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________________ ध्यासन करने योग्य है, हमारा हृदय साक्षी देता है कि सती प्रेमालाऔ इसका श्रवण पठन करने से जरूर कर्तव्य परायण होगी, अपने सातत्व के कृतव्य में, पति और स्वजनोंकी भक्ति करने की रीति में, और विशेषत्व लि जाति को धर्म ज्ञान का अभ्यास होने से क्या फायदा होते है, माताओं को पुत्र पुत्री ओंकी तरफ कैसी फरज अदा करना उचित है, बगैरा मुख्य २ कर्तव्यों में समजेगी, फिर उस प्रमाणे वर्ताव करना उनके इकत्यार है. हमार सुभाग्योदयले परम पुज्य श्री कहानजी ऋषिजी महाराजके सम्प्रदायके स्थिावर तपश्वी जी श्री श्री केवल ऋषिजी महाराज वृद्ध अवस्थाके कारणसे यहां विराजमान हुवे हैं, और उनके सेवामे बाल ब्रह्मचारी पण्डित मुनि श्री अमोलख ऋषिजी महाराज विराजते हैं. इनके सद्वौदसे इस शहर के लोगों ज्ञान बृद्धि करने को बडे उत्सहाही बने हैं, और आजतक छोटो बडी ३१,००० पुस्तकोंका अमुल्य - मुफत प्रसार किया है. तदनुसारही यह चरित्र दिल्ली जिल्लके कानोड (महेन्द्रगड) के निवासी अगरवाल वंशी द्रढ साधू मार्गी लाला शिवकरणदास के सुपुत्र अर्जुनदास ने इस ग्रन्थ ने कर्ता मुनिके पास सामायिक प्रति क्रमण अर्थ सहित, और पच्चीस बोलका थोक बहुतही विस्तार सहित, तथा लघु दंडक वगैरा का अभ्यास करनेसे झान बृद्धी की उम्मेद हुइ, उस वक्त यह चरित्र महाराज श्री रात्रिको फरमाते थे, इसे श्रवन कर उपकार का कर्ता जान इसकी १००० प्रत छापवाकर अपने धर्मात्मा भडिश बंधवाको अमुल्य अर्पण कर कलशता समजते हैं. चारकमान दक्षिण हैद्राबाद, सत्य वृद्धिका इच्छा, वीर. २४२८, वि. १९६८. चैत्री पौर्णिमा. लाला सुखदेव शाहजी ज्वाला प्रशाद.
SR No.600302
Book TitleMandira Sati Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherLala Shivkarandasji Arjundas
Publication Year1913
Total Pages50
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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