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हुइ वगासी । करे किसो डाया ॥ कर्म ॥ १८ ॥ कुँवरी ने तो वाह्याभ्यन्तर । दुःख जराKaur म. स.न दीसे । निश्चय होणहार पर धार्यो । सह अश्चर्य हाँसे ॥ कर्म ॥ १९ ॥ माता बोलाइक
वाइ ने । तक्षिण तिहां जावे ।। ढाल चौथी कही अमोलख । होतव सो थावे ॥ कर्म ॥ २१ ॥ * ॥ दुहा ॥ जननी प्रेमोत्सुख कहे । सांभली प्यारी जात । जे जे ते शभा में कही । ते साची सह बात ॥ १ ॥ पण नहीं मानी राय जी । मोहोदय वश होय । तिहथी तूं ताणे मति । बोली जे अवसर जोय ॥ २॥ मन्दिरा कह कर जोडके । इम मता मां समजाय ॥ जे जाणी असत्य छ । ते सत्य किम कहेवाय ॥ ३ ॥ असत्य सत्य असत्य चव । गिथ्या लागे मात ॥ एक भव सुख कारणे । अनंत भव दुःख पात ॥ ४॥ चिंता मत करो मात जी । होणहार सो थाय ॥ सत्य शील पसाय थी। दुःख सुख हो । प्रगमांय ॥ ५ ॥ ७ ॥ ढाल५मी ॥ आऊखो टूटां ने सान्धो को नहींरे ॥७॥ होणहार भव्या । सांभलारे ॥ होणहार सोइ होयरे ॥ कर्मोदय होतां जीवनरे । सगो न रहे कोयरे ॥ होण ॥ १॥ भट चट जोता पुरने विषेरे । द्रुमंक दीठो एकरे ॥ कुष्ट रोग अंग गली : भिल्यारी Nगयोरे । पडिया छे सहनों छे करे ॥ हो ॥२॥ कथा फाटी लीरा लटकतीरे । न्हाखी गोडी
के गिरवा मायरे ॥ वस्त्र खन्डे लज्जाढकोरे । मक्षिका बहु भणणायरे ॥ होण ॥३॥ फूटो
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