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________________ शक्ति होय तो कर संग्राम आ। नवो जन्म घतावू जी ॥ भक्ति करवी तो कर कहं सो। o मुज मन भाव जणावू जी ॥ सहू ॥ ७॥ कर भिख्यारी रूप वस्त्र ही । मृतिका भाव न लेय जी ॥ मध्य बजारे हो आ सन्मुख । नमन मुझ ने करय जी ॥ सह ॥ ८ ॥ तो हूं बिन संग्राम कियांही । म्हारे स्थानक जावू जी ॥ और नहीं को उपाव छूटण को ।। उतर पण नहीं चावू जी ॥ सह ॥ ९॥ सुणी भूप क्रोध.तुर होइ ॥ दूत ने बचन प्रकाशे जी । तेतले सचीव कहे समजाइ । धैर्य थी रूडो थाशे जी ॥ सह ॥ १० ॥ ते तान नहीं सामान्य पुरुष है । संग्रा में फते पावो जी ॥ निकम्मो यह क्रोध है श्व मी । क्यो तुम राज गमावो जी ॥ सह ॥ ११ ॥ ते विद्या धर पत महाबलियो । अनेक विद्या सिद्ध तेहने जी ॥ क्रोड उपावे जीत्यो न जावे । देव सहायक छ जेहने जी ॥ सह ॥ १२॥ मुर जाणो भूप मंत्री बचने । मौन धरीने रहीयो जी। मंत्री कहे दूत ने सिधावो । करसां जे जोग बनइयो जी ॥ सह ॥ १३ ॥ दूत गयो सहू बात जणाइ । विद्या धर स्थिर थाई जी ॥ मन्दिरा कहे हिवे तात जी आसी । द्रुमक वैश ने माई जी ।। सह ॥ १४ ॥ राजा अति मुरजाणो देखी। प्रधान तब समजावे जी ॥ न जाणे किस्यो वैर स्मरण कर खेचर पत यहां आवे जी ॥ सह ॥ १५ ॥ ते कहे तिम कर तस समजाइ । शांत करो।
SR No.600302
Book TitleMandira Sati Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherLala Shivkarandasji Arjundas
Publication Year1913
Total Pages50
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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