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________________ म. स.॥ १७ ॥ सुखे २ रहे दंपती ह्यांइ ॥ मुलक में कीर्ती फेलाइ हो राज ॥ धन्य २ मंदिर खण्ड? सतीने ताइ । धर्म में मीजी भीजाइ हो राज ॥ भव्य ॥ १८ ॥ बाल वय में ए द्रढ , लाइ । वचन नहीं पलटयाइ हो राज ॥ यहा संकट नहीं चली चलाइ । शील धर्म मा द्रढ रहाइ हो राज ॥ भव्य ॥ १९ ॥ तो महा दुःख मिटी महा सुख पाइ । मणी चूड पला पती मिल्याइ हो राज । ऋद्धि अचिन्त्य तस सुरेन्द्र जैली । तुर्त ही धर्म फल्याइ हो १ एथवीराज़ ॥ भव्य । २० ।। इम महीमा महीमा पलराणी ॥ ढॉल पन्नरमी गवाणी हो गजल । सत्य शील की महीमा बखाणी । कहे अमोल धारो प्राणी हो राज ॥ भव्य ॥ २१ ॥ २० N | दुहा ॥ हिवे मन्दिरा चित चिन्तये । सत्य शील प्रभाव ॥ विपति गइ संपती भाडा। ME वा सहु उत्साव ॥ १॥ किंचित आराधन थकी । पाइ अचिन्त्या सुख ॥ जो पूरा आHol राधस्यूं। तो गमास्यूं सब दुःख ॥ २ ॥ में तो वों भिक्षुक भणी । भिक्षुणी थइ मय ॥ हिवे गर्व किस्यो माहरे । फूलूं जो ऋद्धी एय ॥ ३ ।। इम वैराग्य मन में धरी । लुखतिये ते रेय ॥ नही सिणगार अविका सजे । नहीं भोगे लुवधय ॥ ४ ॥ सामायिका निकाल की । प्रति क्रमण दोनो टंक ॥ पोषध नियम वृत संचवे । नित्य २ चडते रंगा ।। Em५॥ ७ ॥ ढाल २६ मी ॥ धन्य २ श्रावक पुण्य प्रभावक ॥ यह० ॥ धन्य २ मन्दिरा SITARAMATP4
SR No.600302
Book TitleMandira Sati Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherLala Shivkarandasji Arjundas
Publication Year1913
Total Pages50
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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