥ म्हारे ॥ २० ॥ खेचर पती आनन्द मानी बात ने जी ॥ ढाल द्वादश अमोल धर्मात मे जी ॥ म्हारे ॥ २१॥०॥ दुहा ॥ हर्ष उत्सहा ये खेचरु । तक्षिण विद्या प्रभाव ॥ तेहीज स्थान निपाइ । । सुवर्ण भवन सुचाव ॥१॥ सप्त खन्ड उतंग ते । चित्र विचिस प्रकार ॥ मणी कलश झग मग करे । देव भवन आकार ॥ २ ॥ भोगोप भोग ने Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ म. स. युक्त ते । वस्तु सर्व तेह माय ॥ विल से दम्पती प्रेम थी । दुगुंदक सुर साय ॥ ३ ॥ खण्ड १ तस मेहल ने चहू पखे । चउरंग शैन्य सुचंग || गज गाजी रथ पायका । अगिणित किया १६ बहु रंग ॥ ४ ॥ अवर ठाठ महाराज सो । सहू तिहां जी साजाय ॥ मणी चूड म इन्दिरा संगे । रह्या सुख ने मांय ॥ ५ @ || ढाल १३ मी ॥ कू विन मार्ग माथे धिग धिग ॥ यह ॥ सहू जन कृत कर्म का फल पावे । ते इहां प्रतक्ष दर्शावे जी ॥ आं ॥ प्राते बहू पुर जन पुर वाहिर । अजब ठाठ अवलोय जी ॥ अति अश्चर्य पाया मान मांही | सुरेन्द्र आया कोय जी ॥ सहू ॥ || ति बेला ते खेचरुयारे ॥ दूत विद्या ए बनाय जी ॥ हृष्ट पुष्ट तन वस्त्र भूषण वर । शास्त्र विविध सजाय जी ॥ सह ॥ २ ॥ लेखिज पत्र दियो तस कर में। धस मस करतो चाल्यो जी ॥ तेहना पाद प्रहार करी ने भूमण्डल पण हाल्यो जी || सहू ॥ ३ ॥ पुर जन देखी अजब दूत ने । खेदाश्चर्य उचित पाया जी ॥ किस्यो होसी छे कारण कांही । ताक मन घबराया जी ॥ सहू ॥ ४ ॥ राज शभा में आयो दूत ते । सहू शभा विस्माइ जी || पत्र ठव्यो नृपना मुख आग - ल । उत्तर तस मांग्याइ जी ॥ सहू ॥ ५ ॥ सचीव बांची पल सुणावे । सहू सुणे चित लगाय जी । गिरी बैताढ्य दक्षिण श्रेणिपत । मणीपुर नयर शोभाय जी ॥ सहू ॥ ६ ॥ तासपातमणीचूडख गपति । जाणी तुझ अन्याइजी ॥ चउरंगणी शैन्यालेइ आयो । सहसंग्रामी सजाडुजी ॥ ६ १६ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शक्ति होय तो कर संग्राम आ। नवो जन्म घतावू जी ॥ भक्ति करवी तो कर कहं सो। o मुज मन भाव जणावू जी ॥ सहू ॥ ७॥ कर भिख्यारी रूप वस्त्र ही । मृतिका भाव न लेय जी ॥ मध्य बजारे हो आ सन्मुख । नमन मुझ ने करय जी ॥ सह ॥ ८ ॥ तो हूं बिन संग्राम कियांही । म्हारे स्थानक जावू जी ॥ और नहीं को उपाव छूटण को ।। उतर पण नहीं चावू जी ॥ सह ॥ ९॥ सुणी भूप क्रोध.तुर होइ ॥ दूत ने बचन प्रकाशे जी । तेतले सचीव कहे समजाइ । धैर्य थी रूडो थाशे जी ॥ सह ॥ १० ॥ ते तान नहीं सामान्य पुरुष है । संग्रा में फते पावो जी ॥ निकम्मो यह क्रोध है श्व मी । क्यो तुम राज गमावो जी ॥ सह ॥ ११ ॥ ते विद्या धर पत महाबलियो । अनेक विद्या सिद्ध तेहने जी ॥ क्रोड उपावे जीत्यो न जावे । देव सहायक छ जेहने जी ॥ सह ॥ १२॥ मुर जाणो भूप मंत्री बचने । मौन धरीने रहीयो जी। मंत्री कहे दूत ने सिधावो । करसां जे जोग बनइयो जी ॥ सह ॥ १३ ॥ दूत गयो सहू बात जणाइ । विद्या धर स्थिर थाई जी ॥ मन्दिरा कहे हिवे तात जी आसी । द्रुमक वैश ने माई जी ।। सह ॥ १४ ॥ राजा अति मुरजाणो देखी। प्रधान तब समजावे जी ॥ न जाणे किस्यो वैर स्मरण कर खेचर पत यहां आवे जी ॥ सह ॥ १५ ॥ ते कहे तिम कर तस समजाइ । शांत करो। Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ म. स. / तण तांडली तण तांइ जी । इणहीज बाते अपणी भलाइ । बडा थी हार सराइ जी ॥ सहू ॥ १६N राखण्ड | राज ऋद्धि शोभा सुख रहसी । उपलभ कोइय न देसी जी ॥ मानो बात छडी अभी १७ । मान यह । कहूं हूं अवसर जैसी जी ॥ सहू ॥ १७ ॥ समज्या राय मानी ते बात ने । परवश करे कहो कांइ जी ॥ जबदस्त का पेंडा शिरपर । इण पेरे कह वाइ जी॥ सहान ॥ १८॥ कर्म करन्ता जीव सुख माने । मान अन्ध नहीं जाने जी ॥ उदय हवां पस्तावो करे तो । कुण छोडी दे वाने जी ॥ सहू ॥ १९ ॥ इम जाणी पहिला सोच विचारी ।। मडो कामज करसी जी " अमोल कह ए डाल त्रयोदश ॥ पाछे ते हर्ष भरसी जी॥d सह ॥ २० ॥ ७ ॥ दुहा ॥ सचीव अनुमत अनुसारथी । जीव राज रक्षण काज ॥ मंगत रूप धारण कियो । छोडी कुलकी लाज ॥१॥ मलीन फटया वस्त्र पहरिया । फटो भाजन कर सहाय । चाल्यो मध्य बजार थी । पुर जन जो विस्माय ॥ २ ॥ हिवे आगल किस्यो । नीपजे । राज प्रजा मन वैम ॥ ते जोवा बहु संग हुवा । राखी जो प्रभू खेम ॥३॥ उमराव केइ गुप्त शस्त्र ले । अजाण्या हो संग जाय ॥ वक्ते शक्ति रक्षण करां । श्वामी भक्ति तांय ॥ ४ ॥ इम वहु जन ने आगले । खेचर भवन नी दिश ॥ राज गमन हल करे । चित में केइ जगिश ॥ ५॥ ७ ॥ ढाल १४ मी ॥ ॥ गोपीचंद लडका ॥ यह ॥ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सहू आनन्द पाया | देखी महिमा सत्य शील की | आं ॥ रयण झरोके दम्पती बैठा मन्दिरा नरगम जोय ।। द्रुमक रूप आगल राजा । देखे. जणावे सोय हो ॥ सहु ॥ १ ॥ आप आज्ञा धारी तात मुज । भिक्षुक रूपे आवे || तर्जनिये कर लंबावी पती ने । राजा जी ओल खावे जी ॥ सहु ॥ २ ॥ हि संतोषी याने स्वामी । हित शिक्षा भली दीजे ॥ दोनो तत्क्षिण ऊठी चाल्या । वृद्ध नियम साचवीजे जो ॥ सहु ॥ ३ ॥ द्वारे आतां न ज्या राय जी । मणी चूड पग लागो | देखी विनय दोनों भूधव को । सहु तणो भय आगो जी ॥ सहु ॥ ४ ॥ मन्दिरा पण नमी तात ने । मधुर वयण दर्शावे ॥ देखो कर्म बली किसा तात जी । राय ने रंक बणावे जी || सहु ॥ ५ ॥ अने जे दीधी रंक ने कं न्या । ते हुइ खेचर पतनी । येही विचित्रता हो रही जग में । खबर नहीं कर्म गत नी जी ॥ सहु || ६ || खेचर पत ढिग पूत्री जो निज । राय अति मुरजायो | अरे या कुल खप्पन मुज निवडी । कुष्टिने छिटकायो जी || सहु ॥७॥ जार कर्म की धा पापणी । रुडो नर जोइ वरीयो | धिक २ म्हारी बुद्धि ने हो । वे विचार में करियो जी || सहु ॥ ८ ॥ रोशे भरीयो नांही विचारी । द्रुमक ने परणाइ || म्हारा हाथे म्हारी फजीती। महीज दुष्ट कराई जी ॥ सहु ॥ ९ ॥ इम पस्तावो कर ते भूप ने । मन्दिरा ए इंगिते जाण्यो | अन्य ॥ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ म. स. पति वरवः को तात जी । वैमज हिवणां आण्यो जी ॥ सहु ॥ १० ॥ कर जोडी वोले खण्ड? अहो बाप जी । वैम जरा मत लावो:॥व्यभिचार नहीं किया तुम पुत्री। रूपे मत भरमावो । जी ।। सहु ॥ ११ ॥ जे कुष्टि ने तुम परणाई । ते नहीं होता कुष्टि ॥ ते एही नर इन्द्रधि समाना । सोह ऋद्धि सिद्ध पुष्टी जी ॥ सहु ॥ १२ ॥ कारण सिर ते रूप बणाइ । आया था पुरमाही ॥ भट गृह्या । मुझ सुभाग्य जोगे । दीधी तुम परणाइ जी ॥ सहु ॥ १३॥ du विस्मय पाइ पूछे राजा। खेचर पति प्रकाशो ॥ मन्दिरा कहे सो बात है साची। कि- १८ स्यो कियो तुम तमाशो जी ॥ सह ॥ १४ ॥ निज उत्पती ने वीतक सघलो। जिम मन्दि Nरा ने सुणायो । तिमही जे मोटे सादे मणी चूड । सहु जन में संभलायो जी ॥ सहु ॥ १५ ॥ सुणी सहु जन विस्मय पाया ॥ फिर मणी चूड उचारे ॥ धन्य २ रिपु मर्दन जी तुम ने । जे महा सती कंन्य तुमारे जी ॥ सहु ॥ १६ ॥ जे जे रूप बणाइ परिक्षा। कीनी ते सहु संभलाइ ॥ अश्चर्य अति पाया सहु सुण ने । धन्य २ कहे बाइ ताइ जी ॥ १७ ॥ राजा प्रेमातुर अति होइ । पुत्री उरे लगाइ ॥ नेणा नीर बर्षाइ बोले । क्षम अप राध मुझ बाइ जी ॥ सहु ॥ १८ ॥ अभिमान वश वेबिचार होइ । अन्याय मोटो कीनो। au तेह नो दंढ मुझ कर्म जोग ये । बाइ भलो थे दीनो नो ॥ सह ॥ १९ ॥ हिवे ए सो Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्याय ने चिन्तु । जैन धर्म हूँ धारुं ॥ कर जोडी नमी मन्दिरा बोले । खमो अपराध कू म्हारुंजी | सहु ॥ २० ॥ धीठाड़ में कीधी बहुली | बचन अजुक्त सुणाया । धर्म शील ने आप पसाये । सहू आनंद वरताया जी ॥ सहु ॥ २१ ॥ आप जो इण विध नहीं करता तो । धर्म ऊंचो किम अतो ॥ ए सहू पुण्य प्रताप आपको । पुण्य शाली पति पातो जी ॥ सहु ॥ २२ ॥ वैर विरोध वैम सहू मिटिया । सुख से सहू मन भरीया || ढाल चतुर्दश ऋषि अमोलख । शील प्रताप उचरीया जी || सहु ॥ २३ ॥ दुहा ॥ खेचर विद्यार पति मणी चूड नृप । राज जोग भूषण वस्त्र ॥ तिहां मंगाया तत्क्षिणे । शिघ्र प्राप्त हुवा तत्र ॥ १ ॥ रिपु मर्दन राजा तणो । भिक्षुक भेष तजाय ॥ मणी गहणा जरी वस्त्र सर्व । नृपती अंग सजाय ॥ २ ॥ स्वग सिंहासन बैठीया । सुसरा जवाइ तेवार ॥ मन्दि रा पण योगस्थान के | बैठी सुख मझार ॥ ३ ॥ सहुं जन ने बैठण भणी । मन्डप बना यो सूचंग ॥ कन्नात चन्द्रवा जरी तणा । झग झगाट नवरंग ॥ ४ ॥ आसण विविध प्रकार का । विद्याया बैठा सर्व ॥ करे पर संज्ञा उभय की । शान्यो ते मोटो पर्व ॥ ५ ॥ १७ || ढाल १५मी ॥ मिजवानी की देशी || भव्य जन सत् शील सुख दाणी । सुख दाणी इहां आगे आणी हो राज || भव्य || ॐ || विद्या पसाये निपायी आहारो । असण पाण Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Kखादिम सादिम चारो हो राज ॥ व्यंजन आदि विविध प्रकारो । मेवा मशाले संस्कारो सहो राज ॥ भव्य ॥१॥ रजत पाट सुवर्णनी थालो । रयण कचोला श्रेयकारो हो राजast १९ झारी जल भर सुवर्ण केरी । मेल्या सब सन्मुख सारो हो राज ॥ भव्य ॥ २ ॥ सरखी। सहेल्या रुपे रंभा । सजीया सोले सिणगारो हो राज ॥ पुरुसण आइ अतिही शोभाइ। मिले करी २ मनवारो हो राज ॥ भव्य ॥ ३ ॥ नाना विध पक्वान परुषाया। नाना विधनो। धानो हो राज ॥ शाल दाल घृत झोल आरोग्या । सुगन्धोदक पानो हो राज ॥ भव्य ॥ IN ॥ तृप्त हुवा शुद्ध हो सहु पुर जन । शभा मन्डप मांह आया हो राज ॥ सुखासने Nठ्या आनदी । पाचक तंबोल आरोगाया हो राज ॥ भव्य ॥ ५॥ उत्तम वस्त्र सहु ने पहराया । गहणा पण वक्षाया हो ॥ भाग्य जोग सहु संपत पाया । सानन्दाश्चर्य लाया। हो राज ॥भव्य ॥६॥ रिपु मर्दन नृप करे विनंती । कृपा करी पुर मां पधारो हो राज उमंग हमरी सहुनी पूरो । अर्ज यह अवधारो हो राज ॥ भव्य ॥ ७ ॥ मानी नभेचर पता। हार्थ करी सजाइ । सुरेन्द्र सम शोभाइ हो राज ॥ कुंजरा रुढ दोनो नपत हुवा ॥ और यथा| योग्य बाहणाइ हो राज ॥ भव्य ॥ ८॥ शेहर श्रृंगार्या सहु जन आनन्द्या । मोतीये लीधा बधाइ हो राज ॥ जमाइ नी ऋद्धि देखी सासु जी । मन तन अति हर्षाइ हो राज ॥ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भव्य ॥ ९ ॥ मोटा भवन माहे कीनो ऊतारो । मिलियो सहु परिवारो हो राज ॥ ठाठा । परंभ कर पुनः परणाया। साध्यो घणो व्यवहारो हो राज ॥ ९॥ कहे जमाइ सासु जी ताइ। रुडी पुत्री पढाइ हो राज ॥ जे द्रढ रही महा संकट मांही । तुम कुल दीपक थाइN] हो राज ॥ भव्य ॥ १०॥ कहे सासु तब धर्म प्रशादे । सहु आणंद बाया हो राज ॥ हिवे संभाल छे आप ने ताइ । होजो दोनों भवे सुख दाया हो राज ॥ भव्य ॥ ११ ॥ मणी चूड नृप निज पुर जावा । सज हुबा ते वारो हो राज ॥ ऋद्धि सवही लीनी समेटी । मूल रूप रह्या । मनोहारो हो राज ॥ भव्य ॥ १२ ॥ विमान बनायो विद्या प्रभावे । अनेक स्थंभ तिण मायों हो राज ॥ पंच घुमट कर ते शोभायो । घूघर माल झणणायो। हो राज ॥ भव्य ॥ १३ ॥ जाणे द्वतिय रवी प्रगटाणो । विचित यान शोभाणो हो राजा IT॥ भव्य ॥ १४ ॥ स्वसुर की तब रजा लेइ । दम्पती हर्षित हृदेइ हो राज ॥ बैठ विमा 17 सह जन पेखत । सहु जन तब प्रणमेइ हो राज ॥ भव्य ॥ १५ ॥ अंत लिखे विमा- भाकाश न उडायो । वायु वेग त जायो हो राज । पेखत भूमन्ड रचना अनोखी । उताड गिर | पर आयो हो राज ॥ भव्य ॥ १६ ॥ भणी पुर नयर आइ उतरीया । सजन मिल्या हर्ष भरीया हो राज ॥ नवी राणी जी परणी आया । उत्सब तेहना करीया हो राज ॥ भव्या Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ म. स.॥ १७ ॥ सुखे २ रहे दंपती ह्यांइ ॥ मुलक में कीर्ती फेलाइ हो राज ॥ धन्य २ मंदिर खण्ड? सतीने ताइ । धर्म में मीजी भीजाइ हो राज ॥ भव्य ॥ १८ ॥ बाल वय में ए द्रढ , लाइ । वचन नहीं पलटयाइ हो राज ॥ यहा संकट नहीं चली चलाइ । शील धर्म मा द्रढ रहाइ हो राज ॥ भव्य ॥ १९ ॥ तो महा दुःख मिटी महा सुख पाइ । मणी चूड पला पती मिल्याइ हो राज । ऋद्धि अचिन्त्य तस सुरेन्द्र जैली । तुर्त ही धर्म फल्याइ हो १ एथवीराज़ ॥ भव्य । २० ।। इम महीमा महीमा पलराणी ॥ ढॉल पन्नरमी गवाणी हो गजल । सत्य शील की महीमा बखाणी । कहे अमोल धारो प्राणी हो राज ॥ भव्य ॥ २१ ॥ २० N | दुहा ॥ हिवे मन्दिरा चित चिन्तये । सत्य शील प्रभाव ॥ विपति गइ संपती भाडा। ME वा सहु उत्साव ॥ १॥ किंचित आराधन थकी । पाइ अचिन्त्या सुख ॥ जो पूरा आHol राधस्यूं। तो गमास्यूं सब दुःख ॥ २ ॥ में तो वों भिक्षुक भणी । भिक्षुणी थइ मय ॥ हिवे गर्व किस्यो माहरे । फूलूं जो ऋद्धी एय ॥ ३ ।। इम वैराग्य मन में धरी । लुखतिये ते रेय ॥ नही सिणगार अविका सजे । नहीं भोगे लुवधय ॥ ४ ॥ सामायिका निकाल की । प्रति क्रमण दोनो टंक ॥ पोषध नियम वृत संचवे । नित्य २ चडते रंगा ।। Em५॥ ७ ॥ ढाल २६ मी ॥ धन्य २ श्रावक पुण्य प्रभावक ॥ यह० ॥ धन्य २ मन्दिरा SITARAMATP4 Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भनी श्राविका जे धर्म रंगे रगाणी.॥ नित उठ प्राते करे सामायिक । राइ प्रति क्रमा) स्थिर चित ठाणी ॥ धन्य ॥ १ ॥ फिर आरंभ परिग्रह की प्रति दिन । मर्याद करे मता आणि ॥ धन्य ॥२॥ प्रकाश हुवा निज करे निज स्थानक । पूंजे पंजणी सुकु र हाथ पाल गहानी ॥ धन्य ॥ ३ ॥ वस्त्र उपकरण जेजे बापरे । ते प्रति लेखी मेले ठाणी ॥ धन्य ॥ ४॥ पाणी नी ते यत्ना करावे । स्वस्थान न्हखावे जीवाणी ॥ धन्य ॥ ४॥ पोजन स्थाने ऊभी रई। पूंजावे यत्नाये स्थानी ॥ धन्य ।। ५॥ इन्धन आटो दाला शाक सह । जोइ जीव निकाली न्हाँखे एक कानी ॥ धन्य ॥ ६ ॥ और काम यत्ता से रावे । जिम नहीं होवे जीव की हानी ॥ धन्यः ॥ ७॥ अउग पउग निपजे अहार नित प्रत । जिम पोषे बहुला प्राणी ॥ धन्य ॥ ८ ॥ जो कदा जोग बणे साधू सतीश को । तो उल्लास प्रणाम आणी । धन्य ॥ ९॥ चउदे प्रकार को दान प्रति लाभे । आ-d हो भाग्य ते दिन जाणी ॥ धन्य.॥ १० ॥ पाणी से नहीं आग बुजावे । नहीं ढोले ते घगो पाणी ॥ धन्य ॥ ११॥ न्हावण धोवण थोडा जल थी। भोजन में नहीं मुरछाणी धन्य ॥ १२ ॥ तंबोल निर्वद्य ग्रही करे.सोगन । नही रेवे जरा अपञ्चखाणी ॥ धन्य १३ ॥ अन्य गृह कार्य नी करे संभाल ते । उपजे न जंतू लील वाणी ॥धन्य ॥१४॥ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१ पुरसत पा पुरी मंडल वक्ते । सब सहेली दासी मिलाणी ॥ धन्य ॥ १५ ॥ करे समा यिक दे धर्म देशना । जिम ते धर्माधर्म पहचाणी ॥ धन्य ॥ १६॥ सर्व संगतणी ने धामालखण खण्ड ण बणाइ । ते पण करे धर्म कमाणी ॥ धन्य ॥ १७ ॥ दिवस छता निपटें खान पान थी। रात्रीये चार अहार त्यागाणी ॥ धन्य ॥ १८॥ सन्ध्या समय ते करे सामायिक । प्र तिक्रमण शुद्ध चित ठाणी ॥ धन्य ॥ १९ ॥ जिनेश्वर साधू सती तणा गुण । नंतर गावे बखाणी ॥ धन्य ॥ २१ ॥ शयानासन करे धरणी पर सदा । निर्विषय पाथरी पथरा णी ॥ धन्य ॥ २२ ॥ सेवा साधे पतिनी यथो चित । सुणावे धर्म की कहाणी ॥ धन्या २३ ॥ धर्म घरचा वारंवार कहाडे । नहीं विगाडे विषय लुब्धानी ॥ धन्य ॥ २४ ॥ इम श्राविका की नित्य नियत क्रिया । सोले ढाले अमोल मुनी बखाणी ॥ धन्य ॥२५/ला ram || दुहा ॥ तिण काले तिण अबसरे । चरण ऋषि गुण धाम ॥ समोसर्या मणी पुरक विष । सुणियो हर्यो ग्राम ॥ १ ॥ अहो भाग्य आज आपणा । भेटस्यां जग तारनार ॥ सुणसा जिन वाणी भली । करस्यां वक्त उधार ॥ २ ॥ आपस में उमंगी वदे । चालो । विंटन महा राय ॥ इम मिल २ बहु गमत्यां । मुनि अनुखंगे आय ॥ ३ ॥ तिखुत्ता विधी | साचवी । हर्षे वंदन कीध । राय राणी आदि सहू । बैठा छे यथा विध ॥ ४ ॥ जगोली Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दधी उधारवा । दे मुनिवर उपदेश ॥ ते धारो सुगणा सहू । तागण धर्म की रेश ॥ ५॥ me ॥ ढाल १७ मी ॥ विण जारा की देशी ॥ सुणो श्रोता हो । प्रति बौध आवार । अवसर अत्युतम कर चडयो ॥ सुणो श्रोता हो ॥ सुणो श्रोता हो ॥ होवो भवौदधी पार kan नर भव काठे आ पड्यौ ॥ सुणा ॥ १ ॥ सुणो ॥ पुद्गलिक मिल्या भोग । जे भोगी। वक्त अनंत वम्या ॥ सुणा ॥ सुणो ॥ जेह थी पाया महा दुःख । धिक २ किम ए मना स्या ॥ सुणो. ॥ २ ॥ सुणो ॥ जो सुज्ञ हो तो धरो सूग । वमण भोगण ने परिहरो ॥ सुणो ॥ सुणो ॥ करो निज गुण नो भोग । ता अक्षय सुख अनुसरो ॥ सुणो ॥ ३ ॥ सुणो ॥ जो चूक्या ए डाव । तो फिर घणा प्रस्तावसो ॥ सुणो ॥ सुणो ।। कपी कूप पडयो दूजी वार । तिम पुनः गोता खावसो ॥ सुणो ॥ ४ ॥ सुणो ॥ इम जाणी तिजो मिथ्यात्व । सर्व वृती देश वृती बनो । सुणो ॥ सुणो ॥ पतली करो कषाय । मोहमहा वैरी ने.हनो ॥ सुणो ॥ ५॥ सुणो ॥ तो छूटी त्रिताप । अनंत अक्षय सुख पावन सो ॥ सुणो ॥ सुणो ॥ इत्यादि मुनि उपदेश । सुणी शभा उत्साव सो ॥ सुणो ॥६॥ सुणो ।' तब मन्दिरा कर जोड । पूछे गुरु जी फरमावीये ॥ सुणो ॥ सुणो ॥ हू परणी क्यूं कुष्टिक तांय । पूर्व भव वतावीये ॥ सुणो ॥ ७ ॥ सुणो ॥ कहे मुनि सुणो चिता Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ म. स.लाय । कूणाल देश कोटिल पुरे ॥ सुणो ॥ सुणो ॥ सेठ वसे वितलभ । मितरा स्त्री सु खण्ड? नूरे ॥ सुणो ॥ ८ ॥ सुणो ॥ दोनो जिन धर्म ना जाण । करणी करे प्रेमे करी ॥ सुणो। ॥ सुणो ॥ भागी भमर पण तेह । नित श्रृगारी देह रखे भरी ॥ सुणो ॥ ९॥ सुणो। एक महा मुनिराय । पक्षोप वसी आवया ॥ सुणो । सुणो ॥ हा दंपति दोय । उलटा भावे वेहरावयि ॥ सुणो ॥ १० ॥ सुणे ॥ वंदनी ने संयोग । तस तन दुर्गन्ध वहा रही ॥ सुण ॥ मुणो ॥ सो स्फी तस ध्राण । कम्पास्व तब मन लही ॥ सुणो ॥ ११ In सुणो ॥ जाण्यो नहीं ते दोष । आलोयणा पण नहीं करी ॥ सुणो ॥ सुणो ॥ शुद्ध भावे कर धर्म । स्वर्ग गति में अवतरी ॥ सुणो ॥ १२ ।। सुणो ।। इहां जुदा २ ऊपना २२ आय । करणी जिसी ऋद्धि पाबीया ॥ सुणो ॥ मुणो ॥ ते दुगंछा ना कर्म ' मनोमय किया । उदयं आवीया ॥ सुणो ॥ १३ । सुणो ॥ मणी चड कियो कुष्टि रूप । राय अग्रह मंदिरा Vवरी । सुणो ॥ सुणो ॥ धर्म करणी प्रशाद । विलसी रह्या छो सुख सिरी ॥ सुणो ॥ १४ lan सुणो । सुणी मुनि का सत्य वयण । चमत्कार चित पाइया ।। सुणो ॥ सुणो ॥ हाहानी कर्म बलिष्ट । विचार माल भुक्ताविया ॥ सुणो ॥ १५ ॥ सुण ॥ श्रावक का वृत बार ।। अंगीकार कीधा उभय ॥ सुणा ।। सुणो ॥ और घणा किया प्रत्याख्यान । मुनिवर अन्या Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सा देशे रमय ॥ सुणो ॥ १६ ॥ सुणो । मणि चूड मन्दिरा दोय । श्रावक वृत पाले निर्म ला ॥ सुणो ॥ सुणो ॥ तप जप करे धर उत्सहा । पतली कषाय भाव रखे भला ॥ सुणो ॥ १७" सुणो ॥ चउतीर्थ ने सुख दाय । साता देवे तन धन करी ॥ सुणो ॥ सुणो ॥ घणा वर्ष लग इम । देश वृती धर्म अनुसरी ॥ सुणो ॥ १८ ॥ सुणो ॥ अंत अ. वसर आयु जाण । आलोचना निन्दणा करी ॥ सुणो ॥ सुणो ॥ अणसण चडते भावं । कर द्रष्टी प्रभू पद धरी ॥ सुणो ॥ १९ ॥ सुणो ॥ उपना ब्रह्मस्वर्ग माय । दश सागर आयु पाइया ॥ सुणो ॥ सुणो ॥ दानो हुवा सामानिक देव । धर्म रंग रचाविया ॥ सु. ॥ २० ॥ सुणो । लेइ मानव अवतार । करणी कर शिवपावसी ॥ सुणो । सुणो ॥ सत्यनी सतरमी ढाल । ऋषि अमोल सुज्ञ गावसी ।। सुणो श्रोता हो ॥ २१ ॥॥॥y चरित्र सारांस हरी गीत ॥ मन्दिरा चरित्र, परम पवित्र, ढालों विचित सुणिये भवी ॥ जिम मन्दिरा शील में रही । तिम सहू बहीनो सतीयो हवी । तो सुख शौभग्य सदा पाव । लो । गमावसो सह दुःख सही ।। धर्मे आत्म रमाव सो तो शिव पुरी दूरी नहीं ॥१॥ वीर संवत चौवीसलो अडतीस अब सुरू हवा । विक्रम उन्नीससो अडसठ । झान पंचमी भगू भुवा ॥ दक्षिण हैद्राबाद लाला सुखदेव शाह जगा दिवी ॥ तपश्वी तात केवल Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -- ऋषिजी। सेवेसी अमोलख कीवी ॥२॥ कथानुसार करी चरी ए। विरुद्ध जे मे उचा#. सारीयो । मिच्छा दुष्कृत्य देइ करुं अर्ज । मेधावी सुधारीयो॥ देव अहंत गुरु निग्रन्थ धामण्डर पण्डित २३ दया में धारीये ॥ भवो भव शिव सुख मिली । वेगी मोक्ष पधारीये ॥३॥ निरुपदप परम पूज्य श्री कहान जी ऋषिजी महाराजके सम्प्रदायके महंत मुनिराज श्री खूबा ऋषिजी महाराज, तस्य शिष्य आर्य मुनिराज श्री चेना ऋषि जी महाराज तस्य शिष्य बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलख ऋषि जी महाराज चित सत्य शील महातम श्री मन्दिरा सती परित समाप्तम् ॥७॥ खुशखबा. " श्री परमात्म मार्ग दर्शक ५०० पृष्टका बड़ा ग्रन्थरी मनहर रत्न धन्नावली ग्रंथ प रहे हैं छपवाद लालाजी नेतरामजी रामनारायणजी की तरफ से अमुल्य सायेंगे. अमुल्य पुस्तके जैन तत्व प्रकाश चंद्रसेश लीलावर रक्तामर मूल ॥ यह पुस्तको उपकर तैयार हैं लिख मुजब टपाल खरच भेजकर निम्नलिखित पत्ते जीय. स्टांप व पुस्तक गेर बदले जावे अिसके हम जुम्मेदार नहीं है. पता-लाला ने राम राम जोहरी चारकमान, दक्षिण हैद्राबाद. NI Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ Ꭺ Ꭺ Ꭺ Ꮂ Ꮎ Ꮎ Ꮎ Ꮎ Ꮎ Ꮎ Ꮎ Ꮎ Ꮎ Ꮎ Ꮎ Ꮎ Ꮎ ; cᎪ 4 ᎦᎪ Ꮎ Ꮎ Ꮎ Ꮎ Ꮎ Ꮎ Ꮎ ᎪA°Ꮎ Ꮎ Ꮎ .