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________________ भनी श्राविका जे धर्म रंगे रगाणी.॥ नित उठ प्राते करे सामायिक । राइ प्रति क्रमा) स्थिर चित ठाणी ॥ धन्य ॥ १ ॥ फिर आरंभ परिग्रह की प्रति दिन । मर्याद करे मता आणि ॥ धन्य ॥२॥ प्रकाश हुवा निज करे निज स्थानक । पूंजे पंजणी सुकु र हाथ पाल गहानी ॥ धन्य ॥ ३ ॥ वस्त्र उपकरण जेजे बापरे । ते प्रति लेखी मेले ठाणी ॥ धन्य ॥ ४॥ पाणी नी ते यत्ना करावे । स्वस्थान न्हखावे जीवाणी ॥ धन्य ॥ ४॥ पोजन स्थाने ऊभी रई। पूंजावे यत्नाये स्थानी ॥ धन्य ।। ५॥ इन्धन आटो दाला शाक सह । जोइ जीव निकाली न्हाँखे एक कानी ॥ धन्य ॥ ६ ॥ और काम यत्ता से रावे । जिम नहीं होवे जीव की हानी ॥ धन्यः ॥ ७॥ अउग पउग निपजे अहार नित प्रत । जिम पोषे बहुला प्राणी ॥ धन्य ॥ ८ ॥ जो कदा जोग बणे साधू सतीश को । तो उल्लास प्रणाम आणी । धन्य ॥ ९॥ चउदे प्रकार को दान प्रति लाभे । आ-d हो भाग्य ते दिन जाणी ॥ धन्य.॥ १० ॥ पाणी से नहीं आग बुजावे । नहीं ढोले ते घगो पाणी ॥ धन्य ॥ ११॥ न्हावण धोवण थोडा जल थी। भोजन में नहीं मुरछाणी धन्य ॥ १२ ॥ तंबोल निर्वद्य ग्रही करे.सोगन । नही रेवे जरा अपञ्चखाणी ॥ धन्य १३ ॥ अन्य गृह कार्य नी करे संभाल ते । उपजे न जंतू लील वाणी ॥धन्य ॥१४॥
SR No.600302
Book TitleMandira Sati Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherLala Shivkarandasji Arjundas
Publication Year1913
Total Pages50
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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