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________________ म. स. / तण तांडली तण तांइ जी । इणहीज बाते अपणी भलाइ । बडा थी हार सराइ जी ॥ सहू ॥ १६N राखण्ड | राज ऋद्धि शोभा सुख रहसी । उपलभ कोइय न देसी जी ॥ मानो बात छडी अभी १७ । मान यह । कहूं हूं अवसर जैसी जी ॥ सहू ॥ १७ ॥ समज्या राय मानी ते बात ने । परवश करे कहो कांइ जी ॥ जबदस्त का पेंडा शिरपर । इण पेरे कह वाइ जी॥ सहान ॥ १८॥ कर्म करन्ता जीव सुख माने । मान अन्ध नहीं जाने जी ॥ उदय हवां पस्तावो करे तो । कुण छोडी दे वाने जी ॥ सहू ॥ १९ ॥ इम जाणी पहिला सोच विचारी ।। मडो कामज करसी जी " अमोल कह ए डाल त्रयोदश ॥ पाछे ते हर्ष भरसी जी॥d सह ॥ २० ॥ ७ ॥ दुहा ॥ सचीव अनुमत अनुसारथी । जीव राज रक्षण काज ॥ मंगत रूप धारण कियो । छोडी कुलकी लाज ॥१॥ मलीन फटया वस्त्र पहरिया । फटो भाजन कर सहाय । चाल्यो मध्य बजार थी । पुर जन जो विस्माय ॥ २ ॥ हिवे आगल किस्यो । नीपजे । राज प्रजा मन वैम ॥ ते जोवा बहु संग हुवा । राखी जो प्रभू खेम ॥३॥ उमराव केइ गुप्त शस्त्र ले । अजाण्या हो संग जाय ॥ वक्ते शक्ति रक्षण करां । श्वामी भक्ति तांय ॥ ४ ॥ इम वहु जन ने आगले । खेचर भवन नी दिश ॥ राज गमन हल करे । चित में केइ जगिश ॥ ५॥ ७ ॥ ढाल १४ मी ॥ ॥ गोपीचंद लडका ॥ यह ॥
SR No.600302
Book TitleMandira Sati Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherLala Shivkarandasji Arjundas
Publication Year1913
Total Pages50
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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