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१चंद्रमा
कोयल
४ शरीर
रे लाल । ऋषि अमोलख केह हो श्रो० ॥शील॥२१॥४॥हा॥ इम गुण तन वृद्धि हुवा)
प्रोढ पणो ते पाय ॥ नव यौवन अंग उपंग वर । इन्द्राणी ने लजाय ॥ १॥ पूर्णेन्दू तोता मुख भाल अर्ध । मृगांक्षी शुक घ्राण । सिह कटी लज्जावती । कुम पद मंडाण ॥ २ ॥ द्रव्ये वपु वत्थ भूषणे । भावे संवेग समकित ॥ राची माची गुण गुणी । मन्दिरा शोहे हाथों
मुद्रित ॥ ३ ॥ पिर्क क्यण दंती गमण । यतना ए वरतेय ॥ चिन्ते पेखी जनीता तदा बस्न पति योगी भइ एय ॥ ४ ॥ पण नृपती निश्चिन्त छे । चेतावु देखाय ॥ पुत्री वसावा ।
न तात घर । छेवट पर घर जाय ॥ ५॥ ७ ॥ ढाल २ री ॥ बड़े घर ताल लागी जी ॥ यह ॥ जेह द्रढ श्रद्धा धारी जी । असत्य ते नहीं स्वीकारीजी ॥ आं॥ तनुजा व जणाव वाजी । सोले श्रृंगार सजाय ॥ मंजन अंजन तंबोल भूषण वत्थ । दिप्त करी तसा काय ॥ जेह ॥ १ ॥ सहेल्या साथे करीजी । राज शभा मा पहोंचाय ॥ शरमित अधो द्रगं राखने । बाइ तातने प्रणमी आय ॥ जेह ॥ २॥ शभा पुरित भूप पेखीने जी विस्मित चित सह पाय ॥ आदर दे अनुखंग में । राय पुत्री ने वेठाय ॥ जेह ॥ ३ ॥ निज कुल रयण अवलोकने जी । अभिमाने छक्यो राय ॥ मुज सम अन्य न भूम में। १० नजिक इम जाणी कहे शभा तांय ॥ जेह ॥ 2 ॥ कहो सह निश्चय करी जी । इण भूमंडके
N] - पुत्री