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________________ म. स.लाय । कूणाल देश कोटिल पुरे ॥ सुणो ॥ सुणो ॥ सेठ वसे वितलभ । मितरा स्त्री सु खण्ड? नूरे ॥ सुणो ॥ ८ ॥ सुणो ॥ दोनो जिन धर्म ना जाण । करणी करे प्रेमे करी ॥ सुणो। ॥ सुणो ॥ भागी भमर पण तेह । नित श्रृगारी देह रखे भरी ॥ सुणो ॥ ९॥ सुणो। एक महा मुनिराय । पक्षोप वसी आवया ॥ सुणो । सुणो ॥ हा दंपति दोय । उलटा भावे वेहरावयि ॥ सुणो ॥ १० ॥ सुणे ॥ वंदनी ने संयोग । तस तन दुर्गन्ध वहा रही ॥ सुण ॥ मुणो ॥ सो स्फी तस ध्राण । कम्पास्व तब मन लही ॥ सुणो ॥ ११ In सुणो ॥ जाण्यो नहीं ते दोष । आलोयणा पण नहीं करी ॥ सुणो ॥ सुणो ॥ शुद्ध भावे कर धर्म । स्वर्ग गति में अवतरी ॥ सुणो ॥ १२ ।। सुणो ।। इहां जुदा २ ऊपना २२ आय । करणी जिसी ऋद्धि पाबीया ॥ सुणो ॥ मुणो ॥ ते दुगंछा ना कर्म ' मनोमय किया । उदयं आवीया ॥ सुणो ॥ १३ । सुणो ॥ मणी चड कियो कुष्टि रूप । राय अग्रह मंदिरा Vवरी । सुणो ॥ सुणो ॥ धर्म करणी प्रशाद । विलसी रह्या छो सुख सिरी ॥ सुणो ॥ १४ lan सुणो । सुणी मुनि का सत्य वयण । चमत्कार चित पाइया ।। सुणो ॥ सुणो ॥ हाहानी कर्म बलिष्ट । विचार माल भुक्ताविया ॥ सुणो ॥ १५ ॥ सुण ॥ श्रावक का वृत बार ।। अंगीकार कीधा उभय ॥ सुणा ।। सुणो ॥ और घणा किया प्रत्याख्यान । मुनिवर अन्या
SR No.600302
Book TitleMandira Sati Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherLala Shivkarandasji Arjundas
Publication Year1913
Total Pages50
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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