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________________ भव्य ॥ ९ ॥ मोटा भवन माहे कीनो ऊतारो । मिलियो सहु परिवारो हो राज ॥ ठाठा । परंभ कर पुनः परणाया। साध्यो घणो व्यवहारो हो राज ॥ ९॥ कहे जमाइ सासु जी ताइ। रुडी पुत्री पढाइ हो राज ॥ जे द्रढ रही महा संकट मांही । तुम कुल दीपक थाइN] हो राज ॥ भव्य ॥ १०॥ कहे सासु तब धर्म प्रशादे । सहु आणंद बाया हो राज ॥ हिवे संभाल छे आप ने ताइ । होजो दोनों भवे सुख दाया हो राज ॥ भव्य ॥ ११ ॥ मणी चूड नृप निज पुर जावा । सज हुबा ते वारो हो राज ॥ ऋद्धि सवही लीनी समेटी । मूल रूप रह्या । मनोहारो हो राज ॥ भव्य ॥ १२ ॥ विमान बनायो विद्या प्रभावे । अनेक स्थंभ तिण मायों हो राज ॥ पंच घुमट कर ते शोभायो । घूघर माल झणणायो। हो राज ॥ भव्य ॥ १३ ॥ जाणे द्वतिय रवी प्रगटाणो । विचित यान शोभाणो हो राजा IT॥ भव्य ॥ १४ ॥ स्वसुर की तब रजा लेइ । दम्पती हर्षित हृदेइ हो राज ॥ बैठ विमा 17 सह जन पेखत । सहु जन तब प्रणमेइ हो राज ॥ भव्य ॥ १५ ॥ अंत लिखे विमा- भाकाश न उडायो । वायु वेग त जायो हो राज । पेखत भूमन्ड रचना अनोखी । उताड गिर | पर आयो हो राज ॥ भव्य ॥ १६ ॥ भणी पुर नयर आइ उतरीया । सजन मिल्या हर्ष भरीया हो राज ॥ नवी राणी जी परणी आया । उत्सब तेहना करीया हो राज ॥ भव्या
SR No.600302
Book TitleMandira Sati Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherLala Shivkarandasji Arjundas
Publication Year1913
Total Pages50
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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