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________________ यह०॥ सत्य शील जोग सह सुख पाया ॥ प्रत्यक्ष फल देखायारे लो ॥ दुःख दोहग क्षिण में विरलाया ॥ चीरा लन्द प्रगटायारे लो॥ सत्य ॥ १ ॥ सुण सुन्दरी मुज वीतक कहाणी । ते तुझ ने होसी सुख दाणारे लो ॥ साची तूं सहू लांजे मानी । योग्य नर ने पहचाणारे लो ॥ सत्य ॥ २ ॥ इणहीज भरत क्षेत्र मध्य जाणो । गिरी बेताड रूपानोरे लो। NI जायण पच्चीस ऊंचो जागो । पचास जोयण चौडानारे लो ॥ सत्य ॥ ३ ॥ दश जोयण । उपर दो श्रेणी । पूर्व पश्चिम विस्तारोरे ले। शिखरी प्रमाणे ते जाणो ॥ ग्राम सोदेश १ पर्वत ते मझारोरे लो ॥ सत्य ॥ ४ ॥ दक्षिण ना पचास ग्राम शिरे । मणी पुर नयर विराजेरे। लो ॥ औपमा जेहनी श्वर्ग समागी । गढ भवन सह साजेरे लो ॥ सत्य ॥ ५ ॥ तस। प्रजा पालक मणी चड नृप । न्याइ निपुण सुख दाइरे लो ॥ अनेक राणी घणी गुणी। शाणी । रुपे चूंपे मोही नृप ताइरे लो ॥ मत्य ॥ ६ ॥ पण राय मन वैम त्रिया सत्य को । परिक्षा में सहू ठगाणीरे लो ॥ भंगो मन राय फिर शेहर में । जोवो कौतक कहाणीरे। लो ॥ सत्य ॥ ७ ॥ त्रिया चरित्र बहु नेण निहाली । प्रतीत नृप मन टालीरें लो ॥ एका दा निशी मां नयर भमंता । सुणियो श्लोक विद्या वालीरे लो ॥ सत्य ॥ ८ ॥ श्लोक ॥ सर्वत्र वायसाः कृष्णाः । सर्वत्र हरिताः शुकाः ॥ सर्वत्र सुखिना सौख्यं । दुःखं सर्वत्र
SR No.600302
Book TitleMandira Sati Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherLala Shivkarandasji Arjundas
Publication Year1913
Total Pages50
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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