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________________ सोगन इश्वरना खाय ॥जेह॥१५॥ हाँस्य वचन बाइ वदे। अहो भोला हुवा सह लोक ॥ महीपा। रीजावण कारणे। सह वयण वदो छोफोक ॥जेह॥१६॥ कर्ता अकर्ता आत्मा निज ।श्री जिन जी फरमाय ॥ कर्त कर्म अनुसारथी जीव । सुख दुःख जग में पाय ॥जेह॥१७॥ जो पुण्य संचने लावीया तो । वणिया राजा प्रधान ॥ पापो पार्जित प्राणियाने । मिले न पूरो धान ॥ जेह ॥ १८ ॥ नुन्याधिक कोई करे सके नहीं । कर्मोदय के मांय ॥ तो अर्प वो सुखा. दुःख को । एता हाँस जनक जणाय ॥ जेह ॥ १९ ॥ सकट नीचे वहे श्वान ते जाणे । मुज आधारे गती एह ॥ तिम मोहो मुर्छित जीवडा । फोकट गुमाने फूलेय ॥ जेह ॥ Mom २० ॥ इत्यादि युक्त वचन थी जी । शभा निरुत्तर थाय ॥ ढाल युगेम शाल सस की। यह । ऋषि अमोलख गाय । जेह ॥२१॥७॥दुहा॥ निज वाचा खन्डी लखी । कोपातुर * लाल हवो राय ॥ अरुण नयण तिक्ष वयण थी। कुँवरीने चेताय ॥ १॥ विद्या वावली तूं भइ । शुद्धन रही लगार ॥ भरी शभा मे नारी हो । बके इम किम गमार ॥२॥ किस्यो जाणे तूं शास्त्र में । वस्त्रन जाणे पेर ॥ मुख आव्यो ते ऊचर्यो । जाण्यो नही सार फेर ॥ ३ ॥ जावा दे तूं अन्य को । निज वीती प्रकाश ॥ किण आधारे सुखी दुःखी । ऊंडो जरा विमास ॥ ४ ॥ तूं पोते भोली हुइ । अन्य ने भोला बणाय ॥ जैसे हडक्या स्वान ने कमSE
SR No.600302
Book TitleMandira Sati Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherLala Shivkarandasji Arjundas
Publication Year1913
Total Pages50
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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